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What is ONOE: क्या है 'एक राष्ट्र, एक चुनाव', कैसे बदलेगा भारत में चुनाव कराने के तरीके?

What is ONOE: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" विधेयक को मंजूरी दे दी। सरकार इसे संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पेश करने की योजना बना रही है। आइये...
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What is ONOE: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" विधेयक को मंजूरी दे दी। सरकार इसे संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पेश करने की योजना बना रही है। आइये इसके बार में विस्तार से जानते हैं।

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' क्या है?

इस विचार का उद्देश्य देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव को एक साथ कराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इस अवधारणा के पक्षधर रहे हैं। वर्तमान में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं, जो पांच साल के कार्यकाल के बाद या किसी कारणवश सरकार के भंग होने पर कराए जाते हैं।

एक साथ चुनाव कराने के लाभ

समर्थकों का मानना है कि संयुक्त चुनाव से खर्च में भारी बचत, प्रशासनिक दक्षता में सुधार और मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग ₹60,000 करोड़ खर्च हुए। इसमें राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग के चुनाव संचालन पर किए गए खर्च शामिल हैं। इसके अलावा, सुरक्षा कर्मियों की तैनाती और स्थानांतरण के दोहराव से जुड़े खर्च भी महत्वपूर्ण हैं। चुनावी ड्यूटी के कारण सरकारी मशीनरी के नियमित कार्य बाधित हो जाते हैं, जो चुनावी बजट में शामिल नहीं किए जाते।

एक साथ चुनाव का इतिहास

एक साथ चुनाव का विचार 1951-52 के पहले आम चुनावों से शुरू हुआ, जब सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। यह प्रथा 1967 तक जारी रही, जब अस्थिर विधानसभाओं के कारण इसे रोका गया। इसके बाद, कई बार लोकसभा और राज्य विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, जिससे संयुक्त चुनाव की प्रक्रिया बाधित हो गई।

एक देश एक चुनाव के पक्ष और विपक्ष
पक्ष में:

बार-बार चुनाव कराने से राज्य के संसाधनों पर बोझ बढ़ता है।
राजनीतिक दल लगातार चुनाव प्रचार की स्थिति में रहते हैं।
इससे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को बढ़ावा मिलता है।

विपक्ष में:

आलोचक इसे लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ मानते हैं।
राष्ट्रीय मुद्दों का दबदबा स्थानीय मुद्दों पर हो सकता है।
क्षेत्रीय पार्टियों और राज्य की राजनीति पर केंद्र का प्रभाव बढ़ सकता है।

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