1600 बाद पतंजलि ने बनाया नया 'रोग निदान ग्रंथ' ! सिरोही में बोले आचार्य बालकृष्ण
Acharya Balkrishna Sirohi: सिरोही। पतंजलि आयुर्वेद के MD और CEO आचार्य बालकृष्ण ने सिरोही का दौरा किया। उन्होंने यहां ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मेडिकल विंग के 49वें माइंड बॉडी- मेडिसिन सम्मेलनका शुभारंभ किया। यह राष्ट्रीय सम्मेलन तीन दिन चलेगा, जिसमें देशभर के एक हजार से ज्यादा आयुर्वेद चिकित्सक, वैद्य और शोधार्थी शामिल हो रहे हैं।
हम पैथी नहीं, रोगी से लूट के विरोधी- आचार्य बालकृष्ण
ब्रह्माकुमारीज संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम में पतंजलि आयुर्वेद के MD आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हम किसी पैथी के विरोधी नहीं हैं। जो लूट-खसोट करेगा, हम उसके विरोधी हैं। फिर वह चाहे आयुर्वेद वाला ही क्यों न हो?
जब एक रोगी हमारे पास आता है तो वह हमें भगवान के भाव से देखता है। अगर हमारे मन में उसे लूटने और पैसे कमाने का भाव होगा, तो इससे बड़ा पाप नहीं है।
लोभ इतना हावी है पहले बीमार करते, फिर इलाज करते- आचार्य
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि जो सच्चे और ईमानदार चिकित्सक हैं, उनके साथ हम सर्वदा खड़े हैं। वह किसी भी पैथी के हों। आज लोभ इतना हावी हो गया है कि पहले बीमार किया जाता है, फिर इलाज करते हैं।
कोरोना के समय डर के कारण हजारों महिलाओं की डिलीवरी नार्मल हो गई है। अब सब सामान्य हो गया तो फिर से लोगों का धंधा शुरू हो गया।
'18 छंदों में 2600 श्लोकों का बनाया नया निदान ग्रंथ'
आचार्य बालकृष्ण ने रोग उपचार की प्राचीन पद्धति को लेकर भी कार्यक्रम में बात की। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हम लोगों ने अभी निदान के संदर्भ में 18 छंदों में 2600 श्लोकों के नए ग्रंथ की रचना की है।
1500-1600 साल पहले भी निदान का ग्रंथ था। पहले के निदान के ग्रंथों में 225 के आसपास रोगों का वर्णन है, हम लोगों ने 500 रोगों का वर्णन किया है।
'नाडी विज्ञान सीखने के लिए मन शांत करना जरुरी'
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद में नाड़ी वैद्य की बड़ी महिमा है। नाड़ी विज्ञान सीखने के लिए पहले मन शांत करना जरूरी है। जितना अंतर्मुख होंगे उतनी गहराई से नाड़ी विद्या समझ पाएंगे।
हम दुनिया के नॉलेज को लेते जा रहे हैं और अपने नॉलेज से विमुख होते जा रहे हैं। मन अध्यात्म से शांत हो सकता है।(Acharya Balkrishna Sirohi)
'ब्रह्माकुमारीज संस्थान मनुष्य को बना रहा सात्विक'
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ में मनुष्य को सात्विक बनाने का प्रयास किया जाता है। यहां बहुत कुछ सीखने को मिला। यहां आकर पता चला कि जो ब्रह्माकुमार भाई-बहनें संयमित दिनचर्या और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह यहां भोजन पकाते हैं। इसलिए इस भोजन को करने से सभी का मन भी शुद्ध होता है।
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