Rajasthan Lok Sabha Election 2024: राजस्थान में कांग्रेस ने लिया बदला, BJP ने विधानसभा चुनाव में दी थी पटखनी
Rajasthan Lok Sabha Election 2024: राजस्थान मेें छः महीने पहले भाजपा के हाथों सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में हिसाब कुछ हद तक चुकता कर दिया है। लगातार दो आम चुनाव में 25 सीटें हारने वाली कांग्रेस ने न सिर्फ अपना खाता खोला बल्कि भाजपा को 14 सीटों तक समेटने में भी कामयाब रही है। तीन सीटों पर गठबंधन और सोशल इंजीनियरिंग में कांग्रेस भाजपा से इक्कीस साबित हुई है। शेखावाटी और पूर्वी राजस्थान के वोटर में कांग्रेस में नई जान फूंक दी है।
गठबंधन को सौ फीसदी सफलता
विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस पूरी तरह हताश थी। उसे लोक सभा चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे। ऐसे में कांग्रेस ने गठबंधन का दांव खेला। उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था। कांग्रेस ने राजस्थान में पहली बार लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया था। वह भी उस स्थिति में जब बदले में कुछ फायदा मिलने की उम्मीद नहीं थी। डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी के राजकुमार रौत, नागौर में आरएलपी के हनुमान बेनीवाल और सीकर सीट माकपा के कामरेड अमराराम को दी थी।
संगठन और सरकार की नाकामी
भरतपुर के वरिष्ठ पत्रकार राकेश वशिष्ठ के अनुसार भाजपा का संगठन और सरकार (Rajasthan Lok Sabha Election 2024) आंकलन ही नहीं कर पाई, ग्राउंड स्थिति क्या है, वे मानते रहे कि सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव जीत जाएंगे। प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी अपने चुनाव में फंसे रहे, वे कहीं नहीं गए, जबकि मुख्यमंत्री भजनलाल प्रभाव नहीं डाल पाए। बीजेपी कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता के कारण भी हारी है, वहीं पोलिंग बूथ पर भाजपा के कार्यकर्ता दिखाई नहीं दे रहे थे।
कैंडिडेट का चयन गलत किया
इसके अलावा जाट भाजपा से नाराज थे, गुजरात में पुरुषोत्तम रुपाला (Rajasthan Lok Sabha Election 2024) की टिप्पणी के कारण राजपूत भी नाराज थे, जो भाजपा का कोर वाटर है। तीसरा कारण, कैंडिडेट का चयन गलत किया गया। इसके मुकाबले लगातार दो बार सारी सीट हारने के बाद कांग्रेस के सामने करो या मरो की स्थिति थी। बीजेपी वाले स्थिति का आकलन नहीं कर पाए यह संगठन और सरकार का फेलियर साबित हुआ। वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा के अनुसार जाटों की नाराजगी भाजपा को बहुत भारी पड़ी है।
बीजेपी को जाट ने नही दिया वोट
जाट बीजेपी को वोट देने नहीं निकला, उसने कांग्रेस का साथ दिया है। राजस्थान नहीं, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में भी जाटों ने कांग्रेस का साथ दिया। मोदी सरकार ने दो बार किसान आंदोलन को दबाया, इससे जाट नाराज थे। वैसे भाजपा की स्थिति इतनी भी बुरी नहीं है, पूरे देश में सिर्फ जाट बेल्ट में ही भाजपा को नुकसान हुआ है। जाट बेल्ट में यूपी से लेकर मारवाड़ तक, एक लाइन से सीटें गई है। नहीं तो भाजपा केरल में भी एक सीट लेकर आई है। वहीं दूसरा अग्निवीर योजना भी मोदी सरकार पर उल्टी पड़ी है, युवाओं में सेना में भर्ती होने के लिए जो क्रेज था, वह मोदी सरकार ने खत्म कर दिया।
कांग्रेस यूथ के बीच पहुंची
इसके मुकाबले कांग्रेस यूथ के बीच अपनी बात रखने में सफल हुई है। आरक्षण खत्म करने के मुद्दे का भी भाजपा को नुकसान हुआ है। आरक्षण के मुद्दे पर डर के कारण ही यूपी में भी मायावती को कोई सीट नहीं मिली। विधानसभा चुनाव के आधार पर कांग्रेस 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा से बेहतर स्थिति में थी। इनमें से 9 सीटों पर भाजपा को मतदाताओं ने नकार दिया। शेखावाटी की सीकर, चुरू, झुंझुनूं और पूर्वी राजस्थान की करौली-धौलपुर, भरतपुर, दौसा, टोंक-सवाईमाधोपुर सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त दी, तो जयपुर ग्रामीण सीट भी कांग्रेस 1615 वोटों के मामूली अंतर से हारी है। कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में लेकर 6 महीने बाद लोकसभा चुनाव में भी इन इलाकों के मतदाताओं को मूड वही रहा।
मोदी की गारंटी नहीं चली
राम मंदिर, मोदी की गारंटी, धारा 370 खत्म करने जैसे बड़े मुद्दों से भाजपा अति आत्मविश्वास में थी। इसी के चलते चूरू में राहुल कस्वां का टिकट काटने, बाड़मेर जैसलमेर में रवींद्र सिंह भाटी को नहीं मना पाने, मीणा नेता किरोड़ीलाल की उपेक्षा करने जैसी गलतियां भाजपा करती गई। इसके मुकाबले कांग्रेस ने स्थानीय समीकरणों और सोशल इंजीनियरिंग पर ज्यादा ध्यान दिया था। भाजपा समझ नहीं पाई कि वोटर राष्ट्रीय मुद्दों से ज्यादा स्थानीय और जातीय समीकरणों को महत्व दे रहा था। इसी के चलते जीन सीटों पर भाजपा जीती वहां भी जीत का मार्जिन पिछले चुनाव के मुकाबले कम ही रहा है।
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