Independence Day 2024: मानगढ़ पहाड़ी से बजा था आजादी का बिगुल, गोविंद गुरु ने मिट्टी से प्रेम करने का दिया था संदेश
Independence Day 2024: (मृदुल पुरोहित) बांसवाड़ा जिले ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजस्थान के अन्य क्षेत्रों की भांति अपना योगदान दिया है। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ बुलंद आवाज उठाकर स्वतंत्रता के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इसी जिले की मानगढ़ पहाड़ी पर हुए संघर्ष ने बांसवाड़ा सहित समीपवर्ती राज्यों में भी आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मानगढ़ की पहाड़ी पर हजारों आदिवासियों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। मानगढ़ को राजस्थान का जलियांवाला भी कहा जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में बांसवाड़ा के कई वीर नायक उभरे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
अधिकार और स्वतंत्रता के लिए किया संघर्ष
वीर नायकों में से एक थे गोविंद गुरू। गोविंद गुरु के नेतृत्व में डूंगरपुर और बांसवाड़ा के आदिवासियों ने संगठित होकर अपने अधिकार और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को संदेश दिया था कि किसी पर अत्याचार मत करना और न ही किसी अत्याचार को सहना। अत्याचार का पूरी शक्ति के साथ विरोध करना और अपनी मिट्टी से प्रेम करना।
सम्प सभा का गठन
गोविंद गुरू ने अपनी युवावस्था में यहां के आदिवासियों की दयनीय दशा देखी और तत्कालीन शासकों और अंग्रेजों का शोषण देखा तो उन्हें संगठित और शिक्षित करने का संकल्प लिया। गोविंद गुरू ने आदिवासियों को जगाने के लिए गीतों का प्रयोग किया, जिससे संगठन की शक्ति मूर्त रूप लेने लगी। गोविंद गुरु ने धार्मिक शिक्षा देने के साथ ही नशामुक्ति, बेगारी और सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन करने के लिए आदिवासियों को संगठित कर 1883 में सम्प सभा का गठन किया।
अंग्रेज हुए चिंतित
गोविंद गुरू द्वारा सम्प सभा का गठन करने के बाद इसके अधिवेशन होने लगे। इन अधिवेशनों में बड़ी संख्या में आदिवासी सम्मलित होने लगे। गोविंद गुरु के संदेश को आत्मसात कर अंग्रेजी दासता से मुक्ति के जतन करने लगे। सम्प सभा के माध्यम से आदिवासियों में आई जागरुकता को देख अंग्रेजी हुकूमत भी चिंतित हुई। अंग्रेजों ने गोविंद गुरु के खिलाफ वातावरण बनाने का असफल प्रयास किया।
खून से सन गई पहाड़ी
ब्रिटिश शासन द्वारा अत्याचार बढ़ाने पर गोविंद गुरू ने उनके खिलाफ आवाज़ उठाई। 17 नवंबर 1913 को मानगढ़ पहाड़ी पर सम्प सभा के बुलाए अधिवेशन में हजारों की संख्या में आदिवासी इकट्ठा हुए। इसमें अकाल झेल रहे आदिवासियों से लिए जा रहे कृषि कर को कम करने, बेगार के नाम पर अत्याचार नहीं करने और धार्मिक परम्पराओं का पालन करने देने की पैरवी की गई। लेकिन कर्नल शटन के निर्देश पर मानगढ़ की पहाड़ी को घेर लिया और अंग्रेजों ने आदिवासियों पर गोली चला दी। जिससे मानगढ़ की पहाड़ी खून से सन गई। इसमें हजारों आदिवासी शहीद हो गए।
गोविंद गुरू के पैर में लगी गोली
वहीं इस दौरान गोविंद गुरू के पैर में गोली लग गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें फांसी और फिर आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 1923 में जेल से मुक्त होकर वे गुजरात चले गए। भील सेवा सदन, झालोद के माध्यम से जनसेवा करते रहे। 30 अक्टूबर, 1931 को गुजरात के गांव कम्बोई में उनका निधन हुआ। किंतु मानगढ़ की पहाड़ी पर आदिवासियों की राजस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई।
धूणी पर श्रद्धा से नमन
मानगढ़ राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासियों का प्रमुख श्रद्धा केंद्र है। यहां गोविंद गुरु की धूणी पर आदिवासी श्रद्धा से नमन करते हैं। यहां शहीद स्तंभ सहित विभिन्न प्रकार के विकास कार्य हुए। गोविंद गुरु के जीवन पर आधारित संग्रहालय भी स्थापित किया है। राजस्थान का यह जलियांवाला आज भी आजादी के महानायकों के संदेशों का अनुसरण करने की प्रेरणा देता है।
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