रतन टाटा का अलविदा... जानिए पारसी धर्म की अनोखी अंतिम संस्कार परंपरा 'टॉवर ऑफ साइलेंस'!
Ratan Tata Death: भारत के दिग्गज उद्योगपति और टाटा समूह के पूर्व प्रमुख रतन टाटा का (Ratan Tata Death) बुधवार रात निधन हो गया, जिससे व्यापार जगत में शोक की लहर दौड़ गई। 86 वर्षीय रतन टाटा पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अपने विनम्र स्वभाव और परोपकारी जीवन के लिए पहचाने जाने वाले रतन टाटा के निधन से लोग गमगीन हैं। रतन टाटा का अंतिम संस्कार उनके पारसी धर्म की परंपराओं के अनुसार किए जाने की संभावना है। आइए जानते हैं कि पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया क्या होती है और 'टॉवर ऑफ साइलेंस' (Tower of Silence) का क्या महत्व है।
अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
रतन टाटा का जन्म 8 दिसंबर 1937 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। वे पिता नेवल टाटा और मां सूनी कमिसारीट के बेटे थे। जब रतन टाटा 10 साल के थे, तब उनके माता-पिता अलग हो गए, जिसके कारण उनका बचपन और किशोरावस्था दादी के साथ गुज़री। रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी धर्म के अनुसार किए जाने की संभावना है। पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की एक अनूठी प्रक्रिया होती है।
टॉवर ऑफ साइलेंस क्या है?
पारसी धर्म का अनूठा तरीका: पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, और इसमें अंतिम संस्कार का तरीका काफी अलग है। पारसी लोग अपने प्रियजनों के शवों को एक 'गोल इमारत' में छोड़ते हैं, जिसे 'टॉवर ऑफ साइलेंस' कहा जाता है। शव को छोड़ने के बाद उसे गिद्ध या अन्य जानवर खा जाते हैं, इस प्रक्रिया को 'दख्मा' कहा जाता है।
कोलकाता में पहला टॉवर ऑफ साइलेंस:
भारत में पहला 'टॉवर ऑफ साइलेंस' 1822 में कोलकाता में बनाया गया था। पारसी धर्म के अनुयायियों का मानना है कि शव प्रकृति का है, और वे उसे प्रकृति के सुपुर्द कर देते हैं। उनका मानना है कि शवों को जलाने से वायु प्रदूषण होता है, और अगर शवों को नदी में फेंका जाए तो इससे पानी प्रदूषित होता है।
नवीनतम चुनौतियां
हालांकि, अब 'टॉवर ऑफ साइलेंस' में शवों को रखने का चलन कम हो गया है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पारसी लोग बताते हैं कि अब 'टॉवर ऑफ साइलेंस' के आस-पास आबादी बढ़ रही है, जिससे यह प्रैक्टिकल नहीं रहा। अब शवों को खाने वाले गिद्ध भी कम नजर आते हैं, इसलिए शव को प्राकृतिक तौर पर डीकंपोज नहीं किया जा सकता।
वर्तमान विकल्प
इन वजहों के कारण अब पारसी शवों को या तो जलाते हैं या फिर दफनाते हैं। भारत में पारसी धर्म को मानने वालों की तादाद करीब 70 हजार है, जिनमें से ज्यादातर मुंबई में रहते हैं। इसके अलावा, कोलकाता, गुजरात और चेन्नई में भी पारसी समुदाय मौजूद है। भारत में दो 'टॉवर ऑफ साइलेंस' हैं, जिनमें से दूसरा मुंबई में स्थित है।
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