Mahalaxmi Temple Khambhat: महालक्ष्मी माता के आशीर्वाद से गूंजती हैं घर में किलकारियां, नवरात्रि में यहां होता है विशेष गरबा
Mahalaxmi Temple Khambhat: ''त्रंबावटी नगरी आईं, रुपावटी नगरी,
मां मंछावटी नगरी,
सोल सहस्त्र त्यां सोहिये,
क्षमा करो गौरी, मां दया करो गौरी,
ॐ जयो जयो मां जगदम्बे।''
मां आदि शक्ति की आरती की ये पंक्तियां बताती हैं कि प्राचीन काल में त्रंबावटी नगरी का बहुत महत्त्व था। प्राचीन काल की त्रंबावटी नगरी ही आज का खंभात है। आज भी इस शहर का बहुत महत्त्व है। यहां आस्था के कई ऐसे प्राचीन स्थल हैं जो लोगों को खींचकर खंभात ले आते हैं। ऐसा ही एक स्थान है, खंभात शहर के बीच में मौजूद श्री राज राजेश्वरी महालक्ष्मी माता का मंदिर (Mahalaxmi Temple Khambhat)। इस मंदिर के दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहता है।
शहर के मुख्य बाजार की छोटी-छोटी गलियों से गुजर कर मां के दरबार में पहुंचा जाता है। मां के द्वार (Mahalaxmi Temple Khambhat) पर आते ही सारी परेशानियां दरवाजे पर ही ठहर जाती हैं और भक्त मां के पास अंदर चला जाता है।
क्या है इस मंदिर की विशेषता
मंदिर की विशेषता है गर्भगृह में स्थापित मां की तीन मुख्य प्रतिमाएं। भक्तों का मानना है की माता जी (Mahalaxmi Temple Khambhat) की हाजिरी का यहां अनुभव होता है। यहाँ के पुजारी वशिष्ठ शुक्ला ने बताया ''गर्भ गृह में देखा जाए तो महालक्ष्मी माता के तीन स्वरूप हैं। बाल स्वरूप, यौवन स्वरूप और वास्तविक स्वरूप। यहां एक तोतला माता भी विराजमान हैं। वे बाल स्वरूप में हैं। दूसरी तुलजा भवानी माता विराजमान हैं। जो शिवानंद स्वामी की कुलदेवी हैं। माता जी की बाल स्वरूप मूर्ति वैसी ही है जैसे कोई छोटा जिद्दी बच्चा। हम रोज माता जी को साड़ी पहनाते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि माता जी को साड़ी नहीं पहननी होती है तो वे उसे निकाल देती हैं। माता जी यहां स्वयं भू प्रकट हैं।''
मंदिर में माता जी के वास्तविक स्वरूप के सामने भक्तगण हमेशा नतमस्तक रहते हैं। मां (Mahalaxmi Temple Khambhat) की उस मूर्ति का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है। पुजारी कृणाल शुक्ला बताते हैं ''माता जी की मूर्ति खंभात की खाड़ी में सन 1622 में मिली थी। मूर्ति के पास महाविद्या है। ये कालरात्रि, मोहरात्रि और मायारात्रि है। मनुष्य का इच्छित काम पूर्ण करने की शक्ति इन महालक्ष्मी माता जी में है।''
माता जी की इस मूर्ति (Mahalaxmi Temple Khambhat) का स्वरूप भी अनोखा है। भक्तो के लिए तो मां मनोरथ पूर्ण करने वाली राजराजेश्वरी है। पुजारी कृणाल शुक्ला कहते हैं ''माता जी के सिर पर सात फन वाला शेषनाग है, जो पूरा घूमकर माताजी के चरणों में आता है। माता जी के हाथों में शंख, चक्र और गदा भी है। माता जी के सिर पर शिवलिंग है जिसे स्त्री के गर्भाशय का प्रतीक कहा जाता है। संतान से संबंधित समस्या होने पर स्त्रियां माता जी के मंदिर में आकर श्रद्धा रखती हैं तो उनकी तकलीफें दूर हो जाती हैं।''
मंदिर में मां के दर्शन से दूर होती है भक्तों की तकलीफ
भक्तों का मानना है कि इस मंदिर (Mahalaxmi Temple Khambhat) में दर्शन करने से उनकी सारी मुसीबतें दूर होती हैं। मां की शरण में आने से आर्थिक समस्या से मुक्ति मिलती है। घर में किलकारियां गूंजती हैं। मनोवांछित फल मिलता है।
पुजारी कृणाल शुक्ला ने बताया ''कहा जाता है कि महालक्ष्मी माता जी की महिमा अपरंपार है। महालक्ष्मी माता यहां साक्षात विराजमान हैं। उनके चमत्कार हमें भी दिखे हैं। माता जी की श्रद्धा भी ऐसी है कि भक्तों के उमंग की कोई सीमा नहीं है। मां के इस मंदिर में त्योहारों पर खास कार्यक्रम होते हैं। यहां की नवरात्रि विशेष होती है। यहां नवरात्रि पर प्राचीन परंपराओं के अनुसार गरबे होते हैं।
नवरात्रि पर विशेष गरबे का होता है आयोजन
पुजारी वशिष्ठ शुक्ला कहते हैं ''त्यौहार तो बहुत सारे मनाए जाते हैं। देखा जाए तो हर रोज माता जी का उत्सव ही है। माता जी का मुख्य उत्सव नवरात्रि है। नवरात्रि में 10 दिन माता जी के गरबे होते हैं। गरबे प्राचीन शैली में होते हैं, जिसमें ना तो ढोल का उपयोग होता है और ना ही किसी वाद्य यंत्र का। माइक का भी उपयोग नहीं किया जाता है।''
यहां दर्शन को आये एक श्रद्धालु नरेन्द्र प्रजापति बताते हैं ''यहां नवरात्र में प्राचीन गरबा महोत्सव (Mahalaxmi Temple Khambhat) होता है, जो काफी प्रसिद्ध है। गरबा बिना संगीत और बिना माइक के होता है। हाथ और ताली से आमने-सामने गरबा होता है। अष्टमी पर माता जी का हवन होता है। सुबह चार बजे श्री फल की आहुति दी जाती है। भाद्रपद अष्टमी को माता जी का जन्मदिन मनाया जाता है। उस दिन रात को 12 बजे उनका केसर स्नान होता है। उस दिन माता जी के संपूर्ण असल स्वरूप मूर्ति के दर्शन होते हैं।''
हर रोज मां (Mahalaxmi Temple Khambhat) के दरबार में आरती का नाद गूंजता है। भक्त जन कहते हैं कि मां का श्रृंगार और उनका रूप देखकर दिन की शुरूआत करने वालों का दिन बन जाता है।
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