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Pradosh Vrats in Margashirsha Month: मार्गशीर्ष माह में पड़ेंगे दो प्रदोष व्रत, जान लें तिथि और महत्व

प्रदोष व्रत एक श्रद्धेय हिंदू व्रत है जो भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पापों को दूर करता है, समृद्धि प्रदान करता है और जीवन की बाधाओं को दूर करता है।
12:25 PM Nov 18, 2024 IST | Preeti Mishra

Pradosh Vrats in Margashirsha Month: प्रदोष व्रत एक हिंदू पर्व है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के सम्मान में महीने में दो बार मनाया जाता है। यह व्रत हिंदू चंद्र कैलेंडर में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों के 13वें दिन मनाया जाता है। प्रदोष (Pradosh Vrats in Margashirsha Month) शब्द का हिंदी में अर्थ शाम से संबंधित। इसलिए इस दिन गोधूलि बेला में ही पूजा की जाती है। इस दिन लोग उपवास, पूजा और अनुष्ठान करते हैं। कुछ श्रद्धालु पूरी तरह से उपवास करते हैं, जबकि अन्य केवल फल और दूध आदि का सेवन करते हैं।

कब-कब है मार्गशीर्ष माह में प्रदोष व्रत?

मार्गशीर्ष महीने का पहला प्रदोष व्रत 28 नवंबर 2024, गुरुवार को रखा जाएगा। इसे गुरु प्रदोष व्रत (Pradosh Vrats in Margashirsha Month) भी कहते हैं। इस दिन पूजा का समय शाम 05:12 मिनट से 07:55 मिनट तक रहेगा। वहीं मार्गशीर्ष महीने का दूसरा प्रदोष व्रत 13 दिसंबर, गुरुवार को होगा। यह शुक्ल पक्ष का दिन है। इस प्रदोष व्रत में पूजा का समय शाम 05:50 से रात 08:24 मिनट तक रहेगा।

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrats in Margashirsha Month) एक श्रद्धेय हिंदू व्रत है जो भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पापों को दूर करता है, समृद्धि प्रदान करता है और जीवन की बाधाओं को दूर करता है। प्रत्येक चंद्र पखवाड़े के 13वें दिन (त्रयोदशी) को शुभ गोधूलि काल (प्रदोष काल) के दौरान मनाया जाता है। लोगों का मानना ​​है कि भगवान शिव इस दौरान विशेष वरदान देते हैं। प्रदोष व्रत पड़ने वाले दिन के आधार पर, वैवाहिक आनंद, करियर में वृद्धि या स्वास्थ्य जैसे विशिष्ट लाभ प्रदान करता है। यह व्रत आंतरिक शांति और भक्ति को बढ़ावा देता है, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक उत्थान और दिव्य कृपा प्राप्त करने में मदद मिलती है।

प्रदोष व्रत के नियम

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrats in Margashirsha Month) का पालन करने के लिए समर्पण और विशिष्ट नियमों के पालन की आवश्यकता होती है। भक्तों को सुबह जल्दी उठना चाहिए, स्नान करना चाहिए और विचारों और कार्यों में पवित्रता बनाए रखनी चाहिए। उपवास आमतौर पर फल, दूध या सात्विक भोजन के साथ किया जाता है। अनाज और नमक से परहेज किया जाता है। प्रदोष काल (गोधूलि बेला) के दौरान बिल्व पत्र, फूल और जल जैसे प्रसाद के साथ भगवान शिव की पूजा करें। शिव मंत्रों का जाप करें, जैसे "ओम नमः शिवाय," और आध्यात्मिक ध्यान के लिए ध्यान करें। भोजन या कपड़े दान करने जैसे दान के कार्यों को प्रोत्साहित किया जाता है। भक्तों को व्रत के आध्यात्मिक और नैतिक लाभों को बढ़ाने के लिए शांतिपूर्ण मानसिकता रखते हुए नकारात्मक भावनाओं, क्रोध और गपशप से बचना चाहिए।

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