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पिता ने जिंदगी भर बेचा दूध, बेटियों ने लिखी सफलता की कहानी...डॉक्टर बन घर आई तो हर आंख नम हो गई

राजस्थान के राजसमंद जिले के देवगढ़ में रहने वाले भंवरलाल रावल ने भी अपनी बेटियों के लिए ऐसा ही किया।
01:31 PM Jan 25, 2025 IST | Rajesh Singhal

Success story of Kavita and Padma Rawal: हर पिता का सपना होता है कि उसकी बेटियां उसके नाम को गर्व से ऊंचा करें। अपने सपनों को साकार करने के लिए पिता न केवल उनकी हर जरूरत पूरी करते हैं, बल्कि उन्हें उड़ान भरने का हौसला भी देते हैं। राजस्थान के राजसमंद जिले के देवगढ़ में रहने वाले भंवरलाल रावल ने भी अपनी बेटियों के लिए ऐसा ही किया। दूध बेचकर परिवार चलाने वाले भंवरलाल ने अपनी बेटियों कविता और पद्मा रावल को शिक्षा का ऐसा (Success story of Kavita and Padma Rawal) आधार दिया, जिसने न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे रावल समाज का गौरव बढ़ाया।

यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो कठिन हालातों में भी अपने सपनों का पीछा करना नहीं छोड़ते। भंवरलाल और उनकी बेटियों ने अपने संघर्ष और मेहनत के बल पर न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि समाज के लिए एक मिसाल पेश की।

जमीन बेचकर बेटियों को बनाया डॉक्टर

राजस्थान के राजसमंद जिले के देवगढ़ के रहने वाले भंवरलाल रावल ने अपनी बेटियों के सपनों को सच करने के लिए अपनी जमीन तक बेच दी। उनका सपना था कि उनकी बेटियां डॉक्टर बनें और इसके लिए उन्होंने अपनी तरफ से हर कुर्बानी दी। बड़ी बेटी कविता ने विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की और फिर जयपुर में इंडियन मेडिकल एग्जाम की तैयारी की। आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, कविता और पद्मा दोनों बहनें आज डॉक्टर बनकर अपने परिवार और समाज का नाम रोशन कर रही हैं।

बेटियों की सफलता पर छलके खुशी के आंसू

हाल ही में, कविता ने एमसीआई की परीक्षा पास की और सरकारी डॉक्टर बनने का गौरव हासिल किया। यह दिन उनके माता-पिता के लिए सबसे खास था। अपनी बेटियों को डॉक्टर बनते देख भंवरलाल और उनकी पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। यह सफलता न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे रावल समाज के लिए ऐतिहासिक पल बन गई।

दो साल की कठिन मेहनत का नतीजा

कविता और पद्मा ने अपनी शुरुआती शिक्षा देवगढ़ के श्रीजी पब्लिक स्कूल और विद्या निकेतन स्कूल से की। इसके बाद दोनों ने कोटा में दो साल तक नीट की तैयारी की। पद्मा का मेडिकल कॉलेज बरेली में चयन हो गया, जहां वह एमबीबीएस कर रही हैं। वहीं कविता ने विदेश में एमबीबीएस किया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपने माता-पिता का सपना पूरा कर दिखाया।

संघर्ष...प्रेरणा की मिसाल

कविता और पद्मा की इस सफलता ने साबित कर दिया कि कठिन परिस्थितियां भी उन लोगों का रास्ता नहीं रोक सकतीं जो अपने सपनों के लिए मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं। भंवरलाल रावल और उनकी बेटियों की यह प्रेरणादायक कहानी आज पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है। उनका यह संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस देता रहेगा।

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