ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा! शाही ठाठ-बाट, भव्य सवारी और खतरनाक करतबों ने शहर को बना दिया इतिहास का गवाह
Kota News: राजस्थान अपनी विरासत और संस्कृति के लिए देश में अपनी अलग पहचान रखता है। यहां की लोक कलाएं, लोक उत्सव आज भी विरासत की तरह संजोय हुए हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे लोग संस्कृति को महफूज रखा जाता है। यही देखना है तो राजस्थान के कोटा के सांगोद कस्बे में चले आइये। (Kota News) यहां 500 सौ साल पुरानी रियासतकालीन लोक संस्कृति की बेजोड परम्परा आज भी यहां निरन्तर जारी है। होली के ठीक बाद 5 दिनों तक चलने वाले यहा सांगोद के लोक उत्सव न्हाण की आज भी अलग ही रंगत है। हजारो लोग हर साल इसके साक्षी बनते।
राजस्थान फर्स्ट इस खास रिपोर्ट में आपको दिखाता कि कैसे 500 सालों की संस्कृति ,परम्परा आज भी सांगोद कस्बा बडी शिद्दत से निभाते आ रहा है।
न्हाण उत्सव में कस्बा दो पक्षों में हो जाता है विभाजित
कोटा का सांगोद कस्बा हर साल यहां न्हाण शुरू होते ही कस्बे का दो भागों में विभाजन हो जाता है. साल भर यहां सभी धर्मों और जातियों के लोग प्रेम भाईचारे से रहते है. लेकिन, लोकोत्सव के समय एक पक्ष न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा तो दूसरा न्हाण खाड़ा अखाड़ा चौबे पाड़ा बन जाता है। लोकोत्सव के शुरुआती दो दिन चौधरी पाड़ा (बाजार) व अंतिम दो दिन चौबे पाड़ा (न्हाण खाड़ा) पक्ष के आयोजन होते है।
बादशाह की सवारी आकर्षण का रहते है केन्द्र
पहले दिन बारह भाईले एवं दूसरे दिन बादशाह की सवारी निकलती है। बादशाह की सवारी, भवानी की सवारी में निकलने वाली देवी-देवताओं की झांकियां देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते है। संगोद के न्हाण लोकोत्सव के समय दोनों पक्षों के लोग अलग-अलग अंदाज में स्वांग रचाकर लोगों का मनोरंजन करते है।
हर बार कुछ नया करने की दोनों पक्षों में होड़ सी लगी रहती है, दोनों पक्षों की ओर से निकाली जाने वाली बादशाह की सवारी पूरी शानो शौकत से निकाली जाती है। पहले पक्ष का बादशाह पालकी पर सवार होकर निकलता है तो दूसरे पक्ष के बादशाह की सवारी हाथी पर निकलती है। आगे स्वांग स्वरूप व घोड़ों पर सवार होकर छोटे-छोटे अमीर उमराव इसकी शोभा बढ़ाते है। न्हाण में बिना किसी स्वार्थ के दूर दराज से आये किन्नर भी शामिल होते है और अपने नृत्य से लोगों का मनोरंजन करते है।
जादू देखकर हैरत में पड जाते है लोग
न्हाण लोकोत्सव काले जादू के लिए भी जाना जाता है, इसलिए सांगोद को जादुई नगरी भी कहा जाता है। दोनों पक्षों की बादशाह की सवारी के दौरान स्थानीय लोगों की ओर से अनेक प्रकार के जादुई करतब दिखाई जाते है। जिसे देख लोग दांतों तले अंगुलिया दबाने को मजबूर हो जाते है।
सांगोद को जादूगरों की नगरी भी कहा जाता है कहते हैं जादूगरों ने ही सांगोद के लोक उत्सव को अपनी जादुई कला से आकर्षक बनाया है जादू से जुड़े सांगोद के किस आज भी लोक उत्सव के दौरान यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सांगोद के जादूगरों ने बंगाल के जादूगरों को भी मात दी थी, और जादूगरों की नगरी सांगोद आज भी अपनी जादू की विरासत को संभाल रही है। गांव के बुजुर्ग सांगोद के जादू के इतिहास को भी युवा पीढ़ी से साझा करते हैं कविताओं के माध्यम से भी इस लोक उत्सव का बखान बखूबी किया जाता है।
गांव के ही कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी के अद्भुत कला को बखूबी निभाते आ रहे हैं। बादशाह की सवारी के दौरान हैरतअंगेज दिखाने वाले जान जोखिम में डालने वाली कला को शिद्दत से निभाते हुए नजर आते हैं और दर्शकों का हुजूम उनके उत्साह को बढाता रहता है।
मां ब्राह्मणी का रहता है आशीर्वाद...
