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Som Pradosh Vrat 2024: जानिए साल के पहले सोम प्रदोष व्रत की डेट , सुखकारी और कल्याणकारी है ये व्रत

Som Pradosh Vrat 2024: जो प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है उसे सोम प्रदोष माना जाता है। सोम प्रदोष व्रत, भगवान शिव को समर्पित दिवस है। यह चंद्र पखवाड़े के 13वें दिन पड़ता है, विशेष रूप से शुक्ल पक्ष...
07:15 PM May 15, 2024 IST | Preeti Mishra
image Credit:Social Media

Som Pradosh Vrat 2024: जो प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है उसे सोम प्रदोष माना जाता है। सोम प्रदोष व्रत, भगवान शिव को समर्पित दिवस है। यह चंद्र पखवाड़े के 13वें दिन पड़ता है, विशेष रूप से शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष चरणों के दौरान। साल 2024 का पहला सोम प्रदोष (Som Pradosh Vrat 2024) व्रत 20 मई , सोमवार को मनाया जा रहा है। यह दिन बेहद ख़ास है ख़ासकर उन लोगों के लिए जिन्हें अपने जीवन सुख -समृद्धि की कामना है।

सोम प्रदोष व्रत का महत्व

सोम प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। भक्त भगवान शिव (Som Pradosh Vrat 2024) का आशीर्वाद पाने और अपनी इच्छाओं की पूर्ति, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास पाने के लिए यह पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखते हैं।

अनुष्ठान और पालन

सोम प्रदोष (Som Pradosh Vrat 2024) के दिन भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास करते हैं। कुछ लोग केवल फल, दूध और अन्य सात्विक भोजन का सेवन करके आंशिक उपवास रख सकते हैं। शाम के समय, भक्त भगवान शिव के मंदिरों में जाते हैं या घर पर पूजा करते हैं। वे प्रार्थना करते हैं, अगरबत्ती और दीपक जलाते हैं और भगवान शिव को समर्पित मंत्रों का जाप करते हैं। कुछ भक्त जल, दूध, शहद और अन्य पवित्र पदार्थों से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। शाम की पूजा के दौरान भगवान शिव की स्तुति करने वाली विशेष प्रार्थना और भजन गाए जाते हैं।

होती है हर मनोकामना पूर्ण

भक्तों का मानना ​​है कि इस व्रत (Som Pradosh Vrat 2024) को भक्तिपूर्वक करने से मन और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे आध्यात्मिक विकास और ज्ञान प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि सोम प्रदोष व्रत पर सच्ची प्रार्थना और उपवास करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं और होने के साथ उनके जीवन में समृद्धि और सफलता होती है। माना जाता है कि इस दिन उपवास करने से पापों और पिछले कर्मों से मुक्ति मिलती है । ऐसा माना जाता है कि सोम प्रदोष व्रत का पालन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है, जिससे भक्त के जीवन में शांति, सद्भाव और खुशी आती है।

सोम प्रदोष व्रत की कथा

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था।

राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी (Som Pradosh Vrat 2024) के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत (Som Pradosh Vrat 2024) के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने अन्य सभी भक्तों के दिन भी फेरते हैं।

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