Bikaner: अस्पताल में जुड़वा बच्चों की किलकारी! डॉक्टर बोले- 'एलियन' जैसा चेहरा!
Alien-like baby: बीकानेर जिले के नोखा कस्बे में एक अस्पताल में जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ, जिनकी त्वचा में ऐसी दुर्लभ बीमारी है कि यह प्लास्टिक जैसी दिखने लगी है। (Alien-like baby)यह विचित्र और दुर्लभ घटना अस्पताल में मौजूद सभी डॉक्टरों और परिजनों के लिए एक बड़ा हैरान कर देने वाला पल बन गई। इन बच्चों की त्वचा बहुत सख्त और असामान्य दिखाई देती है, जो सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग है। बच्चों की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में ट्रांसफर किया गया, जहां अब उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।
करोड़ों में एक बीमारी
बीकानेर जिले के नोखा कस्बे में जन्मे जुड़वां बच्चों की स्थिति ने डॉक्टरों और परिजनों को हैरान कर दिया। दोनों बच्चों को हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस नामक एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी है, जो केवल तीन से पांच लाख में से एक बच्चे में पाई जाती है। इस बीमारी में बच्चों की त्वचा इतनी सख्त हो जाती है कि यह प्लास्टिक जैसी दिखती है और शरीर की अंदरूनी संरचना पर एक मोटी परत बन जाती है।
डॉक्टरों ने बताया, इलाज की संभावना पर भी जताई चिंता
डॉ जी एस तंवर ने बताया कि बताया कि यह भारत में पहली बार संभवतः इस बीमारी का मामला है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि ऐसे बच्चे बहुत ही कम समय तक जीवित रहते हैं। इस बीमारी के कारण बच्चों की त्वचा जगह-जगह से फटी हुई होती है और यह गंभीर रूप से प्रभावित होती है। हालांकि, अगर इन बच्चों को सही देखभाल और उपचार मिले, तो कुछ वर्षों तक जीवित रहने की संभावना रहती है।
डॉक्टर के मुताबिक, हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस एक आनुवंशिक बीमारी है, जो मां-बाप के जीन में गड़बड़ी के कारण नवजात में विकसित होती है। इस बीमारी में नवजातों की त्वचा में मोटी परत होती है, जो समय से पहले शरीर को पूरी तरह से ढक लेती है।
इचिथोसिस बीमारी की गंभीरता: ठीक होने की केवल 10% संभावना
इचिथोसिस नामक इस दुर्लभ बीमारी में, यदि दोनों माता-पिता के क्रोमोसोम संक्रमित होते हैं, तो बच्चे में यह बीमारी उत्पन्न हो सकती है। इस बीमारी में नवजात के शरीर पर एक सख्त परत विकसित हो जाती है, जो समय के साथ फटने लगती है और इससे उत्पन्न होने वाला दर्द असहनीय होता है। संक्रमण के बढ़ने पर, बच्चे का जीवन बचाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की केवल 10% संभावना होती है कि वे पूरी तरह से ठीक हो सकें, लेकिन उन्हें जीवनभर त्वचा संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी त्वचा सख्त हो जाती है और उन्हें सामान्य जीवन जीने में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति उनके लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
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