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राजस्थान विधानसभा में हंगामा! देवनानी का गुस्सा सातवें आसमान पर, कागज फेंककर दिया बड़ा बयान

राजस्थान विधानसभा में बीती रात लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और सत्ता-विपक्ष के रिश्तों की असली परीक्षा देखने को मिली।
11:35 AM Mar 11, 2025 IST | Rajesh Singhal

Rajasthan Assembly Budget Session 2025: राजस्थान विधानसभा में बीती रात लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और सत्ता-विपक्ष के रिश्तों की असली परीक्षा देखने को मिली। अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान सदन में जबर्दस्त गरमागरमी देखने को मिली, जब स्पीकर वासुदेव देवनानी और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली आमने-सामने आ गए। (Rajasthan Assembly Budget Session 2025)मामला तब और पेचीदा हो गया जब स्पीकर ने उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को जवाब देने के लिए बुलाया, लेकिन विपक्ष ने मांग रखी कि पहले कुछ विधायकों को अपनी बात रखने दी जाए। इस पर स्पीकर ने कड़ी आपत्ति जताई और बहस इतनी बढ़ गई कि सदन का संचालन ही बाधित हो गया।

"फर्क कैसे नहीं पड़ता?"

जब नेता प्रतिपक्ष जूली ने कहा कि विधायकों को दो-दो मिनट बोलने दिया जाए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तो स्पीकर देवनानी भड़क उठे। उन्होंने गुस्से में जवाब देते हुए कहा— "फर्क कैसे नहीं पड़ता?" और फिर कागज फेंकते हुए ऐलान कर दिया— "फिर आप ही चला लो रात 12 बजे तक विधानसभा, मैं तो चला!" देवनानी के इस रुख से सत्ता पक्ष ने जहां एकजुटता दिखाई, वहीं विपक्ष ने इसे स्पीकर की निरंकुशता और असहिष्णुता करार दिया।

 "सदन में लोकतांत्रिक परंपराएं टूट रही हैं"

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने स्पीकर की नाराजगी को शांत करने की कोशिश की और कहा— "आप नाराज क्यों होते हो? हमने तो सिर्फ विधायकों को बोलने देने की बात की है।" विपक्ष ने इसे लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला करार दिया और सत्ता पक्ष पर मनमानी का आरोप लगाया। जूली ने कहा कि जब तक सभी विधायकों को बोलने का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक सदन में स्वस्थ चर्चा संभव नहीं है।

स्पीकर का नरम रुख

कुछ देर बाद स्पीकर देवनानी का गुस्सा शांत हुआ और वे पुनः आसन ग्रहण कर बैठे। उन्होंने कांग्रेस के तीन विधायकों को बोलने का मौका दिया, जिससे सदन की कार्यवाही आगे बढ़ी। हालांकि, यह घटना सत्ता और विपक्ष के बीच संवादहीनता की गहरी खाई को उजागर करती है। यह साफ हो गया कि राजस्थान की राजनीति में न केवल वैचारिक मतभेद बढ़ रहे हैं, बल्कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संवाद की कमी भी गंभीर रूप लेती जा रही है।

लोकतंत्र पर सवाल या सदन संचालन की मजबूरी?

यह घटना कई बड़े सवाल खड़े करती है....क्या विपक्ष की मांग वाजिब थी, या फिर वह सदन की कार्यवाही में जानबूझकर बाधा डाल रहा था? दूसरी ओर, स्पीकर की प्रतिक्रिया क्या उनके अधिकारों की रक्षा थी, या फिर यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असहिष्णुता का संकेत?

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष इस घटना से क्या सबक लेते हैं। क्या यह महज एक क्षणिक विवाद था, या फिर राजस्थान विधानसभा में सत्ता और विपक्ष के बीच बढ़ती खाई का प्रतीक? यह सियासी घमासान कहीं न कहीं आने वाले चुनावों की बिसात भी बिछा सकता है।

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