राजस्थान के किस गांव में बेटी पैदा होने पर होता है जश्न, मां को ओढ़ाते हैं पीली चुनड़ी...जानें क्या है अनोखी रवायत?
'ओरी चिरैया....कल सुबह उड़ जाना रे...पर आज की रात,रह जाना मेरे पास...' रात के अंधेरे में एक मां अपने आंगन की चिड़िया को कुछ ऐसे ही अंदाज में दुलारती होगी, कुछ ऐसे ही जज्बातों में गुनगुनाती होगी...सब कुछ जानते हुए भी कुछ ऐसे ही शब्दों में उसे थोड़ी देर और अपने पास रोकना चाहती होगी. एक मां का दिल बेटी के लिए ममता, प्यार, दुलार जैसे भावों का अथाह सागर है और लेकिन उतना ही लंबा एक मां, एक महिला का अपनी बेटी के लिए संघर्ष का इतिहास है जहां बेटी के पैदा होने से लेकर उसका आंगन छोड़कर चले जाने तक मां का संघर्ष हर दिन नई चुनौतियों में सामने आता है. बेटे और बेटियों के पैदा होने पर होने वाली खुशी के फर्क के बीच झूलती मां एक द्वंद में जीती है जहां उसकी लड़ाई समाज, परिवार, अपनों और परायों हर किसी से होती है.
आज इंसानी आबादी 21वीं सदी में है लेकिन अभी भी कई इलाकों में बेटी के पैदा होने पर लोगों के मुंह लटक जाते हैं तो बेटे की आमद पर खुशी से पूरा गांव झूम उठता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जहां ये रवायत उल्टी है, यहां बेटी के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है, मां को बधाइयां दी जाती है और घर-परिवार के सभी लोगों के साथ इसे किसी त्योहार की तरह मनाया जाता है। आइए जानते हैं राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा पर बसे बाड़मेर से ये रोचक कहानी और इसके पीछे की वजह.
थार में 'बेटियां बोझ नहीं वरदान है' का संदेश
दरअसल राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में सदियों से बेटियों को दोयम दर्जे में रखा जाता रहा है तो दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान में बेटी पैदा होने पर सोच बदलने की कवायद भी हो रही है. बाड़मेर-जैसलमेर के कई इलाके आज भी गवाह है जहां बरसों तक बारातें गांवों में नहीं दिखाई देती थी, बेटी की शादी के मंगलगीत गांवों में कभी कभार ही गूंजते सुनते थे लेकिन वक्त बदलने के साथ ही लोगों की सोच को बदलने की कोशिशें भी लगातार हो रही है.
हम बात कर रहे हैं बाड़मेर के 'महिला संगठन' की जो बेटियां बोझ नहीं वरदान है का संदेश थार की माटी में फैला रही है। इस संगठन में कई महिलाएं जुड़ी हैं जो घर घर जाकर यह संदेश देती है कि "अगर हम बेटियों को आगे बढ़ाएंगे तो वह अपने गांव शहर और देश का नाम रोशन करेगी "
बेटी पैदा होने पर होता है जश्न
संगठन की ओऱ से यह सिलसिला 2015 में शुरू हुआ जब बाड़मेर की रहने वाली अनीता सोनी ने समाज में बेटियों के प्रति लगातार दोहरा रवैया देखा और उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि उन्हें सदियों से समाज की इस सोच को बदलने के लिए कुछ कर गुजरना है. अनिता ने जिला अस्पताल से लेकर अपनी दोस्तों में हर किसी को ये आइडिया बताया और बेटियों के पैदा होने का डेटा कलेक्ट करने लगी।
बता दें कि ये महिला संगठन किसी गांव में बेटी पैदा होने पर वहां पहुंचता है और बेटे के पैदा होने जैसा जश्न मनाया जाता है जैसे घरों में सभी महिलाओं के साथ सबसे पहले थाली बजाने की परंपरा निभाई जाती है। इसके बाद संगठन की पूरी टीम बेटी की मां का सम्मान करती है और उसको बधाइयां देते हुए खुशियां मनाती हैं. वहीं इस दौरान मां को पीली परंपरागत चुनड़ी ओढ़ाकर सभी को गुड़ बांटा जाता है और मंगल गीत गाए जाते हैं। मालूम हो कि महिलाओं का ये संगठन पिछले करीब 10 सालों से थार के गांवों में घूम घूमकर बेटी पैदा होने पर सामाजिक जागरूकता फैलाने के साथ ही सोच बदलने की दिशा में काम कर रहा है.