राजस्थान स्थापना दिवस पर ऐतिहासिक बदलाव! 30 मार्च नहीं, अब इस दिन मनेगा जश्न, जानिए क्यों बदली तारीख
Rajasthan Foundation Day: राजस्थान की सियासत में बड़ा मोड़ लेते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में वर्ष 2025-26 का बजट पेश करते हुए कई अहम घोषणाएं कीं। ये घोषणाएं न केवल प्रदेश के बुनियादी ढांचे और विकास से जुड़ी रहीं, बल्कि इसके माध्यम से राजनीतिक समीकरणों को भी साधने की कोशिश की गई। बजट में पेयजल, ऊर्जा, सड़क, पर्यटन, कला, संस्कृति, उद्योग, कृषि, चिकित्सा और रोजगार से जुड़े कई प्रावधान किए गए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रही राजस्थान स्थापना दिवस की तारीख में बदलाव की घोषणा।
हर साल 30 मार्च को मनाए जाने वाला राजस्थान स्थापना दिवस अब हिंदू नव संवत्सर के पहले दिन, यानी चैत्र प्रतिपदा को मनाया जाएगा। यह फैसला आरएसएस की पुरानी मांग को पूरा करने और हिंदुत्व की राजनीति को मजबूती देने के रूप में देखा जा रहा है। सरकार के इस कदम से न केवल संघ की विचारधारा को बल मिला है,(Rajasthan Foundation Day) बल्कि बीजेपी ने अपने कोर वोट बैंक को साधने का भी प्रयास किया है। इस फैसले से विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल पर राजनीतिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया, जबकि सरकार ने इसे राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का तर्क दिया।
पटेल के ऐतिहासिक भाषण का किया जिक्र
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में घोषणा करते हुए कहा कि राजस्थान स्थापना दिवस अब 30 मार्च की बजाय हिंदू नव संवत्सर के पहले दिन, यानी चैत्र प्रतिपदा पर मनाया जाएगा। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुरूप बताया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के 30 मार्च 1949 के भाषण का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने राजस्थान के एकीकरण और इसके वृहद निर्माण को विशेष महत्व देने की बात कही थी।
"75 साल बाद ऐतिहासिक बदलाव"
सीएम शर्मा ने कहा कि 75 वर्षों बाद राजस्थान स्थापना दिवस को भारतीय नववर्ष की शुरुआत के साथ मनाना ऐतिहासिक बदलाव होगा। उन्होंने कहा कि यह निर्णय राजस्थान की परंपरा, संस्कृति और गौरव को मजबूत करने के लिए लिया गया है। सरकार का मानना है कि इससे राज्य की असली पहचान और उसकी सांस्कृतिक जड़ों को और मजबूती मिलेगी।
आरएसएस राष्ट्रवादी संगठन ..
विधानसभा में अपने भाषण के दौरान मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की राष्ट्रवादी भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "आरएसएस से बड़ा कोई राष्ट्रवादी संगठन नहीं है। उसके स्वयंसेवकों की कई पीढ़ियां समाज सेवा में खप गई हैं। वहां जाति-धर्म का भेदभाव नहीं होता, बल्कि सभी स्वयंसेवक मां भारती के सच्चे भक्त के रूप में कार्य करते हैं।" मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि "अगर कोई इस संगठन के बारे में उल्टा-सीधा बोलता है, तो मन को पीड़ा होती है।"
हिंदुत्व की राजनीति...सांस्कृतिक सुधार?
सरकार के इस फैसले को हिंदुत्व की राजनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है। राजस्थान में आरएसएस की लंबे समय से यह मांग थी कि स्थापना दिवस को हिंदू नव संवत्सर के साथ जोड़ा जाए। अब सरकार ने इस मांग को मानकर अपने कोर वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। विपक्ष ने इसे राजनीति से प्रेरित फैसला बताते हुए सरकार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया।
यह बदलाव परंपरा का सम्मान है...राजनीतिक रणनीति?
सरकार का तर्क है कि यह कदम राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करेगा, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा मान रहा है। क्या इस फैसले से राजस्थान की ऐतिहासिक पहचान बदलेगी या यह केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा है? यह सवाल अब प्रदेश की राजनीति में नई बहस का केंद्र बन गया है।
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