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Bhilistan Demand: कई दशक पहले उठी थी भीलीस्तान की मांग, अब मानगढ़ से आदिवासियों ने भरी भील प्रदेश की हुंकार

Bhilistan Demand जयपुर: भील प्रदेश की मांग को लेकर एक बार फिर से राजनीति तेज होने लगी है। राजस्थान और गुजरात की सीमाओं पर अनाम शहीदों की शहादत स्थली मानगढ़ धाम पर आदिवासी परिवार की सांस्कृतिक महारैली में भील प्रदेश...
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Bhilistan Demand जयपुर: भील प्रदेश की मांग को लेकर एक बार फिर से राजनीति तेज होने लगी है। राजस्थान और गुजरात की सीमाओं पर अनाम शहीदों की शहादत स्थली मानगढ़ धाम पर आदिवासी परिवार की सांस्कृतिक महारैली में भील प्रदेश बनाए जाने की हुंकार उठी है। आदिवासी परिवार की राजनीतिक विंग कही जाने वाली भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat), बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल सहित अन्य वक्ताओं ने चार राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग की है।

राजस्थान में आदिवासी बहुज जिले

बात दें कि राजस्थान के दक्षिण में आदिवासी बहुल (Bhilistan Demand) तीन जिले हैं। इनमें उदयपुर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले हैं। बड़ी बात यह है कि कई साल पहले इन इलाके में भीलीस्तान बनाने की मांग उठ चुकी है। लेकिन, अब भील प्रदेश का दायरा और आदिवासियों के हक में मांगें पहले से और अधिक बढ़ गई हैं।

1980 के दशक में उठी भीलीस्तान की मांग 

बता दें कि 1980 के दशक में राजस्थान के उदयपुर संभाग के आदिवासी क्षेत्रों सहित मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को जोड़कर भीलीस्तान बनाने की मांग की गई थी। आदिवासी समाज का कहना है कि अब तक तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) की सरकारें रहीं। लेकिन, इस मांग को एक क्षेत्र तक सीमित मानते हुए अहमियत नहीं दी गई। इसके बावजूद भी समय-समय पर इस विषय में आदिवासी संगठनों की ओर से भीलीस्तान  की मांग उठाई जाती रही।

बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सरपंच, प्रधान, विधायक, सांसद के पद आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं और इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के आदिवासी प्रतिनिधि ही निर्वाचित हुए। अब दक्षिणी राजस्थान सहित उत्तरी गुजरात और पश्चिमी मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्र में राजनीतिक परिदृश्य बदला है, जिसके कारण भीलीस्तान के बदले भील प्रदेश की मांग फिर जोर पकड़ रही है।

पहले BTP, अब BAP का बढ़ा जनाधार

साल 2018 में दक्षिणी राजस्थान में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने अपने पैर जमाने शुरू किए। गुजरात के छोटू भाई वसावा और अन्य आदिवासी नेताओं की इस पार्टी को शुरुआती दौर में ही सफलता मिली। डूंगरपुर जिले की चौरासी और सागवाड़ा सीट से बीटीपी के विधायक बने तो बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिले में भी पार्टी ने अपना वोटबैंक खड़ा किया। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले पिछले 10 वर्षों से सामाजिक अधिकार को लेकर कार्यरत आदिवासी परिवार से ही भारत आदिवासी पार्टी (BAP) अस्तित्व में आई।

BAP को आदिवासी परिवार करते हैं संचालित

BAP को आदिवासी परिवार और इससे जुड़े सामाजिक संगठन के प्रतिनिधि ही संचालित करते हैं। बीएपी ने दक्षिणी राजस्थान सहित गुजरात और मध्यप्रदेश सहित अन्य स्थानों पर अपना जनाधार बढ़ाया। इसका सीधा-सीधा लाभ बीएपी को मिला। चौरासी, आसपुर, धरियावद, सैलाना से BAP के विधायक चुने गए। लोकसभा चुनाव में पहली बार बीएपी का सांसद बना। इसके बाद भील प्रदेश की मांग पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है। इसे लेकर विधानसभा और लोकसभा में भी क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों ने भील प्रदेश की आवाज उठाई है।