ब्राह्मणी माता के आशीर्वाद से शुरू होने वाला यह लोक उत्सव 5 दिन तक भक्ति के साथ मनोरंजन में कस्बे के लोगों को डूबा कर रखता है पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस रवायत को निभाने के लिए बुजुर्गों के साथ-साथ युवा भी अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते हैं। भवानी की सवारी अल सुबह 4 बजे निकलती है लेकिन भवानी का स्वरूप ऐसा होता है कि साक्षात भवानी भक्तों के बीच आकर खड़ी हो गई हो लोगों का हुजूम श्रद्धा का सैलाब भवानी की एक झलक पाने को अतुल नजर आता है और भवानी के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए पूरी रात आयोजन में उत्साह के साथ शामिल होता है।
रियासत काल से चली जा रही व्यंगात्मक टिप्पणियों का वार्तालाप का दौर भी उसी अंदाज में चलता है मानो आज से सालों पहले जो देसी अंदाज था उसको आज भी कस्बे के लोगों ने सजोय रखा है। लोक उत्सव की शुरुआत ब्रह्माणी माता मंदिर के सामने घूघरी जुलूस की तैयारियां परवान चढ़ती है।
नगाड़ों की थाप के साथ ही न्हाण की रंगत जमने लग जाती है. लोगों को साल भर सांगोद के न्हाण का इंतजार रहता है। वहीं दूसरी और न्हाण अखाड़ा चौबे पाड़ा की घूघरी का जुलूस दाऊजी के मंदिर से रात को नगाड़ों के थाप के बीच शुरू होती है,, कस्बे की गलियों लोगो से ऐसे गुलज़ार हो जाती है हर शख्स अपनी भागीदारी को बेहतर बनाने में जुटे हो,, गांव के पुराने लोग चौपाइयां बोलते हैं, तो लगता है कि राजस्थान की संस्कृति कला इनको विरासत में इनको मिली है।
500 साल पुरानी रवायत के साथ निकली बादशाह की सवारी
बादशाह की सवारी लोक उत्सव के आकर्षण का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र पीढ़ी दर पीढ़ी लोक उत्सव में बादशाह का रोल निभाने वाले परिवार लोक उत्सव के वक्त राजसी अंदाज में आज भी उसको निभाते हैं। बादशाह का अंदाज बादशाह की तरह होता है। सवारी जब निकलती है तो हजारों लोग बादशाह के ठाठ ,राजसी अंदाज को देखने उमड़ते है...बादशाह के उमराव बनने की होड़ ऐसी लगती है कि प्रत्येक परिवार के बच्चे उमराव की भूमिका में नजर आते हैं। बादशाह का प्रोटोकॉल लोक उत्सव में आज भी रियासत काली अंदाज में निभाया जाता है। बादशाह की शान में कसीदे पढ़े जाते हैं सजी-धजी चारण दंपतियों की सवारियां ऊंट घोड़े पर पहुंचती है और बादशाह के समक्ष अपने बखूबी अंदाज को बयां करती है। बादशाह की सवारी जब अपने अंतिम पायदान पर पहुंचती है तो नजारा बेहद खूबसूरत हो जाता है बादशाह सबकी आंखों का तारा बन जाता है उमराव और बादशाह की सेना ऐसे प्रतीत होती है मानो किसी संग्राम को जीतने के बाद विजय जुलूस का नजारा हो। आईये आपको दिखाते हैं बादशाह की सवारी और रियासत काल से चला रहा बादशाह का अंदाज।
देशभर से आते है किन्नर
सांगोद के लोक उत्सव के प्रति किन्नर समाज का भी जुड़ाव सालों से है आज भी किन्नर समाज के लोग देश के विभिन्न हिस्सों से इस लोक उत्सव में शामिल होकर लोक उत्सव का अहम हिस्सा बनते हैं ब्राह्मणी माता के प्रतीक किन्नर समाज की गहरी आस्था इस लोक उत्सव में उनको बिना बुलाए ही हर साल बुलाती है गांव के लोगों को भी लोक उत्सव में किन्नरो के आने का बेसब्री से राहता है लोग उत्सव के दौरान किन्नर के नृत्य आकर्षण का केंद्र बनते हैं भारी भीड़ का हुजूम किन्नरों को घेरे रहता है।
न्हाण के दौरान कलाकार जोश व उत्साह के साथ अपनी अपनी कलाओं की प्रस्तुतियां देते है। न्हाण लोकोत्सव की सबसे बड़ी खासियत यह है की बिना प्रचार प्रसार किए ही लाखों लोग इस आयोजन का हिस्सा बनते है, बिना आयोजन समिति के संपन्न होने वाले सांगोद का न्हाण लोकोत्सव आज भी लोक संस्कृति की छटा देशभर में बिखेर रहा है।
(कोटा से अर्जुन अरविंद की रिपोर्ट)
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