आदिवासी क्षेत्र सलूंबर में सरकारी दावे हवा-हवाई, जर्जर भवन में पढ़ रहे बच्चे...सुविधा के नाम पर निल बट्टे सन्नाटा
Salumbar News: (सतीश शर्मा) - सरकार ने भले ही पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया का नारा दिया हो लेकिन धरातल पर यह नारा बेमानी साबित हो रहा है। सरकार दावे तो बड़े-बड़े करती है लेकिन धरातल पर कुछ और ही नजर आता है। दावे सिर्फ काजगात ही सीमित रह जाते है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है सालूंबर से। जहां अपने भविष्य को रौशन करने की चाह में स्कूल जाने वाले छात्रों का वर्तमान सुधर नही रहा है। दरअसल सलूंबर आदिवासी क्षेत्र है। लसाडिया उपखंड के धोलिया ग्राम पंचायत के कराकला फला में बच्चे अपना भविष्य सुधारने के लिए खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।
जर्जर मंदिर में पढ़ाई करने को मजबूर छात्र
सरकार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को सुविधाएं देने के बड़े-बड़े वादे करती है। लेकिन सलूंबर जिले के धोलिया ग्राम पंचायत में सरकारी स्कूल के बच्चों को एक भवन तक नहीं मिला है। बता दें कि कारकला फला का प्राथमिक विद्यालय गांव के एक जर्जर हाल मंदिर के प्रांगण में चल रहा है। जहां बच्चों और शिक्षकों को बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है ना ही कोई अन्य सुविधाएं है। बच्चों को इस तरह से पढ़ाई करते देख ग्रामीण भी चिंतित नजर आ रहे हैं।
2012 में स्वीकृत हुआ था विद्यालय
दरअसल कराकला फला गांव में साल 2012 में स्कूल को स्वीकृत किया गया था। इससे ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। वहीं सरकार ने स्कूल स्वीकृत होने के तीन साल बाद विद्यालय भवन को बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। साथ ही भवन बनाने का टेंडर जारी हुआ। लेकिन ठेकेदार ने भवन निर्माण के लिए नींव खोद कर पत्तर डाल कर छोड़ दिया।
ठेकेदार की चल रही मनमानी
गौरतलब है कि कई बार नींव में बच्चे खेलते हुए गिर जाते है और हर समय बच्चों के नींव में गिरने की आशंका भी बनी रहती है। ग्रामीणों ने बताया कि ठेकेदार का मनमानी के चलते भवन का निर्माण नहीं हो पाया है। ग्रामीणों ने जल्द से जल्द विद्यालय के भवन निर्माण करने की मांग की है। वहीं खुले में पढ़ाई करने के कारण कई बार मवेशी भी आ जाते है, जिससे पढ़ाई में बाधा उत्पन्न होती है। बारिश के समय फभी जहरीले जीव-जन्तु का भी खतरा बना रहता है।
अधिकारी नहीं दे रहा ध्यान
बच्चों की समस्याओं को लेकर ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों को भी अवगत कराया। लेकिन इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। विद्यालय के लिए भवन स्वीकृत भी हुआ और उसका टेंडर भी हुआ। लेकिन ठेकेदार की मनमानी के चलते भवन का निर्माण नहीं हो पाया है। जिसके चलते स्वीकृत बजट लेप्स हो गया। अब वापस बजट जारी होने पर ही कुछ संभव है।
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