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Rajasthan: राजस्थान उपचुनाव में भितरघात का खतरा! जानें, कांग्रेस-बीएपी में उथल-पुथल और बीजेपी की स्थिरता कैसे बनी?

Rajasthan By-Election 2024:राजस्थान में आगामी उपचुनावों का माहौल इस बार सिर्फ बगावत तक सीमित नहीं है, बल्कि अंदरूनी खींचतान और भितरघात के फैक्टर भी बड़े पैमाने पर चुनावीसमीकरणों को प्रभावित कर रहे हैं। प्रमुख दलों के सामने बाहरी विरोध से...
12:31 PM Nov 04, 2024 IST | Rajesh Singhal

Rajasthan By-Election 2024:राजस्थान में आगामी उपचुनावों का माहौल इस बार सिर्फ बगावत तक सीमित नहीं है, बल्कि अंदरूनी खींचतान और भितरघात के फैक्टर भी बड़े पैमाने पर चुनावीसमीकरणों को प्रभावित कर रहे हैं। प्रमुख दलों के सामने बाहरी विरोध से ज्यादा चुनौती उनके भीतर की असंतोषपूर्ण लहर से उत्पन्न हो रही है।

राजस्थान की सात सीटों पर हो रहे उपचुनावों में (Rajasthan By-Election 2024) बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को बाहरी और भीतरी असंतोष की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बीजेपी ने विरोध को कम करने के लिए आक्रामक डैमेज कंट्रोल का सहारा लिया, जहां जनाधार वाले बागियों को मनाने और उन्हें मैदान से बाहर रखने में सफलता प्राप्त की। दूसरी ओर, कांग्रेस को देवली-उनियारा सीट पर बागी नरेश मीणा और बीजेपी को चौरासी सीट पर बादमी लाल के बागी तेवरों से अपने-अपने समीकरणों को साधने में मुश्किलें हो रही हैं।

इन दोनों प्रमुख दलों में जहां स्थानीय स्तर पर बगावत नियंत्रण में है, वहीं आंतरिक नाराजगी और भीतर ही भीतर सक्रिय होते स्थानीय समीकरणों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उम्मीदवारों का चयन, लोकल समीकरणों के अनुसार किया गया है, लेकिन छिपी नाराजगी और आंतरिक विरोध को संभालना दोनों दलों के लिए अभी भी चुनौती बना हुआ है।

समीकरणों में उथल-पुथल और बीजेपी की डैमेज कंट्रोल रणनीति

राजस्थान के आगामी उपचुनावों में बगावत की बजाय भितरघात का खतरा चुनावी मौसम की सबसे बड़ी चर्चा बन गया है। सत्ता में होने का लाभ उठाते हुए बीजेपी ने अपने नाराज नेताओं को मनाने में कड़ी मेहनत की है। इस बार, कांग्रेस और बीएपी के बीच भी समीकरणों में गहराई से उथल-पुथल देखने को मिल रही है, जो चुनावी राजनीति को और भी दिलचस्प बना रहा है। इस चुनाव में भितरघात की संभावनाएं, पार्टियों के आंतरिक समीकरणों को प्रभावित कर सकती हैं।

बीजेपी का डैमेज कंट्रोल: सत्ताधारी पार्टी की चतुराई

बीजेपी ने अपने प्रभावशाली सत्ताधारी पद का पूरा लाभ उठाते हुए नाराज नेताओं को मान-सम्मान देकर उन्हें वापस लाने की कोशिश की है। टिकट कटने वाले नेताओं को आश्वासन दिया गया है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी और उनकी महत्वाकांक्षाओं का सम्मान किया जाएगा। इस रणनीति के तहत, बीजेपी ने अपनी सरकार के कार्यों और उपलब्धियों को भी दर्शाते हुए एक मजबूत संदेश देने का प्रयास किया है, जिससे पार्टी को बागी तत्वों से बचाने में मदद मिली है। हालांकि, अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या नाराज नेताओं के समर्थक उनकी नाराजगी को भुला पाएंगे और पार्टी की दिशा में वापसी करेंगे या नहीं।

