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होली पर लगेगा हंसी का तड़का! इस शहर में गालियां देकर खेली जाती है 300 साल पुरानी अनोखी होली

राजस्थान की रम्मत सिर्फ एक लोक नाट्य परंपरा नहीं, बल्कि रंग, भक्ति और मस्ती का ऐसा संगम है, जिसमें कलाकार संवाद गाकर प्रस्तुत करते हैं।
11:53 AM Mar 12, 2025 IST | Rajesh Singhal

Bikaner Holi Festival: राजस्थान की रम्मत सिर्फ एक लोक नाट्य परंपरा नहीं, बल्कि रंग, भक्ति और मस्ती का ऐसा संगम है, जिसमें कलाकार संवाद गाकर प्रस्तुत करते हैं। इसकी शुरुआत ‘फक्कड़ दाता’ की रम्मत से होती है, जो रात के अंधेरे से शुरू होकर सुबह की पहली किरण तक चलती है। इस भव्य आयोजन की तैयारियां दो महीने पहले से शुरू हो जाती हैं। कलाकार अपने अभिनय के साथ पारंपरिक वेशभूषा, साज-सज्जा और मेकअप का विशेष ध्यान रखते हैं। (Bikaner Holi Festival)दिलचस्प बात यह है कि पुरुष कलाकार महिलाओं का रूप धारण कर मंच पर उतरते हैं और भगवान शिव की आराधना के बाद अपनी प्रस्तुति शुरू करते हैं।

जब गूंजते हैं भगवान कृष्ण और शिव के भजन

रम्मत में संगीत और भक्ति की गूंज हर दिशा में सुनाई देती है। यह सिर्फ नाटक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। मंच पर सबसे पहले गणेश वंदना होती है, फिर भगवान कृष्ण और भगवान शिव के भजन गाए जाते हैं। लेकिन रम्मत का सबसे बड़ा आकर्षण है ‘ख्याल गीत’, जिसमें गीत और नृत्य के माध्यम से सुखद भविष्य की कामना की जाती है। इस प्रस्तुति में हास्य, व्यंग्य और समाज की जमीनी सच्चाइयों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। रात 8 बजे से शुरू होने वाला यह रंगारंग आयोजन सुबह 4 बजे तक चलता है, जिसमें कलाकार अपनी आवाज और भावनाओं से हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

8 दिन तक रंग, उमंग और ठहाकों की होली!

रम्मत की खासियत सिर्फ इसके कलाकार नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की भागीदारी है। यहां कोरस में गाने की परंपरा है, जहां स्टेज पर कलाकारों के साथ-साथ स्टेज के आगे और पीछे खड़े लोग भी सुर में सुर मिलाते हैं। यह संगठित संगीत होली की मस्ती को कई गुना बढ़ा देता है। बीकानेर की गलियों में ‘होली के रसिए’ पूरे 8 दिनों तक अलग-अलग स्वांग भरकर घूमते हैं और इस अद्भुत उत्सव को यादगार बनाते हैं।

इस नयनाभिराम आयोजन को देखने के लिए हजारों लोग दूर-दूर से बीकानेर आते हैं। रम्मत, जो 300 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है, हर साल होली के इस जश्न को ऐतिहासिक बना देती है। यह न सिर्फ एक परंपरा है, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की पहचान भी है!

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