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दशहरा पर रावण दहन, लेकिन जोधपुर में मनाते हैं शोक! जानें क्या है अनोखी परंपरा?

जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर बना हुआ है जहां दवे गोदा गोत्र के ब्राह्मणों ने इस मंदिर को बनवाया था.
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Dussehra 2024: असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा आज पूरे देश में मनाया जा रहा है जहां शनिवार की शाम देशभर में रावण का पुतला दहन किया जाएगा लेकिन राजस्थान के जोधपुर में दशहरे पर रावण दहन के दिन मातम मनाया जाता है और यहां आज का दिन शोक का दिन माना जाता है.

हम बात कर रहे हैं एक ऐसे मंदिर की जहां रावण और मंदोदरी दोनों की प्रतिमाएं हैं और दशहरे के दिन यहां विधिवत पूजा की जाती है. बता दें कि जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर बना हुआ है जहां दवे गोदा गोत्र के ब्राह्मणों ने इस मंदिर को बनवाया था.

इस मंदिर में रावण मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमा स्थापित है और दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है. बताया जाता है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे. यहां दशहरे के दिन पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया.

शिवभक्त के रूप में पूजा जाता है रावण

बता दें कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं. इस मंदिर में दशहरे के दिन लोग रावण दहन देखने नहीं आते हैं लेकिन यहां शोक (सूतक) मनाते हैं और शाम को स्नान कर जनेऊ बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया और हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया. मयासुर और हेमा की बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम मंदोदरी रखा गया. एक बार मायासुर का देवताओं के राजा इंद्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़कर भागना पड़ा उसके जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी ऐसे रूपवती कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था.

बारात लेकर पहुंचा था रावण

मंडूक ऋषि की खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्धवान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई. उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा और मंदोदरी को देखते ही उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गए. रावण की बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा.

मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चवरी है (जहां पर वर-वधू फेरे लेते हैं ) कहते हैं बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया. वर्ष 1458 में राठौड़ राजवंश में जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षक का केंद्र है.

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