हिंदू का मतलब है विश्व का सबसे उदारतम मानव जो सब कुछ स्वीकार करता है: डॉ. मोहन भागवत
Mohan Bhagwat :अलवर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में हिंदू धर्म की वैश्विक पहचान पर जोर देते हुए इसे "सबके कल्याण की कामना करने वाला विश्व धर्म" करार दिया। भागवत ने कहा कि हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सभी को स्वीकार करने और मानवता की सेवा करने की भावना है।
डॉ. भागवत ने हिंदू धर्म को केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा न मानते हुए इसे एक वैश्विक धर्म के रूप में प्रस्तुत किया जो सभी के कल्याण की कामना करता है। उन्होंने हिंदू अनुयायियों को "विश्व का सबसे उदारतम मानव" बताते हुए कहा कि हिंदू व्यक्ति की पहचान उसकी सबके प्रति सद्भावना और सभी चीजों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति से होती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म का ज्ञान विवाद उत्पन्न करने के बजाय दूसरों को शिक्षा देने और मार्गदर्शन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
#MohanBhagwat :- हिंदू इस देश का कर्ता-धर्ता और पालनहार है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अलवर के इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान सरसंघचालक ने हिंदू राष्ट्र को लेकर बड़ा बयान दिया।… pic.twitter.com/CV6TGwhaI5
— Rajasthan First (@Rajasthanfirst_) September 16, 2024
भारत को सशक्त और समृद्ध बनाने की मिशन
अलवर के इंदिरा गांधी खेल मैदान में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए, डॉ. भागवत ने देश को "समर्थ" और "संपन्न" बनाने के लिए मेहनत और प्रतिबद्धता की अपील की। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल प्रयास और पुरुषार्थ ही राष्ट्र की समृद्धि की दिशा में हमें आगे बढ़ा सकते हैं।
हिंदू समाज: जिम्मेदारी और सुधार की दिशा
भागवत ने हिंदू समाज की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि हिंदू समाज देश की स्थिति के लिए उत्तरदायी है। उन्होंने छुआछूत और ऊंच-नीच की भावना को मिटाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता की बात की और संघ की शक्ति के प्रभाव क्षेत्र में मंदिर, पानी, और श्मशान को सभी के लिए खोलने की बात कही।
स्वयंसेवकों को दिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश
स्वयंसेवकों से डॉ. भागवत ने सामाजिक समरसता, पर्यावरण, परिवार प्रबोधन, स्व की भावना, और नागरिक अनुशासन को अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि संघ के 100 वर्षों के कार्यकाल के संदर्भ में संघ की कार्य पद्धति और विचारों को समझना आवश्यक है।
संघ की मान्यता और सांस्कृतिक संरक्षण का संकल्प
डॉ. भागवत ने संघ की बढ़ती मान्यता और हिंदू संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू संस्कृति और मूल्यों को बचाए रखना राष्ट्र के विकास के लिए अनिवार्य है और नई पीढ़ी को पारिवारिक संस्कारों और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ना बहुत जरूरी है।
पौधारोपण और अलवर यात्रा: एक नई शुरुआत
डॉ. भागवत के अलवर में आयोजित कार्यक्रम में 2,842 स्वयंसेवकों ने भाग लिया और उनके विचारों को अपनाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम के अंत में, उन्होंने भूरा सिद्ध स्थित मातृ स्मृति वन में पौधारोपण किया, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
अलवर में निरंतर गतिविधियां: संघ की प्रतिबद्धता
डॉ. भागवत 17 अगस्त तक अलवर में रहेंगे और विभिन्न गतिविधियों में शामिल होंगे। उनके इस प्रवास के दौरान, वे संघ की पहलों, सामाजिक कार्यों और स्वयंसेवकों के साथ बैठकें करेंगे, जो संघ की गतिविधियों और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी को उजागर करता है।
.