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Rajasthan: परंपरा और आधुनिकता का संगम! ट्रैक्टर पर निकली घास भैरू की सवारी, हाडौती में हुई बैलों की पूजा!

Rajasthan Diwali traditions: (अर्जुन अरविंद और कमलेश कुमार) दीपावली के बाद राजस्थान के गांवों में दीपोत्सव की अनूठी परंपराएं अपने रंग में नजर आती हैं, जहां लोक आस्था और परंपराओं का अनोखा संगम देखने को मिलता है। टोंक जिले के...
10:48 AM Nov 03, 2024 IST | Rajesh Singhal

Rajasthan Diwali traditions: (अर्जुन अरविंद और कमलेश कुमार) दीपावली के बाद राजस्थान के गांवों में दीपोत्सव की अनूठी परंपराएं अपने रंग में नजर आती हैं, जहां लोक आस्था और परंपराओं का अनोखा संगम देखने को मिलता है। टोंक जिले के बनेठा में हर साल लोक देवता घास भैरू की सवारी निकाली जाती है, जो बीमारी और संकट से मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

पहले इसे बैलों द्वारा खींचा जाता था, लेकिन आधुनिकता के चलते अब इसे ट्रैक्टरों से खींचकर निकाला जाता है। वहीं हाडौती के गांवों में किसान परिवार गोवर्धन पूजा पर अपने बैलों की जोड़ी का विधिपूर्वक पूजन करते हैं, ताकि खेती-किसानी में समृद्धि और परिवार में सुख-शांति बनी रहे।

इन अनुष्ठानों के पीछे सदियों से चली आ रही मान्यताएं हैं कि घास भैरू की सवारी से गांव में रोग और संकट दूर होते हैं और अच्छी वर्षा की कामना पूरी होती है। दूसरी ओर, बैलों की पूजा इस विश्वास के साथ की जाती है कि ये साथी जीव कृषि कार्यों में सहायक बनकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस तरह दीपोत्सव के दौरान राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में परंपराओं और आधुनिकता का मिलाजुला नजारा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है, और यह संदेश देता है कि नई तकनीकों के बावजूद लोक मान्यताओं का महत्व कभी कम नहीं होता।

हाडौती में बैलों की पूजा: खेती और समृद्धि की परंपरा

हाडौती क्षेत्र में गोवर्धन पूजा के दिन किसान परिवार बैलों की पूजा करते हैं। कोटा जिले के सुल्तानपुर गांव में किसान कंवरलाल अजमेरा के परिवार ने गोबर से बनाए भगवान गोवर्धन की पूजा करने के बाद, बैलों की जोड़ी का पूजन किया। इस अवसर पर बैलों को सजाया जाता है और उनके पैरों में ढोक लगाकर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। यहां की परंपरा में बैलों की पूजा का विशेष महत्व है, हालांकि आधुनिक युग में ट्रैक्टर और मशीनों ने उनकी जगह ले ली है, फिर भी किसान परिवार बैलों की पूजा को अपने दिल से जुड़े हुए मानते हैं।

ट्रैक्टरों की पूजा: बदलते समय के साथ अनोखा चलन

कोटा जिले के जाखड़ोंद गांव में ट्रैक्टरों की पूजा की परंपरा ने जन्म लिया है, जहां लगभग 60-70 ट्रैक्टर हैं और हर दीपावली पर किसान उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। आधुनिक युग में बैलों की अनुपलब्धता के कारण ट्रैक्टर ने खेती-किसानी में मुख्य भूमिका निभानी शुरू कर दी है, और इसे नई परंपरा का दर्जा मिल गया है।

बनेठा में घास भैरू की सवारी: परंपरा और आधुनिकता का संगम

टोंक के बनेठा कस्बे में दीपावली के बाद घास भैरू की सवारी निकालने की अनोखी परंपरा है। एक दर्जन से अधिक ट्रैक्टरों को जोड़कर घास भैरू की सवारी निकाली जाती है, जिसमें गांव के लोगों की भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। मान्यता है कि घास भैरू की सवारी निकालने से गांव में बीमारियों का प्रकोप कम होता है और अच्छी बारिश होती है। इस सवारी के दौरान ग्रामीण लोग अपने घरों के सामने दीपक जलाकर और प्रसाद चढ़ाकर पूजा करते हैं, ताकि गांव में रोगमुक्ति की कामना पूरी हो सके।

सदियों पुरानी परंपराओं का संरक्षण

राजस्थान के इन क्षेत्रों में दीपोत्सव पर मनाई जाने वाली परंपराएं और मान्यताएं प्रदेश के सांस्कृतिक वैभव को जीवंत बनाए रखती हैं। चाहे घास भैरू की सवारी हो या बैलों की पूजा, ये सभी अनुष्ठान न केवल आस्था को बल देते हैं, बल्कि समृद्धि और रोगमुक्ति की कामना के प्रतीक भी बनते हैं।

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