Nagaur: जायल का मायरा फिर से चर्चा में! भाइयों ने भरा दो करोड़ का भात...जानिए पूरी कहानी!
Nagaur News: राजस्थान के ऐतिहासिक जायल तहसील के बुरड़ी गांव में एक दिलचस्प और ऐतिहासिक घटना घटी है, जिसने न केवल गांव बल्कि पूरे क्षेत्र को हैरान कर दिया है। दो भाइयों ने अपनी बहन के बेटे की शादी में ऐसा मायरा भरा, जो आज से पहले किसी ने नहीं सोचा था। इस मायरे में भरी गई 2 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति ने (Nagaur News)इसे मुगलकाल के जायल के मायरे से जोड़ते हुए एक नई मिसाल कायम की है।
राजस्थान के बुरड़ी गांव में एक ऐसा मायरा भरा गया है, जिसे सुनकर न सिर्फ लोग दंग रह गए, बल्कि यह एक ऐतिहासिक पल बन गया। सेवानिवृत्त शिक्षक रामनारायण झाड़वाल ने अपनी बेटी संतोष के बेटे रामेश्वर ढाका की शादी में न केवल पारंपरिक धरोहरों का पालन किया, बल्कि एक नई परंपरा का निर्माण भी किया। 1 करोड़ 1 लाख रुपये की नकद राशि, 30 लाख का प्लॉट, 25 तोला सोना, 5 किलो चांदी, और भी कई अनमोल चीज़ों के साथ एक ट्रैक्टर-ट्रॉली भरकर बाजरी और देशी घी से भरा मटका, यह सब कुछ मिलाकर इस मायरे ने एक नया इतिहास रच दिया।
बुरड़ी गांव से मालगांव तक का ऐतिहासिक काफिला
मायरा भरने के लिए बुरड़ी गांव से मालगांव की ओर रवाना हुआ ढाई सौ कारों का काफिला, और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। इस ऐतिहासिक घटना ने न केवल क्षेत्र के लोगों को आकर्षित किया, बल्कि पूरी इलाके में मायरे की चर्चा का नया दौर शुरू कर दिया। खास बात यह थी कि मायरा भरने से पहले, गांव की सीमा पर स्थित खेजड़ी के पेड़ को चुनरी ओढ़ाकर भाइयों ने पारंपरिक रस्मों का पालन किया, जो कि मायरे की परंपरा के एक अहम हिस्से के रूप में मानी जाती है।
क्या है जायल-खियाला का मायरा?
जायल के खियाला गांव का मायरा, जो मारवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रसिद्ध है, पुराने समय से ही चर्चा का केंद्र रहा है। यह मायरा खासकर मुग़लिया सल्तनत के दौरान प्रसिद्ध हुआ, जब खियाला गांव के दो भाइयों धर्माराम और गोपालराम ने एक महिला की मदद करने के लिए अपने पूरे राजस्व के पैसे से मायरा भर दिया था। यह परंपरा आज भी मारवाड़ की महिलाओं के लोकगीतों में जीवित है और जायल का मायरा क्षेत्रीय इतिहास और संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर बन चुका है।
कहा जाता है कि एक बार जब ये दोनों भाई दिल्ली जा रहे थे, उन्होंने रास्ते में एक महिला को रोते हुए देखा, जो अपनी आर्थिक स्थिति की वजह से आत्महत्या करने वाली थी। उसके बेटे की शादी थी, लेकिन वह मायरा नहीं भर सकती थी क्योंकि उसके पास कोई भाई नहीं था। इस पर धर्माराम और गोपालराम ने महिला की मदद की और राजस्व के सारे पैसे खर्च करके उसके घर मायरा भर दिया। बादशाह के दरबार में यह घटना पहुंची, और हालांकि शुरुआत में उन्हें सजा देने की बात हुई, लेकिन अंत में दोनों भाइयों को माफ कर दिया गया, क्योंकि उनके नेक कार्य की असलियत सामने आई।
परंपरा का जीवित उदाहरण
बुरड़ी गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक रामनारायण झाड़वाल और उनके दोनों बेटे डॉ. अशोक झाड़वाल और रामकिशोर ने मायरा भरने की परंपरा को फिर से जीवित किया। उन्होंने अपने परिवार की एकता और परंपराओं का सम्मान करते हुए यह ऐतिहासिक कदम उठाया, जिससे पूरे इलाके में एकता और भाईचारे का संदेश गया। यह मायरा न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि कैसे पारंपरिक रस्में आज भी लोगों के दिलों में स्थान रखती हैं।
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