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गधी का दूध क्यों ढूंढ रहे राजस्थानी मर्द? कहां गायब हो रहे गधे...सामने आई चौंकाने वाली बात!

China's Donkey Milk Demand: गधों का इतिहास मानवता के साथ एक अनोखी दास्तान है। एक समय था जब गधे को बोझा ढोने का सबसे विश्वसनीय साथी माना जाता था,वह हर प्रकार के भार को बिना (China's Donkey Milk Demand) किसी...
03:37 PM Oct 18, 2024 IST | Rajesh Singhal

China's Donkey Milk Demand: गधों का इतिहास मानवता के साथ एक अनोखी दास्तान है। एक समय था जब गधे को बोझा ढोने का सबसे विश्वसनीय साथी माना जाता था,वह हर प्रकार के भार को बिना (China's Donkey Milk Demand) किसी शिकायत के सहन करता था। उनकी अद्भुत सहनशक्ति और मेहनत ने उन्हें हजारों वर्षों तक इंसान का सबसे प्रिय सहायक बनाए रखा।

लेकिन जैसे-जैसे समय बदला और तकनीकी विकास ने परिवहन के नए साधन पेश किए, गधों की उपयोगिता घटने लगी। वर्तमान की तारीख में, जहां गधे की मेहनत की कीमत खत्म हो गई है, वहीं इनकी संख्या में भी तेजी से कमी आई है। यह एक दुखद सच है कि जहां एक समय गधे इंसान के साथी थे, वहीं अब वे हमारे अनदेखे और असमान्य रूप से विलुप्त होते जा रहे हैं। क्या हम अपने इस साथी की विरासत को बचा पाएंगे, या यह सिर्फ अतीत की बात बनकर रह जाएगा?

गधों की कमी का प्रभाव

गधों की संख्या में गिरावट का असर कई स्तरों पर देखा जा रहा है, खासकर जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर। राजस्थान में शारदीय नवरात्रों के दौरान आयोजित खलकाणी मेले में गधों की बिक्री में भारी कमी आई है।

पहले जहां हर वर्ष इस मेले में 20 से 25 हजार गधे बिकते थे, अब यह संख्या घटकर केवल 15 से 20 रह गई है। यह बदलाव केवल एक संख्या नहीं है; यह एक चेतावनी भी है, जो दर्शाती है कि गधों की भूमिका और उनके संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

क्या कहते हैं राष्ट्रीय आंकड़े

वर्तमान में, देश में गधों की कुल संख्या केवल 1 लाख 20 हजार रह गई है, जो कि चिंताजनक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में गधों की खाल और दूध का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में किया जा रहा है, और कई स्थानों पर इसे मर्दानगी बढ़ाने के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रकार की मांग के चलते गधों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, जो जैव विविधता को खतरे में डाल रही है।

बीकानेर में संरक्षण की कोशिशें

हालांकि गधों की संख्या में गिरावट आ रही है, लेकिन बीकानेर का राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र उनके संरक्षण के लिए सक्रियता से कार्य कर रहा है। यहां गधों की नई नस्लों का संवर्धन किया जा रहा है, जो न केवल गधों के संरक्षण में मददगार साबित हो रहा है, बल्कि उनकी उपयोगिता भी बढ़ा रहा है।

उन्नत नस्लों का विकास

डॉ. शरत चंद्र मेहता, केंद्र के प्रमुख, ने भारत सरकार को गधों के नस्ल संवर्धन और उन्नत नस्लें विकसित करने के लिए विशेष प्रोजेक्ट भेजा है। केंद्र के वैज्ञानिक नई तकनीकों का उपयोग कर गधों की नस्लों को बेहतर बनाने में जुटे हैं। विभिन्न प्रयोगशालाओं में उच्च स्तर के वैज्ञानिकों की टीम गधों की नस्लों की विशेषताओं को बढ़ाने के लिए शोध कर रही है।

चीन में भारी मांग

यूनाइटेड किंगडम के ब्रुक इंडिया संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, गधों के दूध और चमड़े से विभिन्न उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिनमें ब्यूटी प्रॉडक्ट्स शामिल हैं। इसी वजह से चीन में गधों की मांग काफी बढ़ गई है। वहां इन गधों को उच्च कीमतों पर खरीदा जा रहा है, जिसके चलते भारतीय किसान चोरी-छिपे अपने गधे चीन को बेचने पर मजबूर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में भारत में केवल एक लाख बीस हजार गधे ही बचे हैं।

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