सर मिर्जा इस्माइल: जयपुर की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाला मुस्लिम दीवान, जानें कैसे संवारी थी पिंकसिटी की खूबसूरती
Jaipur Mirza Ismail: देश से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में कई ऐतिहासिक जगह, सड़कें और स्मारकों के नाम बदलने की कवायद चल रही है जिसकी तर्ज पर अन्य कई शहरों में भी ये पैटर्न अपनाया जा रहा है. इसी कड़ी में देश का छोटी काशी कहे जाने वाले शहर जयपुर में भी नाम बदलने की सुगबुगाहट लंबे समय से चल रही है जहां कई मार्गों और गलियों के नाम बदलने के साथ ही ताजा मामला शहर की एमआई रोड़ का है जिसके नाम बदलने को लेकर रूक-रूककर सियासत और बयानबाजी होती रहती है. अब एक बार फिर मामला गरम है जहां शहर की चर्चित मिर्जा इस्माइल (MI) रोड के नाम बदलने की मांग सिविल लाइंस से भाजपा विधायक गोपाल शर्मा ने उठाई है.
शर्मा का कहना है कि मिर्जा इस्माइल जनविरोधी और कलंकित व्यक्ति था ऐसे में मिर्जा इस्माइल रोड का नाम बदलकर उसका नाम गोविंद देव मार्ग रखा जाए. भाजपा विधायक ने हाल में मिर्जा इस्माइल को देशद्रोही करार देते हुए कहा कि वे जनता के विरोधी और एक धर्म विशेष के समर्थक थे और उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें जनता के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था और यही कारण था कि उन्हें पहले मैसूर और फिर जयपुर से भी हटना पड़ा.
बता दें कि एमआई रोड़ का नाम बदलने की इस पूरी सुगबुगाहट में चर्चा का केंद्र मिर्जा इस्माइल बने हुए हैं, ऐसे में आइए जानते हैं कौन थे मिर्जा इस्माइल और उनके नाम पर जयपुर में एक सड़क का नाम कैसे पड़ा.
मैसूर के आर्किटेक्ट थे मिर्जा इस्माइल
24 अक्टूबर, 1883 को मिर्जा इस्माइल का जन्म मैसूर में हुआ था वो एक उम्दा किस्म के आर्किटेक्ट थे. उन्होंने मैसूर शहर की तर्ज पर और लंदन की एक गली से प्रेरणा लेते हुए जयपुर के एमआई रोड़ बाजार को बनाया था. दरअसल 1922 में माधोसिंह के निधन े बाद सवाई मानसिंह के शासनकाल में शहर में कई प्रगतिशील सुधार किए गए. इस दौरान जयपुर की जनसंख्या एक लाख से भी कम बताई जाती है लेकिन मानसिंह दूरदर्शी थे और उनकी शहर को लेकर कल्पना परकोटे से बाहर जाने लगी.
मानसिंह उस दौर में अपनी कल्पनाओं को साकार रूप देने के लिए आधुनिक विचारों वाले एक शख्स की तलाश कर रहे थे और उनकी तलाश मिर्जा इस्माइल पर जाकर पूरी हुई. उस जमाने में मैसूर राज्य का बड़ा नाम था और अंग्रेजों का मानना था कि यह देश का सबसे समृद्ध रजवाड़ा है. मैसूर के महाराजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ ने अपने दीवान सर मिर्जा मुहम्मद इस्माइल के साथ मैसूर राज के विकास में चार चांद लगाए थे. बताया जाता है कि मैसूर को देखकर महात्मा गांधी भी उसे अपने सपनों का रामराज्य कहा करते थे.
1942 में मिर्जा बने जयपुर के दीवान
वहीं 1940 में महाराजा कृष्णराजा की मौत के बाद नए महाराजा धर्मराजा वाडियर से उनकी नहीं बनने के चलते उन्होंने 1941 में मैसूर दीवान पद से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद मिर्जा को कई राज्यों से दीवार का ऑफर मिला और उसमें एक जयपुर के सवाई मानसिंह भी थे जिन्होंने सर मिर्जा से कहा कि आप हमारे जयपुर को मैसूर जैसा करके दिखाएं.
इसके बाद जून 1942 में सर मिर्जा इस्माइल ने अपना पद सम्भाला और सवाई मानसिंह ने उन्हें 1 साल के लिए जयपुर का दीवान घोषित कर दिया. मिर्जा को पद संभालते ही उन्हें परकोटे के बाहर के दक्षिण हिस्से को संवारने की जिम्मेदारी दी गई थी और इसके बाद मिर्जा का काम देखकर महाराजा सवाई मानसिंह ने उनका कार्यकाल को 2 साल के लिए बढ़ा दिया.
मिर्जा इस्माइल नाम से हुआ सड़क का नामकरण
बताया जाता है कि जब मिर्जा इस्माइल जयपुर छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे तो उस दौरान महाराजा मानसिंह ने उन्हें जयपुर में एक नई सड़क बनाने का काम दिया. मानसिंह ने इस सड़क को अपनी निगरानी में बनवाया जिसकी पांच बत्ती लंदन की तर्ज पर बनाई गई और नामकरण भी उन्होंने सर मिर्जा इस्माइल रोड किया. हालांकि खुद मिर्जा ने इसका नाम एसएमएस हाइवे रखने का कहा था लेकिन सवाई मानसिंह की तरफ से सड़क का नामकरण सर मिर्जा के नाम पर रखा गया. इसके बाद मिर्जा इसमाइल ने एसएमएस अस्पताल, राजस्थान यूनिवर्सिटी का भी डिजाइन तैयार किया.