यह है भील प्रदेश की मांग

मानगढ़ धाम से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की बात कही गई है। भील प्रदेश में राजस्थान से बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही, बाड़मेर, जालौर, पाली, कोटा, झालावाड़, बारां, राजसमंद और चित्तौडगढ़ को शामिल करने की मांग है। इसके अलावा इसमें मध्यप्र देश के रतलाम, धार, देवास, मंदसौर, नीमच, गुना, शिवपुरी, इंदौर, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, महाराष्ट्र के धुले, ठाणे, पालघर, नासिक, जलगांव और नंदुरबार और गुजरात के दाहोद, बड़ोदरा, पंचमहल, तापी, नवसारी, साबरकांठा, छोटा उदेपुर, अरवल्ली, महीसागर, सूरत, नर्मदा, भरूच, बनासकांठा और वलसाड़  जिलों को मिलाने की मांग है।

क्या हैं आदिवासी परिवार की प्रमुख मांगें?

आदिवासियों के कई मांगें हैं। आदिवासियों की प्रमुख मांगें राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के 49 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाया जाए। इसके साथ ही आदिवासियों की मांग है कि जनजातीय क्षेत्र में पांचवी अनुसूची लागू हो। इसके अलावा आदिवासियों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने (Reservation), जनगणना के कॉलम में आदिवासी धर्म का अलग से उल्लेख होने, बेणेश्वर धाम की 80 फीसदी भूमि आदिवासियों के नाम करने, संबंधित क्षेत्रों की भू संपदा का अधिकार आदिवासियों को देने, बांसवाड़ा में स्वर्ण खनन (Gold mining in Banswara) पर रोक लगाने की मांग की है।

शहादत स्थली मानगढ़ धाम

दरअसल, राजस्थान और गुजरात की सीमा पर पहाड़ी पर मानगढ़ धाम है। मानगढ़ धाम का आधा हिस्सा राजस्थान और आधा गुजरात में पड़ता है। इतिहास के अनुसार आजादी के आंदोलन के समय नवम्बर 1913 में अंग्रेजों ने समाज सुधारक गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़  पहाड़ी पर इकट्ठा हुए और आदिवासियों को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी थी। इस गोलीबारी में करीब डेढ़ हजार  आदिवासियों की जान गई थी। इसके बाद से यह स्थान आदिवासियों के लिए तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यहां हर साल शहीदों की स्मृति में मेला भी लगता है।

मानगढ़ धाम राजनीतिक दलों के लिए भी प्रमुख केंद्र

बता दें कि मानगढ़ धाम के विकास के लिए राजस्थान और गुजरात सरकार ने अपने-अपने हिस्से में कई विकास कार्य कराए हैं।  पिछले कुछ वर्षों से मानगढ़ धाम राजनीतिक दलों के लिए भी प्रमुख केंद्र बन गया है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सभा भी सभा कर चुके हैं। अरअसल, राजनीतिक दल मानगढ़ को सभास्थल के रूप में इसलिए भी चुनते हैं, क्योंकि यहां से राजस्थान के साथ ही समीपवर्ती गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासी मतदाताओं को भी एक ही जगह से सीधा साधा जा सके।

'जाति आधारित प्रदेश नहीं'

आदिवासी परिवार की ओर से भील प्रदेश की मांग पर राज्य सरकार ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है। जनजाति विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने कहा है, "जाति के अधार पर राज्य नहीं बन सकता है। राज्य सरकार इस संबंध में केंद्र को कोई प्रस्ताव नहीं भेजेगी। उन्होंने धर्म बदलने वाले आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं देने की भी पैरवी की।"

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