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Kota News: भजनलाल सरकार का भक्तों को तोहफा, मथुरा से लेकर उज्जैन तक कोटा के रास्ते बनेगी श्री कृष्ण गमन पथ

Kota News: राजस्थान में रहने वाले कृष्ण भक्त धन्य है। राज्य के कोटा-बूंदी-झालावाड़ जिलों (Kota News) से होकर भजनलाल सरकार ने घोषित किया श्री कृष्ण गमन पथ यहां होकर गुजरेगा। प्रदेशवासी भगवान कृष्ण की लीलाओं और करीब से जान सकेंगे...
02:35 PM Aug 28, 2024 IST | Ritu Shaw

Kota News: राजस्थान में रहने वाले कृष्ण भक्त धन्य है। राज्य के कोटा-बूंदी-झालावाड़ जिलों (Kota News) से होकर भजनलाल सरकार ने घोषित किया श्री कृष्ण गमन पथ यहां होकर गुजरेगा। प्रदेशवासी भगवान कृष्ण की लीलाओं और करीब से जान सकेंगे और देश दुनिया के कृष्ण भक्त यहां आएंगे तो धार्मिक टूरिस्ट यहां बढ़ेगा। क्षेत्र आर्थिक उन्नति करेगा।

यूपी के मथुरा से लेकर मध्य प्रदेश के उज्जैन तक बनेगा श्री कृष्ण गमन पथ

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली उत्तर प्रदेश के मथुरा से लेकर मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित गुरुकुल सांदीपनी आश्रम तक श्रीकृष्ण गमन पथ बनेगा। भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित कुछ और पौराणिक स्थलों को जोड़ते हुए बनने वाले इस धार्मिक सर्किट का एक बड़ा हिस्सा हाडौती में होगा। चंबल नदी और इसकी सहायक नदी 'घोड़ा पछाड़' के किनारे-किनारे गमन पथ होगा। नदियों के किनारे की कराइयों वाली चट्टानों और गुफाएं में ऐसे प्रमाण मौजूद हैं जो द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण का हाड़ौती की धरा में उनका पदार्पण बताते हैं।

गरड़दा के पास हैं शैलचित्र

द्वापर में भगवान श्री कृष्ण का हाडोती में उनके पदार्पण का एक प्रमुख प्रमाण है बूंदी जिले में स्थित घोड़ा पछाड़ नदी किनारे गरड़दा के पास गुफा में बना शैलाश्रय या शैलचित्र हैं। बूंदी के पुरा अन्वेषक ओमप्रकाश शर्मा (कुक्की) ने साल 1999 में इनकी खोज का दावा किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम भी 5 मई 2023 को गरड़दा आ चुकी है। टीम में रहे एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद विनयकुमार गुप्ता ने इन शैलचित्रों को मौर्यकालीन (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) का बताया है। अभी ईसा बाद की 21वीं शताब्दी है। इस तरह चित्र करीब 2400 साल पुराने मान सकते हैं। पंचवृष्णि चित्रों में कतारबद्ध पांच पुरुष वीरों की आकृतियां हैं।

घोड़ा पछाड़ थी अश्वी नदी

बूंदी जिले में बहने वाली घोड़ा पछाड़ नदी का पुराणों में अश्वी नदी के नाम से उल्लेख है। मां लक्ष्मी का भी एक नाम अश्वी है। कुक्की के अनुसार संभव है कि अश्वी नदी को ही घोड़ा पछाड़ कहा जाने लगा। इस लिहाज से 'अश्वी' नदी अपभ्रंश में अश्व और फिर अश्व के अर्थ में घोड़ा पछाड़ कही जाने लगी हो। नदी 30-40 किमी दायरे में प्राचीन सभ्यता रही और संभवतः श्रीकृष्ण-बलराम के सबसे प्राचीन शैलचित्र यहीं के हैं। ऐसे में कहा गया है कि प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुई। पानी और वनस्पति होती थी। गुफाओं में प्राकृतिक आपदाओं और वन्यजीवों से सुरक्षा हो जाती थी। कुक्की के अनुसार गरडदा के पास विशाल आकार की कंदराएं हैं। सैकड़ों लोग उनमें रह सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से उज्जैन गए तब संभव है कि उनके साथ लवाजमा रहा होगा। ठहरने के लिए गुफाएं अनुकूल रही होंगी।

चंबल में बहाया था कर्ण को

पुरा अन्वेषक कुक्की के मुताबिक महाभारत के प्रसंग कुंती के अपने ज्येष्ठ पुत्र कर्ण को पानी में बहा देने का संबंध भी हाड़ौती से बताते हैं। कुंती ने कर्ण को एक टोकरे में रखकर नदी में बहा दिया था। यह नदी चर्मण्यवती (चंबल) थी। इसी की सहायक नदी अश्वी यानी घोड़ा पछाड़ नदी है। यह स्थान मौजूदा मध्यप्रदेश के भींड-मुरैना के आसपास बताते हैं। इसका प्रमाण ग्वालियर के म्यूजियम में संग्रहित है।

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