Independence Day 2024: एक गांव ऐसा भी जहां हर घर में पैदा होते हैं फौजी, कई परिवारों में 5वीं पीढ़ी भी सरहद पर तैनात
Independence Day 2024: (रियाजुल हुसैन)। राजस्थान को वीरों की भूमि कहते है। यहां का इतिहास गौरवमयी रहा है। चाहे मुगलों से जंग लड़ने की हो या फिर देश से अंग्रेजों को भगाने की। राजस्थान का अपना अलग ही इतिहास है। इस खबर में हम आपको एक ऐसे गांव की कहानी बताएंगे जिसको फौजियों का गांव भी कहते है। हम बात कर रहे है बूंदी जिले के हिंडौली तहसील के उमर गांव की। इस गांव को फौजियों का गांव भी कहते है। इस गांव से अब तक 500 से अधिक सैनिक सेना को मिल चुके है। प्रथम, द्वतिय विश्वयुद्ध हो या कारगिल की लड़ाई, इस गांव के फौजी कभी पीछे नहीं हटे। कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद भी हो गए। यहां कुछ परिवार तो ऐसे है जिनकी पांचवीं पीढ़ी भी वर्तमान में सेना में है। इस गांव में प्रत्येक घर से तीन से चार लोग सेना में भर्ती है।
फौजियों का गांव है उमर गांव
कोटा-जयपुर हाइवे 52 से करीब 6 किलोमीटर अंदर स्थित उमर गांव को फौजियों का गांव भी कहत है। यहां पर पांचवीं पीढ़ी भी सेना में है। पूर्व सैनिक बताते है कि उमर गांव से अब तक करीब 500 से अधिक सैनिक सेना में रहकर दुश्मनों को जंग में हरा चुके हैं। गांव के दो सैनिक साल 1965 में युद्ध में रघुनाथ मीणआ जम्मू क्षेत्र और साल 2002 में वीर बहादुर जगदेवराज सिंह बिहार में शहीद में हो गए थे।
उग्रवादियों की बारूदी सुरंग से शहीद हुए थे जगदेव सिंह
वीर बहादुर जगदेवसिंह के परिजनों ने बचाया कि 16 फरवरी 2000 में बिहार में चुनाव प्रक्रिया के दौरान 12 सैनिक गाड़ी से जा रहे थे। सड़क पर उग्रवादियों ने बारूदी सुरंग बिछा रखी थी। अचानक हुए विस्फोट के कारण आगे चल रही जीप के टुकड़े-टुकड़े हो गए और गाड़ी में मौजूद जवानों में 5 जवान वहीं शहीद हो गए जबकि जगदेव सिंह घायल हो गए। उन्हें वाराणसी के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी मौत हो गई।
द्वितीय विश्व युद्ध में गांव के 25 सैनिक थे
सेना से रिटायर्ड कैप्टन देवीसिंह मीणा बताते है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर दुश्मनों से लोहा मनवाया। उन्होंने बताया कि उमर गांव से भारतीय सेना में 12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार सहित हवलदार और दर्जनों सिपाही देश की सीमा के प्रहरी रह चुके।
चार से पांच पीढिय़ां सेना में कर रही देश सेवा
उमर गांव में कुछ ऐसे परिवार भी है जिनकी चार से पांच पीढ़िया सेना में है। 1- उमर के रूगा हवलदार ने प्रथम विश्वयुद्ध में जंग लड़ी। बाद में रूगा का बेटा श्रीलाल मीणा सुभाष चन्द्र बोष के आजाद हिंद फौज में गार्ड कमांडर रहा। उसने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा। तीसरी पीढ़ी में कैप्टन देवीसिंह मीणा, जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया। एक सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उन्हें सेना ने उन्हें सम्मानित भी किया। वर्ष 1996 में वह सेना से रिटायर्ड हुए। चौथी पीढ़ी में देवीसिंह मीणा का पुत्र अर्जुन मीणा वर्तमान में हवलदार के पद पर जम्मू कश्मीर बोर्डर पर तैनात है।
