बुलडोजर आया, सबकुछ उजाड़ गया! डॉक्टर का आरोप...बिना कोई सुनवाई, जबरन घर गिराया
Ajmer News: घर सिर्फ चार दीवारों से बना ढांचा नहीं होता, बल्कि उसमें बसते हैं सपने, यादें और अपनों की हंसी। लेकिन जब किसी की वर्षों की मेहनत कुछ ही मिनटों में मलबे में तब्दील हो जाए, तो दर्द सिर्फ दीवारों का नहीं, दिलों का भी होता है। सुबह तक एक सामान्य दिन था। घर में किताबें खुली थीं, बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, और जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही थी। लेकिन फिर अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई, और कुछ ही पलों में सबकुछ बदल गया। "बच्चे घर में थे... मैंने हाथ जोड़कर विनती की, पर उन्होंने नहीं सुना।
(Ajmer News) जबरदस्ती हमें बाहर निकाल दिया गया और हमारे देखते ही देखते बुलडोजर हमारे आशियाने को मटियामेट कर गया!"....यह दर्द भरी आवाज़ है डॉ. कुलदीप शर्मा की, जिनका घर पंचशील क्षेत्र में महज़ कुछ ही मिनटों में धूल में मिला दिया गया। चार साल पुराने विवाद के नाम पर अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA) और पुलिस ने बिना किसी रहम के जेसीबी चला दी। उस घर में सिर्फ ईंटें और छत ही नहीं थी, बल्कि वहां सपनों का बसेरा था। अब बस बची हैं ढही हुई दीवारें, बिखरी हुई किताबें और बच्चों के आंसू, जो शायद इस अन्याय का जवाब कभी न पा सकें।
जब घर पर मंडराने लगी तबाही की तलवार
सरकारी आदेश अक्सर ठंडी फाइलों में दबे रहते हैं, लेकिन जब वे चलने लगते हैं, तो किसी की दुनिया ही उजाड़ देते हैं। 14 फरवरी 2025 को भूखंड A-56 पर बिना स्वीकृति निर्माण करने पर एडीए ने नोटिस जारी किया। 14 मार्च को जवाब दिया गया कि निर्माण नियमों के तहत किया गया है, लेकिन प्रशासन को यह मंजूर नहीं था। 17 मार्च को अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी हुआ, और 21 मार्च को घर तोड़ने के लिए बुलडोजर भेज दिया गया...बिना किसी चेतावनी, बिना किसी मोहलत।
बच्चे अंदर थे, मैंने हाथ जोड़कर विनती की...
एक घर, जहां दीवारों के बीच सपने पले थे, एक पल में मलबे में बदल दिया गया। डॉ. कुलदीप शर्मा की आंखों में आज भी वही खौफ है जब उन्होंने देखा कि उनके दो छोटे बच्चे घर के अंदर थे और प्रशासन ने उन्हें जबरदस्ती बाहर निकाल दिया। कुलदीप शर्मा के मुताबिक, "मैंने हाथ जोड़कर विनती की, सिर्फ कुछ मिनट मांगे, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। जेसीबी बढ़ती रही, और मेरे सपनों का घर एक झटके में गिरा दिया गया।"
हमें चुप कराने की कोशिश हुई...
दर्द सिर्फ घर के टूटने का नहीं था, बल्कि अपमान का भी था। डॉ. शर्मा का आरोप है कि जब उन्होंने विरोध किया, तो अधिकारियों ने उनके साथ धक्का-मुक्की की। पुलिस और एडीए के अधिकारी आए थे न्याय करने, लेकिन वहां न्याय नहीं, बल्कि ज़ुल्म हुआ।
"यह प्रशासनिक तानाशाही है!"
इस कार्रवाई के खिलाफ अब समाज भी खड़ा हो गया है। राजस्थान ब्राह्मण महासभा ने इसे प्रशासनिक अराजकता करार दिया है। महासभा के अध्यक्ष पंडित सुदामा शर्मा ने कहा, "ऐसे अन्याय को चुपचाप सहना अन्याय को बढ़ावा देना होगा। दोषी अधिकारियों को तुरंत निलंबित किया जाए!" महासभा ने कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन कर इंसाफ की मांग की है।
निजी अस्पतालों में ताले लगेंगे
इस अन्याय के खिलाफ अब डॉक्टरों ने भी मोर्चा खोल दिया है। प्राइवेट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पंकज तोषनीवाल ने ऐलान किया कि शुक्रवार को सभी निजी अस्पतालों की ओपीडी और आईपीडी बंद रहेंगी। चिकित्सकों ने निर्णय लिया है कि वे जेएलएन अस्पताल के सामने एकत्रित होकर इस मामले में आगे की रणनीति तय करेंगे।
क्या प्रशासन की ताकत इंसाफ से बड़ी हो गई है?
यह सवाल हर उस व्यक्ति के मन में है, जिसने अपने घर की चार दीवारों के भीतर कभी सपने देखे हैं। क्या किसी भी परिवार को बिना पूर्व सूचना, बिना चेतावनी, यूं ही सड़क पर फेंक दिया जा सकता है? क्या प्रशासन के पास इतनी ताकत है कि वह एक घर को कुछ मिनटों में मिटा दे और उसकी चीखें हवा में गुम हो जाएं? यह लड़ाई सिर्फ एक घर की नहीं, बल्कि हर उस परिवार की है जो कभी इस अन्याय का शिकार हो सकता है। इंसाफ के लिए आवाज उठानी होगी, वरना अगला नंबर किसका होगा, कौन जाने?
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