देवली उनियारा: त्रिकोणीय चुनावी संग्राम

देवली उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने चुनावी समीकरणों को त्रिकोणीय बना दिया है। नरेश मीणा की बगावत से कांग्रेस के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। कांग्रेस के प्रयासों के बावजूद उन्हें मनाने में असफलता मिली है। बीजेपी इस बागी को अपने लिए एक सकारात्मक कारक मान रही है, लेकिन यह देखना बाकी है कि कांग्रेस का यह बागी बीजेपी के वोट बैंक में कितना सेंध लगाता है। चुनावी माहौल में हर कदम महत्वपूर्ण होता है, और इस स्थिति से उठने वाले नतीजे पूरे चुनाव पर प्रभाव डाल सकते हैं।

चौरासी: बीएपी के बागी से नया रोमांच

चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल ने चुनाव को एक नई दिशा दी है। बीएपी की आंतरिक बगावत के साथ, कांग्रेस और बीजेपी को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है। आदिवासी मुद्दों के बढ़ते महत्व के कारण, दोनों दलों को अपनी स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। इस सीट पर सभी राजनीतिक दलों के बीच मजबूत प्रतिस्पर्धा होने की संभावना है, जिससे चुनावी नतीजे अकल्पनीय हो सकते हैं।

सलूंबर: अंदरुनी नाराजगी का खतरा

सलूंबर सीट पर ना तो कांग्रेस और ना ही बीजेपी में कोई बागी है, लेकिन कांग्रेस को अंदरखाने की नाराजगी से खतरा है। पिछले उम्मीदवार की नाराजगी ने मौजूदा कांग्रेस उम्मीदवार के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। बीजेपी ने दिवंगत विधायक की पत्नी को सहानुभूति कार्ड खेलते हुए टिकट दिया है, जिससे मुकाबला और भी रोचक हो गया है। ऐसे समय में जब हर वोट महत्वपूर्ण होता है, पार्टी के अंदर की राजनीति भी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

दौसा: पर्दे के पीछे की सियासी चालें

दौसा सीट पर पर्दे के पीछे की राजनीतिक चालें समीकरणों को नया मोड़ दे सकती हैं। नाराजगी की मौन स्थिति नए समीकरणों की ओर इशारा कर रही है, जिससे बीजेपी को यहां चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का प्रभाव भी इस क्षेत्र में चुनावी लड़ाई को और भी चुनौतीपूर्ण बना सकता है। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का होने की संभावना है, जो चुनावी परिणामों को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है।

झुंझुनू: नाराज नेताओं की छाया

झुंझुनू सीट पर कोई बागी नहीं है, लेकिन नाराज नेताओं की गुपचुप गतिविधियों का खतरा बरकरार है। बीजेपी ने टिकट कटने से नाराज नेता को मना लिया है, लेकिन उनके समर्थक मानने को तैयार नहीं हैं। यह स्थिति कांग्रेस के लिए भी चिंताजनक हो सकती है, क्योंकि चुनावी मुकाबला कांटे का होने की उम्मीद है। यहां हर वोट की कीमत समझी जा रही है, और रणनीति बनाने वाले नेताओं को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कैसे वे अपने मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं।

रामगढ़: सहानुभूति कार्ड का प्रभाव

रामगढ़ सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने नाराज नेताओं को मनाने में सफल रहे हैं। कांग्रेस ने दिवंगत विधायक के बेटे को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड खेला है, लेकिन धार्मिक गोलबंदी इस बार प्रमुख मुद्दा बन गया है। धार्मिक पहचान और समुदाय के मुद्दे इस चुनावी मैदान में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, जिससे वोटरों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

खींवसर: संतुलन की कड़ी चुनौती

खींवसर सीट पर आरएलपी, कांग्रेस और बीजेपी सभी में कोई बागी नहीं हैं, लेकिन भितरघात और अंदरूनी नुकसान का खतरा बना हुआ है। इस सीट पर समीकरणों में उलटफेर की संभावना हमेशा बनी रहती है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है। सभी दलों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके पास मजबूत रणनीति हो, ताकि वे मतदाताओं का समर्थन हासिल कर सकें।

इन सभी परिस्थितियों में, आगामी उपचुनावों की तस्वीर साफ नहीं है। बगावत की बजाय भितरघात का खतरा चुनावी जंग में एक नया मोड़ ला सकता है, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आ सकता है। हर राजनीतिक पार्टी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने आंतरिक समीकरणों को मजबूत करें और अपने वोटरों के विश्वास को बनाए रखें। चुनावी संग्राम की इस कड़ी में, हर दल को अपने समर्थकों के साथ सामंजस्य बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा, और यह भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

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