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"मेह और पावणा दौरा आवै..."सालों से सूखी नदी में पानी छलकने पर झूम उठते हैं लोग, महिलाएं चुनरी ओढ़ाकर करती है मनुहार

Rajasthan Monsoon Session: वीरों की धरती राजस्थान में एक कहावत है - मेह और पावणा (मेहमान) दौरा आवै, जिसका मतलब है कि बारिश और मेहमान का मान हमारी परंपरा है और ये दोनों ही आसानी से नहीं आते हैं और...
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Rajasthan Monsoon Session: वीरों की धरती राजस्थान में एक कहावत है - मेह और पावणा (मेहमान) दौरा आवै, जिसका मतलब है कि बारिश और मेहमान का मान हमारी परंपरा है और ये दोनों ही आसानी से नहीं आते हैं और अगर आ गए तो इनकी मान-मनुहार का खास ख्याल रखा जाता है. वैसे तो राजस्थान को अपनी कई परंपराओं, खानपान, रिवाज, मेहमाननवाजी और वीरों-वीरांगनाओं के लिए देशभर में ख्याति हासिल है लेकिन कई परंपराएं ऐसी है जिन्हें सहेज कर रखा जाना बहुत जरूरी है और यही परंपराएं हमारी पहचान पर अलग छाप लगाती है.

हम बात कर रहे हैं नदी की पूजा करने के रिवाज की जहां बारिश के दिनों में सालों पुरानी सूखी नदियों में जब पानी की चादर चलती है तो महिलाएं थाली-चुनरी लेकर जाती है और नदी का आदर-सत्कार करते हुए पूजा करती है. दरअसल ग्रामीण इलाकों में जल और जमीन को सालों से भगवान का दर्जा दिया जाता है जहां लोग उनकी पूजा करते हैं जितना किसानी लोगों को जल-जमीन देती है उतना ही मान-सम्मान ये लोग उन्हें वापस देते हैं.

फागी में बांडी नदी चली तो ओढाई चुनरी

बीते दिनों जयपुर जिले के फागी कस्बे के बाशिंदों ने बांडी नदी (रेणूका) के सूखे पाट में पानी चलता देखने के बाद झूमकर खुशी का इजहार किया. वहीं नदी पर पानी की चादन चलने के बाद गांव की महिलाओं ने रीति रिवाज से चुनरी ओढ़ाकर नदी रूपी देवी की पूजा कर श्रृंगार किया. राजस्थानी परंपरा से ग्रामीण महिलाओं के नदी की पूजा करने और चुनरी ओढ़ाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया गया. बता दें कि बांडी नदी पहले बारहमासी थी लेकिन समय के साथ वह बरसाती भी नहीं रही ऐसे में इसमें पानी बहने का यहां के लोग सालों से इंतजार कर रहे थे.

पाली में भी नदी की मनुहार

इधर पाली जिले के सोजत में भारी बारिश के बाद केलवाज नदी बहती हुई नजर आई तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पाली में बारिश वैसे तो कहर ढा रही है लेकिन केलवाज नदी को पूरे परवान पर बहते देख लोगों ने खुशी का इजहार किया. बीते दिनों नदी के किनारे पहुंचकर महिलाओं ने पूरे पारंपरिक अंदाज में चुनरी ओढ़ाकर नदी रूपी मां का स्वागत किया और पूजा की.

बता दें कि राजस्थान के मारवाड़ में जब बारिश के मौसम में पहली बार नदी बहती है तो उसको चुनरी-ओढ़नी अर्पण करने की परंपरा है जिसका सालों से लोग पालन कर रहे हैं. सोजत में महिलाओं द्वारा चुनरी ओढ़ाना उसी महान परंपरा का पालन है क्योंकि हमारी संस्कृति में नदियों को माता का दर्जा दिया गया है.

बाड़मेर में बही लूणी नदी की धारा

इधर धोरों की धरती रेगिस्तान के बाड़मेर-बालोतरा में बीते सोमवार को "मरूगंगा" लूणी नदी की एंट्री हुई जहां सालों बाद लूणी में पानी का प्रवाह देखकर मरुस्थलवासियों में खुशी की लहर दौड़ी और लोगों ने नाचकर नदी का स्वागत किया. सैकड़ों किलोमीटर बहकर आई लूणी नदी की ग्रामीणों ने पूजा-अर्चना की और चुनरी ओढ़ाकर मरुस्थल की जमीन ने भागीरथी का पलक-पांवड़े बिछाकर स्वागत किया. बता दें कि पूरे रेगिस्तान को पार कर अरब सागर तक लूणी नदी का बहाव है जहां यह राजस्थान और गुजरात दो राज्यों को जोड़ती है.

दरअसल पश्चिमी राजस्थान के इलाकों में पिछले 3 दिन की बारिश के बाद रेगिस्तान में सूखी पड़ी लूणी नदी में भी पानी आया है जहां बुधवार सुबह अजमेर और जोधपुर से होते हुए ये नदी बाड़मेर के रेगिस्तानी इलाके में पहुंची. जानकारों के मुताबिक 5 सालों में दूसरी बार लूणी नदी उफान पर आई है. जानकारी के मुताबिक लूणी नदी ने जैसे ही समदड़ी में प्रवेश किया सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण स्वागत करने के लिए पहुंचे और महिलाओं ने लोकगीत गाए तो पुरुषों ने जमकर डांस किया.

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