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Nirbhaya Case: महिलाओं की सुरक्षा पर आशा देवी का सवाल, ‘कठोर कानूनों के बावजूद बेटियां सुरक्षित क्यों नहीं?’

Nirbhaya Case: साल 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़िता की मां, आशा देवी, ने देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि 12 साल बीत जाने के बावजूद बेटियों की सुरक्षा को...
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Nirbhaya Case: साल 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़िता की मां, आशा देवी, ने देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि 12 साल बीत जाने के बावजूद बेटियों की सुरक्षा को लेकर हालात नहीं बदले हैं।

आशा देवी ने यह भावुक अपील “महिला एवं बाल हिंसा की रोकथाम पर राष्ट्रीय सम्मेलन” में की। उन्होंने कहा, “यह कहते हुए मुझे बहुत दर्द हो रहा है कि 12 साल बाद भी परिस्थितियां नहीं बदलीं। देश की बेटियां आज भी सुरक्षित नहीं हैं। जब मैं अपनी बेटी के लिए न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रही थी, तो मुझे पता था कि वह अब लौटकर नहीं आएगी। लेकिन मैंने उसकी बात याद रखी कि दोषियों को ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए कि ऐसा हादसा फिर कभी न हो।”

कोलकाता डॉक्टर केस का जिक्र

आशा देवी ने कोलकाता में 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीय पीजी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “आज तक किसी को यह नहीं पता कि असल में वहां क्या हुआ था।”

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर सवाल

आशा देवी ने कानूनी व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कठोर कानून बनने के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं। “मैंने अपनी बेटी की मौत के बाद महिलाओं की सुरक्षा पर अनगिनत कार्यक्रमों और चर्चाओं में हिस्सा लिया, लेकिन सब बेकार साबित हुआ। मैं केंद्र और राज्य सरकारों से अपील करती हूं कि इस सवाल पर गंभीरता से विचार करें कि महिलाओं की सुरक्षा आखिर क्यों सुनिश्चित नहीं हो पा रही है?”

"ग्रामीण इलाकों की हालत और बदतर"

उन्होंने खासकर ग्रामीण इलाकों की हालत पर चिंता जताई, जहां उनके मुताबिक ज़्यादातर घटनाएं अनसुनी रह जाती हैं। उन्होंने कहा, “मैं किसी को दोष नहीं दे रही, लेकिन यह सच है कि हमारे गांवों की बेटियां कहीं ज़्यादा असुरक्षित हैं। स्कूल, दफ्तर, या किसी भी जगह पर बेटियों की सुरक्षा का सवाल आज भी बना हुआ है। खासतौर पर छोटी बच्चियों के लिए स्थिति और भी भयावह है।”

"न्याय तो मिला, लेकिन यह काफ़ी नहीं"

उन्होंने कहा, “मुझे न्याय मिला और यही मेरी सांत्वना है, लेकिन इसका क्या फ़ायदा जब एक ज़िंदगी खत्म हो गई और सिस्टम आज भी वैसा ही है। मुझे समझ नहीं आता कि जब किसी बेटी की मौत हो जाती है, तो मामला कोर्ट तक क्यों नहीं पहुंचता। आरोपी को पहचानने में ही छह महीने से एक साल तक लग जाता है। ऐसे में कैसे उम्मीद करें कि हमारी बेटियां सुरक्षित रहेंगी और उनके माता-पिता को न्याय मिलेगा?”

अभिनेता की तरह दिखाती हूं मुस्कान

अपनी बेटी को खोने का गम जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि वह अभी तक इस दर्द से बाहर नहीं निकल पाई हैं। उन्होंने कहा, “मेरे चेहरे पर जो मुस्कान आप देखते हैं, वह एक मुखौटा है, जिसे मैं एक अभिनेता की तरह पहन लेती हूं। लेकिन सच्चाई यह है कि मैं आज भी घुटन महसूस करती हूं।”

आशा देवी की यह भावुक अपील महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती है। उनकी बातों ने न केवल सिस्टम की खामियों को उजागर किया, बल्कि एक मां के दिल का दर्द भी बयां किया।

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