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Rajasthan By-Election: खींवसर उपचुनाव में दांव पर लगी हनुमान बेनीवाल की 47 साल पुरानी विरासत! क्या कर पाएंगे कोई चमत्कार?

Rajasthan By-Elections: हनुमान बेनीवाल, राजस्थान की राजनीति के एक प्रभावशाली चेहरा, हमेशा चर्चाओं में रहते हैं। उनके बयान अक्सर मीडिया की सुर्खियों में होते हैं, और उनका ठेठ देसी अंदाज उन्हें प्रदेश की राजनीति में एक विशेष पहचान दिलाता है।...
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Rajasthan By-Elections: हनुमान बेनीवाल, राजस्थान की राजनीति के एक प्रभावशाली चेहरा, हमेशा चर्चाओं में रहते हैं। उनके बयान अक्सर मीडिया की सुर्खियों में होते हैं, और उनका ठेठ देसी अंदाज उन्हें प्रदेश की राजनीति में एक विशेष पहचान दिलाता है। कांग्रेस और भाजपा की पारंपरिक बायनरी को तोड़ते हुए, बेनीवाल ने एक अलग राजनीतिक राह चुनी है।

राजस्थान में 13 नवंबर को होने वाले 7 विधानसभा उपचुनावों(Rajasthan By-Elections) में, बेनीवाल के लिए खींवसर सीट को बचाना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। विधायकी छोड़कर सांसद बने बेनीवाल को इस बार कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके राजनीतिक सफर के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है।

47 साल पुरानी विरासत का संकट

हनुमान बेनीवाल राजनीतिक घराने से आते हैं और उनकी यह विरासत 47 साल पुरानी है। बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं। 1977 में रामदेव बेनीवाल ने मुंडावा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और बाद में 1985 में वो लोकदल से विधायक रहे। 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट को खींवसर विधानसभा सीट बना दिया गया और बेनीवाल भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे।

प्रासंगिक बने रहने का हुनर

अपने पिता की तरह हनुमान बेनीवाल में भी प्रासंगिक बने रहने के लिए 'किसी के भी साथ चले जाने' का हुनर है। 2008 में पहली बार विधायक बने बेनीवाल की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से सियासी लड़ाई चलती रही, जिसके बाद उन्हें 2013 में भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद उन्होंने खींवसर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी।

'ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'

राजस्थान में 2018 का विधानसभा चुनाव उन्होंने अपनी अलग पार्टी - राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी - बना कर लड़ा और शानदार प्रदर्शन के साथ 3 विधायक जीत कर विधानसभा में पहुंचे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने एक बार फिर भाजपा से गठबंधन कर लिया और नागौर से सांसद बन गए, लेकिन अगले ही साल 2020 में किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए NDA से अलग हो गए।

चुनौतियां ...संभावनाएं

2023 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी ने फिर से विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन इस बार स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी। हनुमान बेनीवाल खुद खींवसर से बमुश्किल 2000 वोटों से जीत सके। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने INDIA गठबंधन के बैनर तले लड़ा और जीता भी। लेकिन सियासत के जानकार मानते हैं कि बेनीवाल की विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर वाली जीत उपचुनाव में कहीं उन पर भारी न पड़ जाए।

किसे टिकट देंगे, यही सबसे बड़ा सवाल

2018 में जब हनुमान बेनीवाल ने विधायकी छोड़ी थी तो अपने भाई नारायण बेनीवाल को खींवसर से चुनाव लड़वाया था। ऐसे में इस बार वो किसे मैदान में उतारते हैं यह देखने वाली बात है। जानकारों का कहना है कि बेनीवाल की विधानसभा चुनाव में करीबी जीत से शायद वो परिवार से बाहर किसी को टिकट देने पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि खींवसर की 47 साल की विरासत को बचाने की वो किसी भी हद तक कोशिश करेंगे।

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