कोटा में अनोखी परंपरा: गुजराती जेठी समाज ने पैरों से रौंदा रावण का पुतला
Kota Dussehra 2024: देशभर में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में शनिवार को विजयादशमी का पर्व मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में राजस्थान के कोटा में गुजराती जेठी समाज एक अनोखी सालों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए दशहरा मनाता है. जेठी समाज की ओर से हर साल विजयदशमी पर्व अपनी 150 साल पुरानी परंपरा निभाते हुए मनाया जाता है जहां बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण का वध पांवों से जेठी समाज के पहलवान करते हैं.
बता दें कि इसके लिए मिट्टी का रावण कई दिनों में तैयार किया जाता है जिसे दशहरे के दिन पैरों से रौंदा जाता है. मालूम हो कि सूबे के हाड़ौती संभाग में जेठी समाज की संख्या बहुत कम है लेकिन विजयदशमी पर जेठी समाज रावण का वध अलग तरीके से करके हर साल अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता है. इस साल भी कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज के लोगों ने हर साल की तरह मिट्टी का रावण बनाकर उसको पैरों से रोंदकर बुराई के प्रतीक का अंत किया.
#Kota: गुजराती जेठी समाज के पहलवानों ने रौंदा रावण मंदोदरी का पुतला, 150 सालों से निभा रहे परंपरा
कोटा में गुजराती जेठी समाज ने विजयदशमी का पर्व अपनी 150 साल पुरानी परंपरा निभाते हुए मनाया. यहां बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण का वध पांवों से जेठी समाज के पहलवनों ने किया.… pic.twitter.com/SdeICz7Nab
— Rajasthan First (@Rajasthanfirst_) October 12, 2024
पहलवान रावण पर करते हैं जोर आजमाइश
जेठी समाज का दशहरा सबसे अलग है जहां रावण कुछ अलग तरीके से बनाया जाता है. समाज के लोग मिट्टी से जमीन पर रावण बनाते हैं. इसके बाद पेशेवर पहलवान जाति के लोग पुरानी परम्परा निभाते हुए उसे पैरों से रौंदते हैं.
बता दें कि जेठी समाज के लोग नवरात्रा के शुभारम्भ में ही मंदिर में मिट्टी का रावण बनाना शुरू करते हैं और बुराई के प्रतीक को आज यानी दशमी के दिन पैरों से रोंदकर उस मिटटी पर पहलवान जोर-अजमाइश कर विजयदशमी का पर्व मनाते हैं.
क्या है परंपरा का ऐतिहासिक किस्सा?
दरअसल हाड़ौती में हाडा राजाओं का शासन था और राजाओं को कुश्ती देखने का बडा शौक था. यही वजह है करीब 150 साल पहले यहां के राजा कुछ पहलवान गुजरात से कोटा बुलवाते थे और उनकी कुश्ती करवाई जाती थी और यह सिलसिला सालों तक चलता रहा और जेठी समाज का कुनबा भी बढता गया.
वहीं यही पहलवान जाति जो दंगल करने के नाम से जानी जाती है जिसके बाद पहलवान आज के दिन उसी शिद्दत से कुश्ती करते हैं जैसे उनके पूर्वज करते आ रहे थे. इसके अलावा बुराई के प्रतीक को पैरों से रोंदने की इस अनूठी परम्परा को देखने के लिए बड़ी तादाद में स्थानीय निवासी और जेठी समाज की महिलाएं और बच्चे भी इस आयोजन में शामिल होते हैं.
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