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Naga in Mahakumbh: कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु? जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

लोगों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि नागा साधु केवल कुंभ जैसे मौकों पर ही क्यों दिखते हैं? कुंभ के बाद नागा साधु कहीं गायब हो जाते हैं और सामान्य दिनों में दिखाई नहीं देते।
01:12 PM Jan 20, 2025 IST | Preeti Mishra
Naga in Mahakumbh

Naga in Mahakumbh: आज महाकुंभ का आठवां दिन है। प्रयागराज में चल रहे है इस महाकुंभ में शामिल होने ना केवल देश के कोने-कोने से बल्कि विदेशों से भी लोग आ रहे हैं। कुंभ में सबसे ज्यादा महत्व अखाड़ों का होता है। इन अखाड़ों के नागा साधु (Naga in Mahakumbh) लोगों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होते हैं। नागा साधु तपस्वी योद्धा हैं जो अपनी आकर्षक उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं।

नागा साधु (Naga in Mahakumbh) आम तौर पर निर्वस्त्र होते हैं, जो त्याग का प्रतीक है। राख से सना हुआ इनका शरीर सांसारिक जीवन से वैराग्य का प्रतिनिधित्व करता है। उनके उलझे हुए बाल (जटा) आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं, और वे अक्सर रुद्राक्ष की माला पहनते हैं। त्रिशूलों और तलवारों से लैस, वे अनुशासन, भक्ति और शक्ति का प्रतीक हैं।

लोगों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि नागा साधु (Naga Sadhu) केवल कुंभ जैसे मौकों पर ही क्यों दीखते हैं। कुंभके बाद नागा साधु कहीं गायब हो जाते हैं और सामान्य दिनों में दिखाई नहीं देते। आज इस आर्टिकल में हम इसी बात पर प्रकाश डालेंगे और जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर कुंभ जैसे आयोजनों के पश्चात नागा साधु कहां चले (Where do Naga Sadhus go after Kumbh) जाते हैं?

कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु?

कुंभ मेले (Kumbh Mela) के बाद, नागा साधु आम तौर पर अपने संबंधित अखाड़ों (Akhadas in Mahakumbh) में लौट जाते हैं या अपनी तपस्या जारी रखने के लिए दूरदराज के इलाकों, गुफाओं या हिमालयी क्षेत्रों में चले जाते हैं। उनके गंतव्य और गतिविधियां उनके त्याग की शपथ, आध्यात्मिक प्रथाओं और उनके अखाड़े की परंपराओं द्वारा निर्देशित होती हैं। कुंभ के बाद कई नागा साधु अपने अखाड़े के मुख्यालय में रहते हैं, जहां वे आध्यात्मिक शिक्षा, अनुष्ठान और ध्यान में संलग्न रहते हैं।

कुछ साधु ध्यान करने और एकांत में तपस्या करने के लिए हिमालय की गुफाओं या जंगलों में चले जाते हैं। वहीं अपनी तपस्वी जीवनशैली के अनुरूप, कुछ लोग भटकते हुए भिक्षुकों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते हैं। इसके अलावा कुछ नागा साधु पवित्र स्थलों और नदियों की यात्रा कर सकते हैं, अनुष्ठान कर सकते हैं और आध्यात्मिक शिक्षाएँ फैला सकते हैं। नागा साधु कुंभ जैसे आयोजनों के बाद, अपने अखाड़ों द्वारा आयोजित अन्य छोटी धार्मिक सभाओं और त्योहारों में भाग लेते हैं।

इन दो अखाड़ों के नागा साधु कुंभ में लेते हैं भाग

कुंभ में अधिकतर नागा साधु दो अखाड़ों से आते हैं। पहला है महानिर्वाणी अखाड़ा और दूसरा है पंच दशनाम जूना अखाड़ा। महानिर्वाणी अखाड़ा (mahanirvani akhada) या श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी एक शैव शस्त्रधारी अखाड़ा है। यह हिंदू परंपरा में तीन प्रमुख शस्त्रधारी अखाड़ों में से एक है। परंपरा के अनुसार महानिर्वाणी अखाड़े की विरासत दस हज़ार साल पुरानी है, लेकिन इसका औपचारिक आयोजन 748 ई. में हुआ था।

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा अखाडा (panch dashnam juna akhada) है। इसका मुख्यालय वाराणसी में है। इस अखाड़े के साधु संत शिव के अनुयायी होते हैं। वर्तमान में इसके प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि हैं। जूना आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संप्रदाय के अंतर्गत आने वाला एक शैव अखाड़ा है। यह अखाड़ा शंकराचार्य द्वारा द्वारका, पुरी, श्रृंगेरी और ज्योतिर्मठ में स्थापित चार मठों से जुड़ा हुआ है। जूना अखाड़ा भगवान दत्तात्रेय और उनके 52 फुट ऊंचे पवित्र ध्वज की पूजा करता है।

इनका अभिवादन मंत्र ॐ नमो नारायण है। अखाड़े का प्रशासनिक निकाय श्री पंच है - जिसके सदस्य कुंभ और महाकुंभ मेले के दौरान चुने जाते हैं। अखाड़े में नागा साधुओं की एक समृद्ध परंपरा है, जिन्हें केवल कुंभ और महाकुंभ मेले के दौरान ही इस पद पर नियुक्त किया जाता है। जूना अखाड़े में अस्त्रधारी साधु और शास्त्रधारी साधु, दोनों होते हैं।

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