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JLF 2025: 'दियासलाई'... कैलाश सत्यार्थी ने शर्मा सरनेम हटाकर सत्यार्थी क्यों लगाया? जानें

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की ऑटोबायोग्राफी दियासलाई भी लॉन्च की गई।
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JLF 2025 Jaipur: राजस्थान के गुलाबी शहर में साहित्य के महाकुम्भ जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज हो चुका है,(JLF 2025 Jaipur) अब 3 फरवरी तक देश-दुनिया की साहित्य से जुड़ी हस्तियां आएंगी और अलग-अलग सेशन से समाज को साहित्य से रू-ब-रू कराएंगी। JLF 2025 के पहले दिन गीतकार जावेद अख्तर के अलावा साहित्यकार सुधा मूर्ति और कैलाश सत्यार्थी के सेशन हुए...

कैलाश सत्यार्थी ने क्यों बदला सरनेम?

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कैलाश सत्यार्थी के दियासलाई सेशन का आयोजन हुआ। जिसमें कैलाश सत्यार्थी ने खुद के संघर्ष के बारे में बताया। कैलाश सत्यार्थी ने यह भी बताया कि उन्होंने अपना सरनेम शर्मा से बदलकर सत्यार्थी क्यों रख लिया? दियासलाई सेशन में कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के ब्राह्मण परिवार में हुआ, वह पहले अपना नाम कैलाश शर्मा लिखते थे। मगर जातिवादी सोच को देखकर मैंने शर्मा सरनेम हटाकर सत्यार्थी लगा लिया। इसके लिए उन्हें परिवार और समाज की नाराजगी भी झेलनी पड़ी।

कैलाश सत्यार्थी का किस्सा एक तस्वीर

JLF में कैलाश सत्यार्थी ने एक मजेदार किस्सा भी सुनाया। कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि वह हमेशा नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ तस्वीर खिंचवाना चाहते थे। एक बार दलाई लामा से मुलाकात भी हुई, मगर तस्वीर खिंचवाने का मौका नहीं मिल सका और उनका यह ख्वाब अधूरा ही रहा। बाद में कैलाश सत्यार्थी को ही नोबेल पुरस्कार की घोषणा हुई, जिसका एक पत्रकार से उन्हें पता लगा तो पहले कैलाश शीशे के सामने खड़े होकर अपनी तस्वीर क्लिक करने लगे और इस तरह एक नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ उनकी तस्वीर का ख्वाब पूरा हुआ।

कैलाश सत्यार्थी की दियासलाई लॉन्च

जयपुर लिटरेटर फेस्टिवल में कैलाश सत्यार्थी की ऑटोबायोग्राफी दियासलाई लॉन्च की गई। इस दौरान कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि जब वह महज 15 बरस के थे, तब उन्हें एक कविता ने मोमबत्ती-अगरबत्ती की जगह दियासलाई बनने को प्रेरित किया। गौरतलब है कि कैलाश सत्यार्थी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। वह सामाजिक कार्यों में रुचि रखते हैं और खासतौर से बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे हैं।

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