Rajasthan: क्या डोटासरा ने खेला बड़ा खेल? बेनीवाल की चाहत और कांग्रेस-RLP अलायंस की टूटने की इनसाइड स्टोरी!
Rajasthan By-Election 2024: राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव (Rajasthan By-Election 2024)की तैयारियां अपने चरम पर हैं, और इस बार का मुकाबला न केवल राजनीतिक रंग दिखा रहा है, बल्कि इसके नतीजे भी राज्य की राजनीतिक दिशा को बदल सकते हैं। बीजेपी ने चुनावी रण में अपनी ताकत बढ़ाने का संकल्प लिया है, जबकि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में मिले अच्छे परिणामों के बाद अब इस मौके का लाभ उठाने की ठानी है।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस, जो पहले अपने गठबंधन को मजबूत करने का दावा कर रही थी, अब अपने सहयोगियों को दरकिनार कर सीधे चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है! यह अचानक का बदलाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की रणनीति को लेकर कई सवाल खड़े करता है। क्या यह कदम कांग्रेस के भीतर की गहरी गुटबाज़ी का संकेत है, या फिर डोटासरा ने अपने विरोधियों को मात देने के लिए एक सुनियोजित चाल चली है? इन सभी सवालों के बीच, यह स्पष्ट है कि राजस्थान की राजनीति एक नया मोड़ लेने को तैयार है, जो आने वाले दिनों में सबको चौंका सकता है।
डोटासरा का बेनीवाल के खिलाफ सियासी मोर्चा
राजस्थान की राजनीति में उठापटक का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। डोटासरा ने बेनीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलकर न केवल उन्हें राजनीतिक तौर पर कमजोर करने का प्रयास किया है, बल्कि गठबंधन में दरार डालने की भी कोशिश की है। उनके इस कदम ने प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है, जहां एक ओर कांग्रेस अपने आपको मज़बूत करना चाहती है, वहीं बेनीवाल अपनी राजनीतिक स्थिति को बनाए रखने में जुटे हैं।
चुनावी रण में महत्त्वपूर्ण खींवसर सीट
खींवसर सीट पर चुनावी मुकाबला बेहद रोचक होने वाला है। कांग्रेस ने रतन चौधरी को मैदान में उतारकर अपनी ताकत दिखाई है, जबकि आरएलपी के लिए बेनीवाल का समर्थन उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल के जरिए पेश किया गया है। इस सीट पर दोनों पार्टियों के बीच सीधी टक्कर को देखते हुए यह स्पष्ट है कि डोटासरा और बेनीवाल के बीच व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ सकती है।
डोटासरा ने स्पष्ट किया है कि खींवसर में प्रचार करते समय वह बेनीवाल के बयान और हरियाणा चुनाव में उनके रवैये को मुद्दा बनाएंगे। इससे न केवल चुनावी माहौल गर्म होगा, बल्कि मतदाता भी इन राजनीतिक बयानबाज़ियों के प्रभाव में आकर अपना वोट डालने पर मजबूर होंगे।
क्या डोटासरा के प्रयास रंग लाएंगे?
अब सवाल यह उठता है कि क्या डोटासरा के इन प्रयासों से बेनीवाल की राजनीतिक पकड़ कमजोर होगी? क्या कांग्रेस अपने विपक्षी दलों को मात देने में सफल होगी? जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दोनों नेताओं की रणनीतियों और बयानबाज़ियों के बीच खींचतान निश्चित रूप से चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
इस सियासी महासंग्राम में, कांग्रेस और आरएलपी के बीच की दूरी ही नहीं, बल्कि यह भी तय करेगा कि कौन सा दल राज्य की राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूती से बनाए रखता है।
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