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Pitra Visarjan 2024: पितृ विसर्जन बुधवार को, ज्योतिषाचार्य से जानें पितरो की प्रसन्नता के लिए क्या करें?

Pitra Visarjan 2024: पितृ विसर्जन अथवा सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को सम्मान देने और उन्हें विदाई देने के लिए किया जाने वाला एक हिंदू अनुष्ठान है। यह आश्विन महीने की अमावस्या को होता है। यह अनुष्ठान...
11:05 AM Oct 01, 2024 IST | Preeti Mishra

Pitra Visarjan 2024: पितृ विसर्जन अथवा सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को सम्मान देने और उन्हें विदाई देने के लिए किया जाने वाला एक हिंदू अनुष्ठान है। यह आश्विन महीने की अमावस्या को होता है। यह अनुष्ठान पितृ पक्ष (Pitra Visarjan 2024) के अंत का प्रतीक है, जो पूर्वजों की आत्माओं को सम्मानित करने का समय है, और भारत के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा समारोहों की शुरुआत का प्रतीक है।

कब है इस वर्ष पितृ विसर्जन?

महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट लखनऊ के ज्योतिषाचार्य पं राकेश पाण्डेय ने बताया कि इस वर्ष पितृ विसर्जन सर्व पितृ श्राद्ध की अमावस्या 2 अक्टूबर बुधवार को है। कहा जाता है कि 'मध्याह्ने श्राद्धम् कारयेत'. इसका अर्थ है कि मध्याह्न काल में ही श्राद्ध क्रिया करना चाहिए। इस वर्ष (Pitra Visarjan 2024) आश्विन कृष्ण अमावस्या तिथि पूरे दिन व रात 11:05 तक रहेगी। जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि पर ही करना चाहिए।

पितृ दोष शान्ति हेतु उपाय

पंडित राकेश पांडेय ने बताया कि पितृ दोष शान्ति के लिए इस दिन त्रिपिण्डी श्राद्ध करें। इसके अलावा गीता का पाठ, रूद्राष्ट्राध्यायी के पुरुष सूक्त, रुद्र सूक्त, ब्रह्म सूक्त आदि का पाठ भी करना चाहिए। इस दिन पीपल के वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु का पूजन कर गाय का दूध चढ़ावें। पितृ श्राप से मुक्ति हेतु उस दिन पीपल का एक पौधा भी अवश्य लगाना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य राकेश पाण्डेय

ज्योतिषाचार्य राकेश पाण्डेय बताते है की श्राद्ध चिन्तामणि के अनुसार किसी मृत आत्मा का तीन वर्षो तक श्राद्ध कर्म नहीं करने पर जीवात्मा का प्रवेश प्रेत योनि में हो जाता है। जो तमोगुणी, रजोगुणी एवं सतोगुणी होती है। पृथ्वी पर रहने वाली आत्माएं तमोगुणी होती हैं। अत: इनकी मुक्ति अवश्य करनी चाहिए।

क्या करें पितृ विसर्जन के दिन?

पितृविसर्जन के दिन पितृ लोक से आये हुयें पितरो की विदाई होती है। उस दिन तीन या छः ब्राह्मणों को मध्यान्ह के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सुस्वादुकर भोजन से संतृप्त कर उन्हें वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर विदा करें एवं सायं काल घी का दीपक जलाकर पितृ लोक गमन मार्ग को आलोकित करने की परिकल्पना करें। जिससे पितृ संतुष्ट होकर अपने वंश के उत्थान की कामना करते हुये स्वलोक गमन करेगें।

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