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खाट बनी बिस्तर, चादर बनी सहारा! कोटा में सड़क पर गूंजी किलकारी, सवालों में स्वास्थ्य व्यवस्था!

जब एक गर्भवती मां को समय पर इलाज न मिले, जब अस्पताल के दरवाजे बंद हों और जब बेबसी सड़कों पर बिखर जाए, तो यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल बन जाती है।
12:29 PM Mar 17, 2025 IST | Rajesh Singhal

Kota News: स्वास्थ्य सेवाओं के बड़े-बड़े दावों के बीच एक हकीकत ऐसी भी है, जो इंसानियत को झकझोर कर रख देती है। जब एक गर्भवती मां को समय पर इलाज न मिले, जब अस्पताल के दरवाजे बंद हों और जब बेबसी सड़कों पर बिखर जाए, तो यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल बन जाती है।

राजस्थान के कोटा जिले से आई यह मार्मिक घटना प्रशासनिक लापरवाही और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली को उजागर करती है। जिले के दक्षिण नगर निगम के वार्ड नंबर 9, (Kota News)रानपुर क्षेत्र में एक गर्भवती महिला को मजबूरी में सड़क पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा।

अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही दर्द ने रास्ता रोक लिया, मदद नहीं मिली, और आखिरकार खाट और चादर के सहारे खुले आसमान के नीचे नवजात की पहली किलकारी गूंजी। यह सिर्फ एक मां की मजबूरी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की हार थी, जिसने एक जीवन के स्वागत को त्रासदी में बदल दिया। इस घटना के बाद प्रशासन में हड़कंप तो मचा, लेकिन सवाल यह है....क्या यह किसी और मां के साथ दोबारा नहीं होगा?

एंबुलेंस नहीं आई, दर्द बढ़ता गया...

रविवार सुबह करीब 9 बजे कालीबाई भील को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। परिवार और ग्रामीणों ने तुरंत 108 एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन एंबुलेंस आने में देर होती रही। कालीबाई के पति सोनू भील के पास अस्पताल जाने का कोई दूसरा साधन नहीं था। बड़ी मुश्किल से वह उसे गांव के मुख्य चौराहे तक लेकर आया, जहां दोबारा 108 को फोन किया गया, लेकिन फिर भी एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच सकी।

सड़क पर बिछी खाट और बनी डिलीवरी रूम!

कालीबाई की हालत तेजी से बिगड़ रही थी। दर्द असहनीय हो चुका था, और मदद की कोई उम्मीद नहीं थी। ऐसे में गांव की कुछ महिलाओं ने खाट का इंतजाम किया, उसे चादर से ढककर एक अस्थायी प्रसव कक्ष बना दिया। कालीबाई ने सड़क पर ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। मां और बच्चे की पहली सांसें सिस्टम की असफलता के बीच गूंजीं, जिसने सभी को झकझोर कर रख दिया।

जब बच्चे का जन्म हो चुका था, तब जाकर कोटा से करीब एक घंटे की देरी के बाद एंबुलेंस पहुंची। ग्रामीणों का कहना था कि अगर यह समय पर आ जाती, तो कालीबाई को इस संकट से नहीं गुजरना पड़ता। आखिरकार, जच्चा-बच्चा को मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने दोनों को स्वस्थ बताया।

6,000 की आबादी लेकिन स्वास्थ्य सुविधा शून्य! 

स्थानीय निवासी शुभम जैन बताते हैं कि पहले रानपुर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) था, लेकिन क्षेत्र को नगर निगम में शामिल करने के बाद इसे बंद कर पुनिया देवरी गांव में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां कोई आबादी ही नहीं है। दूसरी ओर, रानपुर में 6,000 से अधिक लोग रहते हैं और 20 अन्य गांव भी इस क्षेत्र पर निर्भर हैं, लेकिन यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का नामोनिशान नहीं है।

इस घटना के बाद ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश है। उनका कहना है कि अगर गांव में एक स्थायी 108 एंबुलेंस तैनात होती और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चालू रहता, तो कालीबाई को इस दर्दनाक स्थिति से न गुजरना पड़ता। क्षेत्रवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द स्वास्थ्य केंद्र फिर से खोला जाए और 108 एंबुलेंस की स्थायी तैनाती की जाए, ताकि भविष्य में कोई और गर्भवती महिला ऐसी स्थिति का शिकार न हो।

क्या इस घटना के बाद बदलेगी व्यवस्था?

प्रशासन अब हरकत में जरूर आया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक दिन की चिंता तक सीमित रहेगा, या फिर वास्तव में कोई ठोस समाधान निकाला जाएगा? क्या कोई और मां अस्पताल न मिलने की वजह से सड़क पर अपने बच्चे को जन्म देने को मजबूर नहीं होगी? इन सवालों के जवाब अब सरकार और प्रशासन को देने हैं।

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