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जेएलएफ में जावेद अख्तर ने हिंदू-मुस्लिम पर तंज किया, क्या बोला, जानने के लिए दिल थाम के पढ़ें!

जब जावेद अख्तर ने हिंदू-मुस्लिम और कविता से जुड़े सवाल पर अपने खास अंदाज में व्यंगात्मक जवाब दिया
04:25 PM Jan 30, 2025 IST | Rajesh Singhal

Jaipur Literature Festival: दुनियाभर में मशहूर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) का 18वां संस्करण गुरुवार से जयपुर में शुरू हो गया। होटल क्लार्क्स आमेर में आयोजित यह पांच दिवसीय महोत्सव साहित्य, कला और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक बार फिर विचारों का मंच बन गया है। पहले ही दिन, हिंदी सिनेमा के दिग्गज गीतकार और साहित्यकार जावेद अख्तर ने अपनी नई किताब "सीपियां" का विमोचन सुधा मूर्ति के साथ किया।

इस दौरान, "ज्ञान सीपियां" सेशन में जावेद अख्तर ने मातृभाषा के महत्व पर जोर दिया और युवाओं को अंग्रेज़ी के साथ हिंदी से भी जुड़ने की सलाह दी। लेकिन, चर्चा का सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया (Jaipur Literature Festival) जब जावेद अख्तर ने हिंदू-मुस्लिम और कविता से जुड़े सवाल पर अपने खास अंदाज में व्यंगात्मक जवाब दिया। उनकी बातों पर जहां श्रोता सोचने को मजबूर हो गए, वहीं पूरे हॉल में ठहाकों की गूंज भी सुनाई दी। JLF के पहले ही दिन जावेद अख्तर के बेबाक अंदाज ने महफिल लूट ली!

साढ़े पांच सौ साल पुराना दोहा आज भी प्रासंगिक

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने राम रहीम दास के एक ऐतिहासिक दोहे का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह दोहा साढ़े पांच सौ साल पुराना है, लेकिन आज भी हमारी जिंदगी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है... "रहिमन मुश्किल आ पड़ी, टेढ़े दोऊ काम... सीधे से जग न मिले, उलटे मिले न राम"।

"हिंदू-मुसलमान वो होते हैं जो शायरी नहीं कर पाते"

इसी दौरान उनके मित्र और अभिनेता अतुल तिवारी ने टिप्पणी की कि यह दोहा एक मुस्लिम कवि द्वारा 'राम' का जिक्र करने का उदाहरण है। इस पर जावेद अख्तर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया— "कवि तो कवि होता है, बेचारे जो शायरी नहीं कर पाते, वही हिंदू-मुसलमान होते हैं!" उनके इस व्यंग्यात्मक जवाब पर पूरी महफिल हंसी और ठहाकों से गूंज उठी।

"खुद पर ऐतबार नहीं तो दूसरे की तारीफ मुश्किल"

कार्यक्रम के दौरान जब अकबर और रहीम पर चर्चा हो रही थी, तब जावेद अख्तर ने कहा कि... "जिसे खुद पर भरोसा नहीं होता, वह कभी दूसरों की तारीफ नहीं कर सकता।" उन्होंने समझाया कि सच्ची तारीफ वही कर सकता है, जिसके मन में शांति होती है और जिसे खुद पर ऐतबार होता है।

मातृभाषा से जुड़े रहना जरूरी

फेस्टिवल के दौरान जावेद अख्तर की नई किताब "सीपियां" का विमोचन किया गया, जो दोहों पर आधारित है। उन्होंने कहा...
"आज की पीढ़ी को अंग्रेजी के साथ अपनी मातृभाषा से भी जुड़े रहना चाहिए। अगर आप अपनी मातृभाषा से कट जाते हैं, तो समझिए कि आपने पेड़ को तना और शाखाएं तो दी, मगर उसे जड़ों से महरूम कर दिया।"

600 स्पीकर्स ले रहे हैं भाग

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 18वें संस्करण में इस साल 600 से अधिक स्पीकर्स भाग ले रहे हैं। इस दौरान कई लेखकों की नई किताबें लॉन्च होंगी और साहित्य प्रेमियों को विचारों के आदान-प्रदान का बेहतरीन मंच मिलेगा।

 

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