आखिरी बार बेटे को दुलारा मां ने... पत्नी के आंसू और बेटे ने दी ASI सुरेंद्र सिंह को मुखाग्नि
ASI Surendra Singh: सीएम भजनलाल शर्मा के काफिले में घुसी टैक्सी से हुए हादसे में शहीद हुए ASI सुरेंद्र सिंह (52) का अंतिम संस्कार किया गया। मां किताब देवी ने बेटे को अंतिम बार दुलारते हुए भावुक कर दिया, और (ASI Surendra Singh )इस दृश्य को देख हर किसी की आंखें नम हो गईं। तिरंगा यात्रा के साथ बड़ी संख्या में लोग उनके घर पहुंचे। पत्नी सविता ने अंतिम दर्शनों के दौरान काफी देर तक अपने पति के पास बैठकर रोते हुए उन्हें याद किया, जिसे परिजनों ने संभाला।
जयपुर में सीएम के काफिले में हुए हादसे में शहीद हुए ASI सुरेंद्र सिंह का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव बहरोड़-कोटपूतली में स्थित नीमराना के गांव काठ का माजरा लाया गया। नीमराना के हीरो चौक से उनके घर तक ढाई किलोमीटर की दूरी तक युवाओं ने तिरंगा यात्रा निकाली, और इस दौरान 'सुरेंद्र सिंह अमर रहें' के गूंजते नारे शहर भर में सुनाई दिए।
पुलिसकर्मी के निधन की दर्दनाक घटना
बता दें, यह हादसा जयपुर के जगतपुरा क्षेत्र के अक्षयपात्र सर्किल पर बुधवार दोपहर करीब तीन बजे हुआ। मुख्यमंत्री के काफिले के पास एक टैक्सी नंबर की कार रॉन्ग साइड से आ रही थी। ASI सुरेंद्र सिंह ने कार को रोकने की कोशिश की, लेकिन टैक्सी चालक ने कार को काफिले में घुसाकर टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में पांच पुलिसकर्मी घायल हो गए, जिनमें ASI सुरेंद्र सिंह भी शामिल थे। सभी को जीवन रेखा अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन इलाज के दौरान सुरेंद्र सिंह ने दम तोड़ दिया।
चाचा नाहर सिंह का दिल टूट गया
जब सुरेंद्र सिंह की बॉडी जयपुर से रवाना होने की सूचना मिली, तो चाचा नाहर सिंह खुद को रोक नहीं पाए और जोर-जोर से रोने लगे। इस दृश्य ने पूरे घर में कोहराम मचाया। बहनों और मां के साथ परिवार के लोग भी दर्द और गम में डूबे हुए थे, और रो-रोकर उनका बुरा हाल था।
हर महीने मां से मिलने आते थे सुरेंद्र सिंह
सुरेंद्र सिंह चौधरी हर महीने अपनी मां और पिता से मिलने के लिए आते थे, चाहे वह शाम को आते या देर रात वापस लौटते थे। हाल ही में अपनी पत्नी के साथ 27 और 28 नवंबर को वह शोक जताने के लिए अपने गांव आए थे।
सुरेंद्र सिंह के बचपन को याद करते हुए उनके पड़ोसी कर्मवीर चौधरी ने बताया कि सुरेंद्र सिंह अक्सर अपने पिता के साथ रहते थे और उनकी पढ़ाई गांव से बाहर हुई थी। हालांकि वे उम्र में बड़े थे, लेकिन जब भी गांव आते थे, हमेशा साथ खेलते थे। उनका हंसमुख और शांत स्वभाव था, और उन्हें गाड़ियों का खास शौक था।
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