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Udaipur: क्या है मेवाड़ का महासतिया? जहां नंगी तलवारों के बीच होती है राजघराने की चिता की रक्षा

Mahendra Singh Mewar Funeral: मेवाड़ राजघराने के वरिष्ठ सदस्य और मेवाड़ की गौरवशाली विरासत के प्रतीक, पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ का रविवार दोपहर को निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा आज पूरे राजसी विधि-विधान और शाही परंपराओं के साथ...
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Mahendra Singh Mewar Funeral: मेवाड़ राजघराने के वरिष्ठ सदस्य और मेवाड़ की गौरवशाली विरासत के प्रतीक, पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ का रविवार दोपहर को निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा आज पूरे राजसी विधि-विधान और शाही परंपराओं के साथ निकाली जाएगी। इस यात्रा में कई प्रतिष्ठित राजनेता, राजघरानों के सदस्य, और मेवाड़ के अनगिनत श्रद्धालु शामिल होंगे। मेवाड़ की शाही परंपराओं के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार महासतिया (Mahendra Singh Mewar Funeral) में किया जाएगा, जहाँ नंगी तलवारों से चिता की सुरक्षा होती है। यह महासतिया, मेवाड़ की अनोखी और पवित्र परंपराओं का साक्षी है, जहाँ हर कदम पर इतिहास की अनुगूंज सुनाई देती है।

महासतिया में अंतिम संस्कार: मेवाड़ राजघराने की शाही परंपरा

उदयपुर के आयड़ क्षेत्र में गंगू कुंड के पास स्थित महासतिया, मेवाड़ राजघराने का वह पवित्र स्थल है, जहाँ शाही गरिमा और ऐतिहासिक परंपराओं के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। सदियों पहले, यहाँ पहली बार महाराणा अमर सिंह प्रथम का दाह संस्कार हुआ था। तब से यह स्थान राजपरिवार की शाही विदाई का प्रतीक बन गया है। महासतिया, जहाँ हर शाही चिता के चारों ओर नंगी तलवारों का पहरा होता है, मेवाड़ की ऐतिहासिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का जीता जागता उदाहरण है।

शाही परंपराओं का निर्वाह

महाराणा के निधन पर उनका गंगाजल से स्नान कराकर केसरिया पोशाक पहनाई जाती है, और उन्हें खास आभूषणों के साथ ढाल और तलवार धारण कराई जाती है। जैसे ही यह खबर फैलती है, राजमहल और शहर के सभी कार्य ठप हो जाते हैं। घड़ियाल और नक्कारे मौन हो जाते हैं, और सरकारी कार्यालयों में ताले लग जाते हैं, जिससे हर व्यक्ति को महाराणा के देहावसान की सूचना मिलती है।

दाह स्थल का चयन और पवित्रता का आयोजन

शाही परंपरा के अनुसार, दरबारियों का एक आयोग महासतिया में पहुँचकर दिवंगत महाराणा के दाह स्थल का चयन करता है। भूमि की शुद्धि के लिए इस स्थान को गोमूत्र, गोबर और लाल मिट्टी से लीपा जाता है। इसे "अछूताई" कहा जाता है, और यह कार्य विशेष रूप से करमसी नागदा के वंशजों द्वारा संपन्न किया जाता है, जो मेवाड़ की इस परंपरा का एक अनिवार्य हिस्सा हैं।

बैठक का आयोजन और अंतिम यात्रा

महाराणा के निधन के तुरंत बाद उन्हें विशेष बैठक प्रदान की जाती है, ताकि उन्हें शाही डोल में बैठाकर महासतिया तक ले जाया जा सके। निधन का संदेश, चांदी की थाली और कटोरी में एक स्वर्ण मुद्रा के साथ जगदीश मंदिर भेजा जाता है। महाराणा के शव को शाही पुरोहित और उनके निकट संबंधी ही महासतिया तक ले जाते हैं, जो इस रस्म को और भी पवित्र बना देता है।

शव का शाही श्रृंगार

महाराणा के शव को विवाह के समय के दूल्हे के समान सजा-धजाकर तैयार किया जाता है, बस मौर नहीं पहनाई जाती। राजसी पोशाक, आभूषण, ढाल, और तलवार के साथ उनका शव डोल में रखा जाता है, ताकि चिता के साथ उनकी शाही पहचान भी अमर हो सके। ये आभूषण भी शाही चिता के साथ भस्म हो जाते हैं, जो मेवाड़ की इस अनोखी परंपरा को और भी विशिष्ट बनाता है।

ज्येष्ठ पुत्र का न होना और चौकसी की परंपरा

राजपरिवार की अनोखी परंपरा के अनुसार, महाराणा के ज्येष्ठ पुत्र (बड़ा बेटा) शवयात्रा में शामिल नहीं होते। इसके बजाय, पीलाधर के संग्रामसिगोत राणावत ठिकाने के लोग मुखाग्नि देने का कार्य करते हैं। दाह संस्कार पूर्ण होते ही सभी लौट जाते हैं, और उसी क्षण से महासतिया में शाही सुरक्षा का दौर शुरू होता है। सिरोही से आए देवड़ा परिवार के लोग नंगी तलवारें लेकर 12 दिन तक चिता स्थल की सुरक्षा में तैनात रहते हैं, जिससे मेवाड़ की इस राजसी परंपरा की गरिमा अक्षुण्ण रहती है।

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