Kshetrapal Mandir Dungarpur: इस मंदिर में कराया जाता है शादी शुदा लोगों का पुनर्विवाह, शिव के दस हजारवें रूप हैं भगवान क्षेत्रपाल
Kshetrapal Mandir Dungarpur: राजस्थान के डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा उपखण्ड में एक खड़गदा गांव हैं। इस खड़गदा गांव में मोरन नदी के किनारे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री क्षेत्रपाल मंदिर (Kshetrapal Mandir Dungarpur) है। श्री क्षेत्रपाल भगवान को रुद्रावतार माना जाता है। श्री क्षेत्रपाल भगवान शिव के दस हजारवें अंश हैं। यह मंदिर संपूर्ण बागड़ क्षेत्र में आस्था का एक बड़ा केंद्र है। ना सिर्फ बागड़ बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों के लिए यह मंदिर आस्था का केंद्र है।
क्या है मंदिर के पीछे का इतिहास
मंदिर के बारे में इतिहासविद्दों का कहना है कि 11वीं शताब्दी के पूर्व यहां पर नगर ब्राह्मण निवास करते थे। कहा जाता है कि उन्ही के द्वारा भगवान क्षेत्रपाल (Kshetrapal Mandir Dungarpur) के प्रतिमा की स्थापना की गयी थी। पहले इस जगह पर सिर्फ भगवान की मूर्ति थी। बाद में खड़गदा गांव के ही ब्रह्मऋषि श्री नाथूदादा भट्ट के अथक प्रयासों से मंदिर इस रूप में आया। भगवान क्षत्रपाल भैरव का रूप हैं। उन पर श्री दादा की इतनी श्रद्धा थी कि उन्होंने इस मंदिर को भव्य रूप देने के लिए एक अनोखी शर्त से खुद को बांध लिया। उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक इस मंदिर के पुनरुद्धार के लिए उन्हें हर रोज 100 रुपये नहीं मिल जाते तब तक वो भोजन नहीं करेंगे। श्री क्षेत्रपाल मंदिर का जीर्णोद्धार 1964 में शुरू हुआ था।
कैसा है यह मंदिर
श्री क्षेत्रपाल मंदिर (Kshetrapal Mandir Dungarpur) जिला मुख्यालय डूंगरपुर से करीब 55 किलोमीटर और सागवाड़ा उपखण्ड से करीब नौ किलोमीटर दूर है। यहां पर सड़क मार्ग से आसानी से आया जा सकता है। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश और गुजरात से सटा हुआ है। यही कारण है कि इन दो राज्यों के लोग यहां दर्शन करने भारी संख्या में आते हैं। भगवान शिव के दस हज़ारवें रूप श्री क्षेत्रपाल मंदिर परिसर में कुल छह मंदिर हैं। यहां श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी, श्री नर्वदेश्वर महादेव, श्री आदिनाथ जैन, श्री गुरु मंदिर और श्री हनुमान मंदिर हैं। इसके अलावा इस गांव में लक्ष्मी नारायण मंदिर, भगवती माता मंदिर और कलिका माता का मंदिर है। इस तरह से कुल नौ मंदिरों का प्रबंधन श्री क्षेत्रपाल मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा किया जाता है।
यह मंदिर राजस्थान के देवस्थान विभाग में रजिस्टर्ड है। लेकिन यहां की समस्त व्यवस्था एक निजी ट्रस्ट करता है जो खड़गदा गांव के सर्व समाज द्वारा चुन कर बनाया जाता है। यह मंदिर करीब तीन एकड़ में बसा हुआ है। मंदिर परिसर में एक भव्य धर्मशाला और एक भोजनशाला भी है। यहां आने वाले लोगों के लिए रियायती दर पर सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध है। यहां पर शादी-विवाह का भी आयोजन किया जाता है।
क्षेत्रपाल मंदिर में कराया जाता है लोगों का पुनर्विवाह
क्षेत्रपाल मंदिर पर लोगों की बहुत आस्था है। यहां जो भी मनोकामना लोग मांगते हैं वो पूरी हो जाती है। यहां मनोकामना मांगने से निःसंतान दम्पतियों को संतान की प्राप्ति होती है। क्षेत्रपाल मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि जिन लोगों का विवाह नहीं होता उनकी भी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यही नहीं जिन लोगों का विवाह होने के बाद दांपत्य जीवन सुखमय नहीं होता है, उन्हें क्षेत्रपाल भगवान के सामने लेकर पुनर्विवाह कराया जाता है। माना जाता है कि जिन लोगों का यहां पुनर्विवाह होता है उनका आगे का दांपत्य जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण होता है।
क्षेत्रपाल भगवान करते थे गरबा रास
यहां के एक स्थानीय निवासी के अनुसार, क्षेत्रपाल जी इस इस क्षेत्र के रक्षक माने जाते हैं। वो घोड़े पर सवार होकर इस पुरे एरिया की रक्षा करते थे। ऐसी किवदंती है कि जब गरबा रास होता था तब यहां क्षेत्रपाल जी खुद गरबा करने आते थे। उनका कहना था कि आज भी उनके घोड़े के पदचिन्ह मोरन नदी के किनारे स्थित है।
यहां होती है एक अनोखी प्रथा
क्षेत्रपाल में प्राचीन काल से एक प्रथा चली आ रही है। इस क्षेत्र में जिसको ही संतान प्राप्ति होती है तो वो सर्वप्रथम देशी घी और चावल से बना हुआ एक विशेष खिचड़ा होली के अवसर पर भगवान को अर्पित करते हैं और हर्षोल्लास से ढूंढ उत्सव आयोजित करते हैं। कहा जाता है कि इस प्राचीन प्रथा से क्षेत्रपाल भगवान उनके वंश की वृद्धि करते हैं और उनके परिवार और संतान की रक्षा करते हैं। खिचड़ा एक ऐसा प्रसाद है जो सिर्फ श्री क्षेत्रपाल मंदिर में ही चढ़ाया जाता है।
हनुमान मंदिर पर आयोजित होता है यहां भव्य मेला
बागड़ के श्री क्षेत्रपाल मंदिर में हर साल हनुमान जयंती के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है। बताया जाता है कि इस मेले को शुरू करने में श्री नन्दलाल दीक्षित और भगवन भाई सुतार का बड़ा योगदान है। इस अवसर पर आस पास के क्षेत्र से हज़ारों लोग मेले में शामिल होते हैं। मेले में एक भव्य कलश यात्रा निकाली जाती है। आस-पास के 20-30 किलोमीटर के लोग कलश यात्रा में शामिल होते हैं। कलश यात्रा में शामिल पुरुष और महिलाएं मोरन नदी से जल भरकर भगवान श्री क्षेत्रपाल को अर्पित करती हैं। मेले के अवसर पर नवचंड़ी और सुन्दर काण्ड के पाठ का आयोजन किया जाता है।