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SC on Bulldozer Justice: CJI चंद्रचूड़ ने अपने अंतिम सुनवाई में "बुलडोजर न्याय" पर सुनाया फैसला, कही ये महत्वपूर्ण बातें

SC on Bulldozer Justice: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि नागरिकों की संपत्तियों को बिना कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करने की धमकी देना अस्वीकार्य है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी...
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SC on Bulldozer Justice: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि नागरिकों की संपत्तियों को बिना कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करने की धमकी देना अस्वीकार्य है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी भी सभ्य न्यायिक प्रणाली में "बुलडोजर न्याय" की कोई जगह नहीं है। अवैध निर्माण या अतिक्रमण को हटाने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, "बुलडोजर न्याय, कानून के शासन के तहत पूरी तरह से अस्वीकार्य है। यदि इसे अनुमति दी गई तो संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता का महत्व समाप्त हो जाएगा।" संविधान का अनुच्छेद 300A यह कहता है कि संपत्ति के अधिकार को केवल कानूनी अधिकारों के माध्यम से ही सीमित किया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के मामले पर हुई सुनवाई

यह निर्णय उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में 2019 में एक घर के ध्वस्तीकरण से जुड़े मामले पर आधारित है। राज्य सरकार की कार्रवाई को "अत्यधिक और गलत" मानते हुए पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को उस याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया, जिसका घर सड़क विकास के नाम पर ध्वस्त कर दिया गया था।

फैसले की महत्वपू्र्ण बातें

6 नवंबर के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार की अवैध सरकारी कार्रवाई नागरिकों की संपत्तियों के चयनात्मक ध्वस्तीकरण की स्थिति पैदा कर सकती है। फैसले में कहा गया, "किसी भी सभ्य न्याय प्रणाली में बुलडोजर के माध्यम से न्याय का कोई स्थान नहीं है। अगर राज्य का कोई भी अधिकारी या शाखा इस प्रकार की गैर-कानूनी और अत्यधिक कार्रवाई को अनुमति देती है, तो यह नागरिकों की संपत्तियों के चयनात्मक ध्वस्तीकरण का कारण बन सकती है।"

जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए इस फैसले में कहा गया, "नागरिकों की आवाज़ को उनकी संपत्तियों और घरों को नष्ट करने की धमकी से दबाया नहीं जा सकता। एक व्यक्ति के पास सबसे बड़ी सुरक्षा उसके घर में होती है।" कोर्ट ने संपत्ति संबंधी मामलों में कुछ प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि ऐसे गैर-कानूनी ध्वस्तीकरण को अनुमति देने वाले राज्य अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।

6 नवंबर की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की अचानक की गई ध्वस्तीकरण कार्रवाई की भी आलोचना की, जिसमें उचित रूप से नागरिकों को खाली कराने का समय नहीं दिया गया था।

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