Banswara: अनेकों बेसहारा बेटियों के लिए पिता और मां बने नरोत्तम पंड्या
Banswara: बांसवाडा। ना कोई रक्त संबंध और न कोई परिवार का सदस्य है। बस पीड़ित बालिका के बारे में जानकारी मिलते ही उसे अपनी बेटी की तरह अपना लेते हैं। जब तक वह अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती या हाथों में कोई हुनर नहीं आ जाता है। वह पूरी तरह से अपनी छत्रछाया में रखकर आत्मनिर्भर बनाने का निरंतर प्रयास करते हैं। किसी प्रकार की सरकार की ओर से आर्थिक मदद नहीं मिलने पर भी नरोत्तम पंड्या एक मां की तरह कई बेटियों के लिए मां की भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं।
जनजाति से बहुल बांसवाडा में आश्रम
नरोत्तम पंड्या पुरुष होने पर मां की भूमिका का निर्वहन करने वाले व्यक्ति हैं। जो जनजाति से बहुल बांसवाडा में निराश्रित बालिकाओं को पिता की तरह प्यार देते है। तो आंचल तले मां जैसा वात्सल्य भी देते हैं। बांसवाड़ा और उदयपुर संभाग मुख्यालय पर मां उमा निराश्रित बालिका आश्रय सेवा संस्थान का संचालन कर रहे है। समाजसेवी नरोत्तम पंड्या वर्तमान में 70 निराश्रित बालिकाओं के अभिभावक हैं। इसमें उदयपुर आश्रम में 40 और बांसवाड़ा आश्रम में 30 बेसहारा बालिकाएं रहती हैं।
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घर जैसा वातावरण देने पर जोर
उन्होंने सभी को घर जैसा वातावरण दिया है। कमजोर आर्थिक (Banswara) पारिवारिक परिस्थितियों में जन्म लेने वाले पंड्या ने 12 वर्ष पहले 2012 में आश्रय सेवा संस्थान (Banswara) का संचालन आरंभ किया था। उसके बाद से वे 6 से 18 वर्ष तक की अनेकों ऐसी बालिकाओं का पालन पोषण कर चुके हैं। जिनके परिवार में कोई सदस्य नहीं है। उनके माता-पिता का निधन (Banswara) हो गया है। कई ऐसी किशोर बालिकाओं को भी वे संरक्षण प्रदान कर रहे हैं।
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आश्रय सेवा संस्थान का संचालन
जो दुष्कर्म की घटनाओं का शिकार हुई हैं। नरोत्तम पंड्या आश्रय सेवा संस्थान का संचालन किराए के भवन में कर रहे हैं। उन्हें 12 वर्षों में राज्य अथवा केंद्र सरकार की ओर से किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली है। इन बालिकाओं के रहने, भोजन, वस्त्र आदि की व्यवस्था करने में अध्यापिका पत्नी ट्विंकल पंड्या का सबसे बड़ा सहयोग रहा है। वहीं पहले पत्नी भी साथ सेवा के कार्य में हाथ बंटाती थी। तब आर्थिक संकट आड़े आ रहा था। तो उन्होंने पत्नी को शिक्षिका बनने के लिए प्रेरित किया था।
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बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाया
आज इसी प्रेरणा से शिक्षिका बनने के बाद संस्थान के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उनके संरक्षण में निराश्रित बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई कढ़ाई बुनाई जैसा हुनर भी दिया जा रहा है। नरोत्तम पंड्या के साथ सहयोगी के रूप में हेमंत कोरी, करणसिंह, नारायण चरपोटा, विजेता पंचाल, अनिता यादव, शीला पंचाल, सेजल, वीणा उपाध्याय, कला चरपोटा देखरेख एवं संरक्षण वाली बालिकाओं के जीवन को मुख्य दिशा दे रही हैं।