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धर्मांतरण विरोधी कानून! क्या है इसका उद्देश्य, और सबसे पहले किस राज्य ने किया लागू?

Anti-Conversion Law: धर्म परिवर्तन का विषय हमेशा से ही भारतीय समाज और राजनीति में गहरी बहस का कारण रहा है। इसे कभी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल माना जाता है, तो कभी सामाजिक संतुलन और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ा जाता है।...
12:50 PM Dec 01, 2024 IST | Rajesh Singhal

Anti-Conversion Law: धर्म परिवर्तन का विषय हमेशा से ही भारतीय समाज और राजनीति में गहरी बहस का कारण रहा है। इसे कभी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल माना जाता है, तो कभी सामाजिक संतुलन और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ा जाता है। (Anti-Conversion Law) इसी संदर्भ में, राजस्थान की भजनलाल सरकार ने धर्मांतरण विरोधी बिल को मंजूरी देकर एक अहम कदम उठाया है। इस बिल का उद्देश्य दबाव, प्रलोभन या धोखाधड़ी से होने वाले धर्म परिवर्तन को रोकना है, जिससे समाज में सांप्रदायिक सौहार्द और समरसता बनी रहे।

29 नवंबर को हुई कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस बिल को सदन के समक्ष पेश करने की मंजूरी दी। यह फैसला राज्य और देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ने वाला है। लेकिन इस विषय पर चर्चा करते हुए यह जानना जरूरी हो जाता है कि धर्मांतरण विरोधी कानून क्या है, इसका महत्व क्यों है, और भारत में सबसे पहले यह कानून किस राज्य में लागू हुआ था। आइए, इन पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।

धर्मांतरण विरोधी कानून: क्या है इसका उद्देश्य?

धर्मांतरण विरोधी कानून ऐसे नियम होते हैं जो जबरन, धोखे से या प्रलोभन देकर किसी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने से रोकने के लिए बनाए गए हैं।

इन कानूनों के तहत, यदि किसी को दबाव, लालच, या धमकी देकर धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह एक गंभीर अपराध माना जाता है। इन अपराधों के लिए सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है, जिससे समाज में धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की जा सके।

धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?

धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता उस समय महसूस हुई जब देशभर में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी। खासकर, लड़कियों और लड़कों को प्रलोभन देकर या दबाव बनाकर धर्म बदलवाने के मामले सामने आए।

ऐसे मामलों ने समाज में तनाव और असहमति को जन्म दिया, जिससे सरकार पर इन अपराधों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का दबाव बढ़ा। इन घटनाओं को देखते हुए, विभिन्न राज्य सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी कानून लागू करने का फैसला लिया, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा जा सके और समाज में संतुलन बनाए रखा जा सके।

ओडिशा में सबसे पहले लागू हुआ धर्मांतरण विरोधी कानून

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून विभिन्न राज्यों में लागू हैं, लेकिन इस कानून को सबसे पहले 1967 में ओडिशा ने लागू किया था। ओडिशा सरकार ने यह कानून धर्म परिवर्तन को लेकर बढ़ते विवादों और चिंताओं के मद्देनज़र पेश किया था। इस कानून के तहत, जबरन या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने पर एक साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना तय किया गया था। ओडिशा का यह कदम देशभर के लिए एक मिसाल बन गया और अन्य राज्यों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए।

धर्मांतरण विरोधी कानून के विस्तार की दिशा में अन्य राज्य

ओडिशा के बाद, अन्य राज्यों ने भी धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए। इनमें गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अरुणाचल प्रदेश प्रमुख हैं। हालांकि, राजस्थान ने 2006 और 2008 में इस प्रकार का कानून पारित किया था, लेकिन राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी न मिलने के कारण यह लागू नहीं हो सका। अब, राजस्थान सरकार फिर से इस बिल को विधानसभा में पेश करने जा रही है, जिसे लेकर राज्य में चर्चा तेज़ हो गई है।

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