Mahashivratri Prasad: नहीं खाना चाहिए शिवलिंग का प्रसाद, जानें क्या कहता है शिवपुराण?
Mahashivratri Prasad: कल यानी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जल, दूध, बेल पत्र, भांग और धतूरा आदि अर्पित करते हैं। इसके अलावा महाशिवरात्रि (Mahashivratri Prasad) के दिन शिवलिंग पर प्रसाद के रूप में फल और मिठाई भी चढ़ाया जाता है। जहां अन्य पर्व-त्योहार पर भगवान को अर्पित प्रसाद खाना अच्छा माना जाता है वहीं मान्यता है कि शिवलिंग पर चढ़ाए गए प्रसाद को सामान्य जन को नहीं सेवन करना चाहिए।
हम सबने सुना है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद (Mahashivratri Prasad) आम जनमानस को नहीं खाना चाहिए। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि ऐसा क्यों है? इस बात को लेकर शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है कि आखिर शिवलिंग का प्रसाद क्यों नहीं खाना चाहिए। आइए जानते हैं इसका कारण।
क्या कहता है शिव पुराण?
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद (Mahashivratri 2025) आम भक्तों को नहीं खाना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान शिव को एक तपस्वी देवता माना जाता है, और शिवलिंग पर चढ़ाए गए प्रसाद उनकी दिव्य ऊर्जा को अवशोषित करते हैं लेकिन मानव उपभोग के लिए नहीं होते हैं। इन प्रसादों को पवित्र माना जाता है और इन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर देना चाहिए या किसी पीपल के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए। इसके अलावा चांडाल भी शिवलिंग के ऊपर चढ़ा प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
यह परंपरा निस्वार्थ भक्ति का प्रतीक है, जहां भक्त बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना अपनी प्रार्थना करते हैं, जो भगवान शिव से जुड़े त्याग और आध्यात्मिक शुद्धता की अवधारणा को मजबूत करता है।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित एक अत्यधिक महत्वपूर्ण (Significance of Mahashivratri) हिंदू त्योहार है, जो शिव और शक्ति के अभिसरण का प्रतीक है। यह उस रात को चिह्नित करता है जब शिव ने तांडव, सृजन और विनाश का लौकिक नृत्य किया था। आध्यात्मिक विकास, समृद्धि और मुक्ति के लिए शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन भक्त उपवास करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और रात भर जागरण करते हैं।
माना जाता है कि इस दिन शिव की पूजा करने से पाप दूर होते हैं, नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिवलिंग पर बिल्व पत्र, दूध और काले तिल चढ़ाने से दैवीय कृपा प्राप्त होती है। इसे ध्यान और आत्म-चिंतन के लिए भी एक शुभ समय माना जाता है, जिससे आंतरिक शांति और ज्ञान प्राप्त होता है।
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