दुनिया का अनोखा मंदिर! जहां शिवलिंग तीन बार रंग बदलता है और भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है
Maha Shivratri 2025: भारत में महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और शिव की कृपा प्राप्त करने का अद्भुत अवसर माना जाता है। इस वर्ष 26 फरवरी, बुधवार को यह पावन पर्व मनाया जाएगा, जहां पूरे देशभर में शिव मंदिरों में रात्रि के चारों प्रहरों में विशेष पूजा-अर्चना होगी। (Maha Shivratri 2025 )मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की कृपा पाने से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और सौभाग्य का द्वार खुलता है। राजस्थान के माउंटआबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। इस मंदिर का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। माउंटआबू को ‘अर्धकाशी’ कहा जाता है, क्योंकि यहां भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर स्थित हैं।
अर्बुदांचल की पहाड़ियों में बसा पवित्र माउंटआबू
राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंटआबू न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी उतना ही गहरा है। यहां कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशिष्ट है। इन्हीं मंदिरों में से एक है अचलेश्वर महादेव मंदिर, जो अपने अद्वितीय स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है।
भगवान शिव के अंगूठे की पूजा का अनूठा मंदिर
अधिकतर शिव मंदिरों में भगवान शिव की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है, लेकिन अचलेश्वर महादेव मंदिर में शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। यह मंदिर पांच हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है। इस मंदिर में जल अर्पित करने पर यह पता नहीं चलता कि पानी कहां चला जाता है। इसके अलावा, मंदिर के गर्भगृह में 108 छोटे शिवलिंग भी स्थापित हैं।
मंदिर के गर्भगृह में अर्बुद नाग की प्रतिमा के बीच एक रहस्यमयी गहरी खाई बनी हुई है, जो कभी नहीं भरती। इस स्थान पर महाराणा कुम्भा द्वारा स्थापित कालभैरव और अन्य देव प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।
शिव के अंगूठे को लेकर पौराणिक कथा
मान्यता है कि प्राचीन काल में माउंटआबू क्षेत्र में भूकंप आने लगे थे, जिससे देवता चिंतित होकर ऋषि वशिष्ठ के पास पहुंचे। समाधि में ध्यान करने के बाद ऋषि ने पाया कि भगवान शिव के निवास न करने के कारण अर्बुद पर्वत हिल रहा था और यही भूकंप का कारण था। इसके बाद, ऋषि वशिष्ठ ने इस स्थान पर भगवान शिव के अंगूठे को स्थापित किया, जिससे यह पर्वत स्थिर हो गया और इसे अचलेश्वर महादेव नाम मिला।
अचलेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख शिवपुराण और स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी मिलता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो विशाल हाथी की मूर्तियाँ बनी हुई हैं, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं। मंदिर के भीतर एक प्राचीन शिलालेख भी है, जिस पर प्राचीन भाषा में अभिलेख उत्कीर्ण है।
अर्बुदांचल पर्वत की स्थापना की कथा
मंदिर के पुजारियों के अनुसार, इस क्षेत्र में एक गहरी खाई थी, जिसे इंद्रदेव ने बनाया था। एक बार, वशिष्ठ आश्रम की नंदिनी गाय इस खाई में गिर गई। ऋषि वशिष्ठ ने देवी सरस्वती का आह्वान कर गाय को बाहर निकाला। इसके बाद देवताओं ने ऋषि से इस खाई के समाधान का आग्रह किया, तब ऋषि वशिष्ठ ने अर्बुदांचल पर्वत को स्थापित किया।
अचलेश्वर महादेव मंदिर का यह रहस्य और इसकी ऐतिहासिक मान्यताएँ इसे शिवभक्तों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाती हैं।
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