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अजमेर की पहाड़ी से गोले दागती है फोजिया, 8 साल की उम्र में संभाली तोप....इस बेटी के बिना फीकी रहती है 'ईद'

Fauzia Khan Topchi: (किशोर सोलंकी) : आपने फिल्मों में किसी जंग के सीन में या जंग के मैदान में तोप चलते देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं जो किसी ना किसी...
01:18 PM Jul 28, 2024 IST | Rajasthan First

Fauzia Khan Topchi: (किशोर सोलंकी) : आपने फिल्मों में किसी जंग के सीन में या जंग के मैदान में तोप चलते देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं जो किसी ना किसी फौज का हिस्सा है और ना पुलिस में नौकरी करती है लेकिन अजमेर में वह तोप से गोले दागती है. दरअसल 8 साल की उम्र से तोप दागने वाली फोजिया को अजमेर में लोग 'फोजिया तोपची' के नाम से जानते हैं जो पिछले कई सालों से अजमेर दरगाह से जुड़ी है और ख्वाजा साहब के पाक शहर में धार्मिक रस्मों का आगाज करती है.

बता दें कि अजमेर की इस बेटी पर पूरा शहर फक्र करता है. राजस्थान के खुबसूरत शहरों में एक शहर ख्वाजा गरीब नवाज की नगरी "अजमेर" जहां तोप का वो नायाब रूप देखने को हमें मिलता है, जो किसी भी जंग का एलान नहीं करता और किसी भी राजा की हार और जीत निश्चित नहीं करता वो रूप अपने ख़ास अंदाज से अमन और शांति के साथ किसी भी मुबारक मौके की इतला देता है.

ख्वाजा गरीब नवाज की खिदमत में दागती है तोप

अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के ठीक सामने वाली पहाड़ी पर रहने वाली फोजिया खान बचपन से ही ख्वाजा गरीब नवाज की खिदमत में तोप दागने का काम करती रही है जहां उसकी तोप की गरज से ही उर्स का आगाज किया जाता है और इसके बाद ही दरगाह की कई रस्मों की शुरुआत भी होती है. बता दें कि एक साल में 288 बार तोप दागने वाली फोजिया महिलाओं को भी इस्लाम में मर्द के सामान बराबरी का दर्जा देने का संदेश देती है. दरअसल अजमेर दरगाह में जुम्मे की नमाज हो या फिर ईद की नमाज या फिर ख्वाजा साहब के उर्स का झंडा किसी भी मुबारक मौके पर फोजिया की तोप की आवाज से ही उसका आगाज किया जाता है.

अपने पिता की विरासत को निभा रही है फोजिया

बता दें कि कोई भी मुस्लिम रस्मों-रिवाज और उर्स तोप की आवाज सुनें बिना शुरू नहीं होते हैं और बताया जाता है कि दरगाह से चलाई जाने वाली तोप को खुद बादशाह अकबर ने बतौर तोहफा दरगाह को दिया था. 1947 से पहले यहां पहिए वाली तोप चलती थी जिसके बाद से ही यही तोप बखूबी अपना फर्ज अदा कर रही है. सालों पहले जहां यह आदमी द्वारा चलाई जाती थी लेकिन अब इस रिवायत को तोड़ते हुए इसे अब एक लड़की चला रही है. बता दें कि यहां तोप बड़े पीर शाहब की पहाड़ी के रास्ते में ग़दर शाह के इलाके से चलती है जिसकी आवाज मीलों तक सुनी जाती है.

इससे पहले तोप चलाने की सदियों पुरानी इस परम्परा को फोजिया के बुजुर्ग निभाते थे और अब इस परम्परा की जिम्मेदारी फोजिया के कंधों पर है जो अपने नाजुक हाथों से भारी-भरकम तोप में बारूद भर कर दागने को ख्वाजा साहब की खिदमत मानती है. वहीं तोप चलाने के अलावा फोजिया अपने पूरे परिवार का भी ध्यान रखती है जहां वह एक छोटी सी दुकान भी चलाती है जिसमें ख्वाजा पर बनें भजनों और कव्वालियों की सीडियां बेचती है. खास बात यह है की फोजिया का परिवार पिछली सात पीढ़ियों से तोप चलाने के काम को अंजाम देता आ रहा है. फोजिया के पिता अब इस दुनिया में नहीं है पर फोजिया के परिजन उसे बेटे की तरह मानते आए हैं.

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