इतिहास में पहली बार! विधानसभा ने प्रवर समिति के प्रस्ताव को अस्वीकार कर वापस भेजा, मचा राजनीतिक बवाल
Rajasthan Assembly Budget Session:राजस्थान की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब विधानसभा में पेश "राजस्थान भूजल संरक्षण एवं प्रबंध प्राधिकरण विधेयक" को सरकार को वापस लेना पड़ा। यह पहला मौका था जब किसी प्रवर समिति से पारित विधेयक को विधानसभा में पेश करने के बाद दोबारा उसी समिति को लौटा दिया गया। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने न केवल सदन में हलचल मचा दी, बल्कि विपक्ष को सरकार पर हमला करने का बड़ा मौका भी दे दिया।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने इस विधेयक को सदन में लाने से पहले छह महीने तक प्रवर समिति में मंथन किया था। इसके बावजूद सरकार को इसे वापस लेने की नौबत आ गई। (Rajasthan Assembly Budget Session) सवाल उठता है कि क्या सरकार अपनी नीतियों को लेकर खुद ही असमंजस में है, या फिर विपक्ष के दबाव में अपने ही विधेयक से पीछे हट गई?
ये सारे सवाल अब राजस्थान की राजनीति में गरमा गए हैं। विपक्ष इसे सरकार की सबसे बड़ी नीतिगत असफलता बता रहा है, तो वहीं भाजपा को भी अब इस फैसले पर सफाई देनी पड़ रही है। विधानसभा में उठे इस बवाल के बाद आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति और गरमाने वाली है।
जनता पर नया कर लगाने की थी तैयारी
सरकार ने इस विधेयक में भूजल संरक्षण की बात कही, लेकिन असल में यह आम जनता पर नया कर लगाने का जरिया साबित हो सकता था। प्रस्तावित कानून के तहत ट्यूबवेल और बोरवेल से पानी निकालने पर शुल्क लगाया जाना था, यहां तक कि घरों में हैंडपंप लगाने के लिए भी सरकार से अनुमति लेनी पड़ती। नियमों का उल्लंघन करने वालों पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना और छह माह तक की सजा का प्रावधान रखा गया था। भूजल संकट का डर दिखाकर सरकार जनता पर अतिरिक्त बोझ डालने की योजना बना रही थी, जो उसकी नीयत पर सवाल खड़े करता है।
ईआरसीपी से पानी की किल्लत दूर...
इस विधेयक के विरोधाभास पर भी गौर करना जरूरी है। सरकार एक तरफ ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ERCP) को राजस्थान के जल संकट का स्थायी समाधान बता रही है, तो दूसरी तरफ भूजल संकट की दुहाई देकर नया कानून लाने का प्रयास कर रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईआरसीपी का उद्घाटन करते हुए कहा था कि इस परियोजना से राजस्थान में पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। टोंक जिले में ईसरदा बांध बनकर तैयार हो चुका है, जिससे बीसलपुर बांध के ओवरफ्लो पानी को रोका जा सकेगा। जब सरकार खुद जल संकट के समाधान का दावा कर रही है, तो फिर अचानक भूजल निकासी पर पाबंदी लगाने और शुल्क वसूलने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
किसानों....उद्योगों पर पड़ता सीधा असर
इस विधेयक का सबसे बड़ा असर राजस्थान के उद्योगों और किसानों पर पड़ सकता था। सरकार "राइजिंग राजस्थान" के तहत 35 लाख करोड़ रुपये के निवेश की बात कर रही है, लेकिन अगर भूजल निकासी पर शुल्क लगाया गया, तो क्या कोई उद्योगपति यहां निवेश करेगा? पहले से ही पानी की समस्या से जूझ रहे उद्यमियों और किसानों के लिए यह कानून नया संकट खड़ा कर सकता था। राजस्थान में खेती और उद्योग काफी हद तक भूजल पर निर्भर हैं, ऐसे में इस कानून से किसानों और व्यापारियों को भारी नुकसान होता।
विधानसभा में सरकार की फजीहत
विधानसभा में सरकार की इस नीतिगत असफलता को विपक्ष बड़े मुद्दे के रूप में भुना सकता है। कांग्रेस इस बात को जनता के बीच ले जा सकती है कि भाजपा सरकार न केवल बिना तैयारी के विधेयक ला रही है, बल्कि जनविरोधी नीतियों को लागू करने की कोशिश कर रही है। अगर सरकार ने छह महीने तक प्रवर समिति में विधेयक पर मंथन किया था, तो फिर अचानक उसे वापस लेने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या सरकार खुद इस कानून को लेकर आश्वस्त नहीं थी, या फिर उसे जनता के आक्रोश का डर था?
यह मामला सिर्फ भूजल संरक्षण से जुड़ा नहीं है, बल्कि सरकार की नीति, उसकी तैयारी और राजनीतिक भविष्य से भी सीधा संबंध रखता है। अगर सरकार ऐसे ही बिना सोचे-समझे फैसले लेती रही, तो आने वाले समय में यह उसके लिए राजनीतिक रूप से घातक साबित हो सकता है।
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