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Gunjal VS Birla: गजब का था गुंजल का गणित, छुड़ा दिए थे बिरला के पसीने

Gunjal VS Birla: कोटा। राजस्थान की कोटा-बूंदी लोकसभा सीट का चुनाव अब तक का सबसे रोचक चुनाव रहा। ओम बिरला चुनाव जीत गए, प्रहलाद गुंजल चुनाव हार गए, जीत हार का अंतर काफी कम रहा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह...
10:37 PM Jun 05, 2024 IST | Yashodan Sharma

Gunjal VS Birla: कोटा। राजस्थान की कोटा-बूंदी लोकसभा सीट का चुनाव अब तक का सबसे रोचक चुनाव रहा। ओम बिरला चुनाव जीत गए, प्रहलाद गुंजल चुनाव हार गए, जीत हार का अंतर काफी कम रहा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार चुनाव मैनेजमेंट के लिए जाने वाले बीजेपी नेता ओम बिरला के सामने गुंजल ने यह चुनाव क्यों लड़ा? बिरला 2003 से आज तक कोई चुनाव नहीं हारे। इसके पीछे की कहानी मजेदार है।

गुंजल साल 2018, 2023 का कोटा उत्तर विधानसभा चुनाव हारे। गुंजल और उनके समर्थकों को हमेशा बीजेपी के नेता ओम बिरला पर यह अंदेशा रहता आया है कि वह राजनीतिक वर्चस्व को लेकर कांग्रेस के बड़े नेता को अंदर खाने चुनाव में मदद करते हैं। साल 2023 विधानसभा चुनाव में गुंजल काफी नजदीक से हारे, इस चुनाव में गुंजल को अदावत के बावजूद बिरला के घर जाना पड़ा था, इस बात का जिक्र गुंजल ने अपने भाषणों में किया, कि बीजेपी पार्टी ने मुझे बिरला के सामने नीचा दिखाने की कोशिश की।

जब सोनिया गांधी तक पहुंचाया था गुंजल का नाम

गौरतलब है कांग्रेस साल 2024 का यह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याक्षी तलाश रही थी। सीट पर कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था। मगर पूर्व मंत्री अशोक चांदना ने पार्टी को मोदी 2 सरकार के लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को चुनावी शिकस्त देने के लिए सोनिया गांधी तक गुंजल का नाम पहुंचाया।

गुंजल बिरला (Gunjal VS Birla) के सामने चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। कांग्रेस ने जैसे ही गुंजल को बुलावा भेजा, उन्होंने मौका नहीं छोड़ा। गुंजल ने राजनीतिक वर्चस्व को जिंदा रखने और लोकसभा सीट पर जाति समीकरण को देखते हुए बिरला के सामने गुंजल ने ताल ठोक दी। कांग्रेस ने अपने नेताओं से बिरला के सामने एक बार रायशुमारी जरूर की, लेकिन चुनाव लड़ने को कोटा-बूंदी सीट पर कोई तैयार नहीं हुआ। गुंजल खट तैयार हो गए, जबकि बिरला को साल 2019 में 2 लाख 78 हजार वोट की लीड मिली थी।

कांग्रेस के पाले में पहुंचे थे गुर्जर वोट

इस सीट पर गुंजल ने एक बार भी सीधे तौर पर मोदी के खिलाफ भाषण नहीं दिया। टारगेट पर सिर्फ बिरला (Gunjal VS Birla)को रखा, उनके दस साल के कार्यकाल में एयरपोर्ट नहीं बनाने के मुद्दे को भुनाया। जातियों के समीकरण की गणित गुंजल ने सेट की। क्योंकि जातिगत समीकरण की बात की जाए तो सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता करीब 2.70 लाख थे। मीणा मतदाता 2.25 लाख और ब्राह्मण 2.05 लाख थे। गुंजल खुद गुर्जर जाति से आते हैं। गुर्जर मतदाता भी इस सीट पर 1.90 लाख के आसपास थे। बता दें कि अभी तक गुर्जर मतदाताओं को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है। गुर्जर मतदाताओं की संख्या लाडपुरा, केशवरायपाटन, बूंदी और रामगंजमंडी विधानसभा में ज्यादा है। लेकिन प्रहलाद गुंजल खुद गुर्जर है। ऐसे में गुर्जर वोट कांग्रेस को मिले।

और फिर गणित हो गया फेल

कैटेगरी के अनुसार सबसे बड़ा तबका ओबीसी वर्ग है। 5.80 लाख वोटर हैं, जिनमें सबसे बड़ा तबका गुर्जर वर्ग का 1.90 लाख है। इसके बाद माली 1.20 लाख और फिर 1.05 लाख धाकड़ मतदाता है। इसके अलावा कुम्हार, बंजारा, नाई, बैरागी, कश्यप, तेली, खाती, कुशवाहा, अहीर, यादव और जाट सहित कई जातियां हैं। दूसरे नंबर पर जनरल मतदाता 5.10 लाख है। इनमें 2.05 लाख ब्राह्मण मतदाता है। अगला फिर वैश्य 1.15 लाख और राजपूत 1.10 लाख है। सिंधी, पंजाबी, कायस्थ और ईसाई है। तीसरे नंबर पर मतदाताओं की सबसे बड़ी तादाद अनुसूचित जाति की है। इनकी संख्या 4.6 लाख के आसपास है। गुंजल का पूरा गणित था कि गुर्जर, मीणा, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक वोट बैंक का फायदा मिलेगा।

40 साल तक बीजेपी में रहे गुंजल

गुंजल 40 साल बीजेपी रहे, तो वह बीजेपी कार्यकर्ताओं की टीम लेकर कांग्रेस में गए थे। लेकिन गुंजल फिर भी चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन अपनी गणित में गुंजल काफी हद तक कामयाब रहे। बिरला(Gunjal VS Birla) की जीत की जो लीड 2 लाख 78 हजार वोट की साल 2019 में थी वह 41139 वोट पर आकर टिक गई। गुंजल को एक माह का वक्त गुंजल को चुनाव लड़ने का मिला।

गुंजल ने चुनाव हारने पर कहा वह हार की समीक्षा करेंगे। गुंजल ने कहा इस चुनाव में मोदी मैजिक कहीं नहीं चला, यहां आखरी में पैसों का बड़ा खेल किया, और उसका असर सामने आया है। इधर, तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए ओम बिरला (Gunjal VS Birla)ने मीडिया से कहा जातियां भी कई बार अपना महत्व रखती है,, लेकिन जनता ने प्यार आशीर्वाद दिया नतमस्तक हूं।

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