Holi 2025: होली के दिन जरूर करें ये पाठ, भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर करेंगे हर मनोकामना पूरी
Holi 2025: भारत में बहुत से पर्व मनाए जातें हैं। इन्ही में से एक है होली, जिसे पूरे देश में काफी हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। यह देश के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। रंगू के इस त्योहार में लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं एक-दूसरे के प्रति सभी प्रकार की नाराजगी और सभी प्रकार की बुरी भावनाओं को भूलकर नई शुरुआत करते हैं। होली का त्योहार हर साल फाल्गुन महीने में पूर्णिमा या पूर्ण चंद्र दिवस की शाम से मनाया जाता है। भाषाओं कि विविधता के कारण, देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
ब्रज की होली
आपको बता दें ब्रज की होली के चर्चे तो विदेशों तक हैं, यहां होली 40 दिन पहले से शुरू हो जाती है। होली के पर्व पर यदि आप भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा करते हैं, तो आपके जीवन के सभी दुख दूर होतें हैं। राधा-कृष्ण की पूजा करने से प्रेम और वैवाहिक जीवन में सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। इस दिन अगर आप सच्चे मन से श्री राधा कृष्ण अष्टकम का पाठ करना करते हैं तो आपकी सारी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।
श्री राधा कृष्ण अष्टकम
चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं।
हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं॥
भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं।
मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं॥
सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं।
वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं॥
मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं।
नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं॥
प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं।
सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं॥
दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं।
इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं॥
मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं।
धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं॥
सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं।
श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं॥
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम्॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम्।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम्॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम्।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम्॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम्।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम्॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम्।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम्॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम्।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम्॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम्।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम्।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम्॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम्॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम्।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः॥
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