2- इसी गांव के सेना में सिपाई छोगा सिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध लड़ा। इसके बाद बेटा हरनाथ मीणा फौज में भर्ती हुआ। इसके बाद हरनाथ का बेटा जगदेव सिंह सैनिक बना, जो वर्ष 2000 में बिहार के झाबुआ में शहीद हो गए। इसके बाद जगदेव का बेटा देवराज मीणा सीआरपीएफ में भर्ती हो गया। वह वर्तमान में भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर तैनात है।
3- गांव के गणेशराम मीणा ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा। फिर बेटे कानाराम मीणा ने फौज में हवलदार रहते हुए 1965 में भारत चाइना की जंग लड़ी। तीसरी पीढ़ी में जगदीश मीणा (कैप्टन), हरचंद मीणा (नायब सूबेदार) एवं प्रभुलाल मीणा (हवलदार) फौज में भर्ती हुए। अब चौथी पीढ़ी में शिवप्रकाश मीणा और प्रवीण कुमार फौज में भर्ती हो गए।
4- सैनिक रामनारायण और भंवरलाल ने द्वितीय विश्वयुद्ध लड़ा। इसके बाद प्रताप, मोतीलाल और श्रीलाल सेना में भर्ती हुए। इन्होंने 1971 में भारत पाकिस्तान का युद्ध लड़ा। 1971 में लड़ाई के दौरान कजोड़ लाल सेना में भर्ती हुआ। जिसने 1971 की जंग के साथ वर्ष 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई में बोर्ड पर तैनात रहकर दुश्मनों से लड़ाई लड़ी।
ना हॉस्पिटल ना सड़क, रोडवेज भी बंद कर दी
रिटायर्ड फौजियों ने बताया कि भले देश की सेना में यहां से सैकड़ों युवाओं ने भर्ती होकर दुश्मनों से लड़ाई लड़ी हो। लेकिन कई वर्षों बाद भी यहां जनसुविधाओं का अभाव है। अस्पताल के नाम पर स्वास्थ्य केंद्र है, जिसमे केवल एक नर्सिंग कर्मी होती है। अगर कोई इमरजेंसी हो जाये तो या तो देवली या फिर कोटा जाना पड़ता है। उमर गांव को कोटा आर्मी हैड क्वार्टर ने गोद लिया। लेकिन फिर भी गांव को कोई सुविधा नहीं मिली। यहां आने वाली कैंटीन गाड़ी भी पिछले कई वर्षों से बंद हो गई। ऐसे में जरूरत के सामानों की खरीद करने के लिए कोटा जाना पड़ता है।
70 वर्षीय नानी देवी बोली नही चल रहा घर गुजारा
इस गांव में शहीद रंगलाल मीणा की 70 वर्षीय पत्नी नानी देवी आज भी अपने पति की तस्वीर लिए बैठी थी। जब उनसे बात की तो बोली कि जो पेंशन मिल रही है, उसमें घर नहीं चल रहा है। आगे इतना ही बता पाई कि उनके पति ने लड़ाई लड़ी थी। हालांकी उम्र अधिक होने से उन्हें अब ज्यादा कुछ याद नहीं है। उनके पोते दीपक ने बताया की दादा के चार भाई थे जिसमें दादा रंगलाल और उनके भाई प्रभूलाल तो सेना में और दो अन्य विभागों में थे।
धीरे धीरे कम हो रहा कुनबा
फौजियो के गांव में अब धीरे धीरे सीमा बॉर्डर पर लड़ाइयों के किस्से सुनाने वाले रिटायर्ड सैनिकों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में कम हो गई है। एक सेवानिवृत्त सैनिक ने बताया कि गांव के चतर्भुज, रामकिशन, मोहन, रंगलाल, श्योजी, हरलाल, जगदीश, केलाराम, रंगलाल बासनी और हजारी लाल का सेवानिवृत्त के बाद निधन हो चुका है। इनके कई के बच्चे और अन्य परिजन वर्तमान में फ़ौज में तैनात है।